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राजस्थान के इस जिले में माता रानी का है अनूठा मंदिर, घटस्थापना के साथ ही गर्भगृह के पट हो जाते हैं बंद

Chaitra Navratri 2024: शाहपुरा जिले के जहाजपुर में घाटारानी माता रानी का ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां चैत्र और नवरात्र पर घटस्थापना के साथ ही मंदिर के गर्भगृह के पट बंद कर दिए जाते हैं।

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Ghatarani Mata Temple: शाहपुरा जिले के जहाजपुर में घाटारानी माता रानी का ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां चैत्र और नवरात्र पर घटस्थापना के साथ ही मंदिर के गर्भगृह के पट बंद कर दिए जाते हैं। सात दिन मंदिर का गृर्भगृह बंद रहता। श्रद्धालु गर्भगृह के बाहर से पूजा करते हैं। अष्टमी पर मंगला आरती के बाद मंदिर के गर्भ गृह के पट खुलते हैं। उसके बाद श्रद्धालु गर्भगृह में जाकर दर्शन करते हैं। इसका कारण नवरात्र पर अशुद्धि नहीं हो और पवित्रता बनी रहे इसलिए निर्णय लिया था।

नवरात्र में घाटारानी माता के मंदिर के पट बंद रहते हैं। अमावस्या को पूजा और भोग के बाद पट बंद कर दिए जाते हैं। अष्टमी को मंगला आरती के साथ पट खुलते हैं। पट बंद रहने के दौरान माता की सेवा पूजा निज मंदिर के बाहर होती है। पहला शक्तिपीठ है, जहां नवरात्र में मंदिर के पट बंद रहते हैं। घाटारानी माता का मंदिर जहाजपुर से करीब 10 किमी दूर है। पुजारी शक्तिसिंह ने बताया कि नवरात्र में पट बंद रखने की परंपरा मंदिर निर्माण के समय से चली आ रही है। अष्टमी को सुबह श्रद्धालुओं की मौजूदगी में मंगला आरती के साथ मंदिर के पट खोले जाते हैं। पट खुलने के साथ ही माता के लिए पचानपुरा के राजपूत परिवार के यहां से भोग आता है। मातारानी को भोग लगाकर गर्भ गृह भक्तों के लिए खोला जाता है। मंदिर का निर्माण तंवर राजपूत वंशजों ने विक्रम संवत 1985 में कराया था।

निराहार रहती है मातारानी

पुजारी शक्तिसिंह तंवर ने बताया कि मान्यता है कि नवरात्र में मातारानी स्वयं निराहार रहकर आराधना में लीन रहती है, इसीलिए पट बंद रखते हैं। अष्टमी तक बाहर से पूजा करते हैं। गर्भ ग्रह में प्रवेश नहीं रहता है। मातारानी की 6 बार आरती के समय सिर्फ कर्पूर और गुग्गल धूप से पूजा होती है।

माता रानी ने धारा बालिका रूप...

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार घाटारानी के पहाड़ों पर माता रानी बालिका रूप में प्रकट हुई और पहाड़ के नीचे निकल रही नदी किनारे गायों का दूध पीती थी। एक दिन ग्वाले ने माता को देखा पर माता बालिका रूप में थी इसलिए पहचान नहीं पाया। ग्वाले ने बालिका का पीछा किया पहाड़ पर चढ़कर भूमि में समाहित होने वाली थी कि ग्वाले के चोटी हाथ आ गई। सिर पत्थर का हो गया। तब से ही माता की पूजा दो स्थानों पर पहाड़ व नदी किनारे बने मंदिर में सिर की पूजा होती है। नदी किनारे बने मंदिर में तंवर वंशज पूजा अर्चना करते हैं।

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