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मजदूर दिवस : हर रोज निकलते काम की तलाश में, पर नहीं मिलती मजदूरी

न्यूनतम मजदूरी, स्वास्थ्य, शिक्षा सबसे बड़ी चुनौती, स्किल नहीं बढ़ाने की वजह से टूट रही आस

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दिहाड़ी मजदूरी के लिए विभिन्न स्थानों पर खड़े रह कर इंतजार करने वाले मजदूरों के लिए मूलभूत सुविधाओं की परवाह किसी को भी नहीं है। मई व जून माह इनके लिए और विकट होंगे। शहर के पांसल चौराहा, लव गार्डन रोड स्थित मजदूर चौराहा, सांगानेर गेट सर्किल, बड़ला चौराहा आदि स्थानों पर दिहाडी करने वाले मजदूरों व बेलदार तथा महिला श्रमिकों की एक तरह से मंडी लगती है। आमतौर पर यहां यह लोग साढ़े सात बजे से 10 बजे तक खड़े रहते हैं। किस्मत अच्छी रही तो रोजगार मिल जाता है अन्यथा यह अपने साथ लाए टिफिन का भोजन कर वापस लौट जाते हैं, कल के इंतजार में। इन ठियों पर इनके लिए मूलभूत सुविधाएं पानी, छाया, प्रसाधन आदि की कोई व्यवस्था नहीं है। शहरी क्षेत्र सहित आसपास के गांवों से रोजाना काम की तलाश में खड़े रहने वाले मजदूर कई बार बिना काम के लिए लौट जाते हैं।

फिर ई श्रम कार्ड का क्या लाभ

पत्रिका टीम ने कई श्रमिकों से बातचीत की तो उनका दर्द सामने आया। श्रमिकों ने बताया कि सरकार मजदूरों के लिए ई श्रम कार्ड बनवाकर उन्हें आर्थिक लाभ दे रही है, लेकिन सरकारी मशीनरी का इन खुली मजदूरी करने वालों से कोई लेना देना नहीं है। काम की तलाश के लिए भीषण गर्मी में भी इन्हें बिना शेल्टर के कड़ी धूप में घंटों खड़े रहना पड़ता है।

आठ घंटे की मांग को लेकर हुआ आंदोलन

भामस नेता प्रभाष चौधरी ने बताया कि मजदूर दिवस के मौके पर भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र की ओर से सीटू की ओर से जिले में कई स्थानों पर आयोजन होंगे। भीलवाड़ा मजदूर संघ की ओर से मजदूर दिवस पर रीको फोर फेस स्थित मंगलम यार्न के गोदाम में सुबह 7 से शाम 7 बजे तक रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाएगा।

फिर कैसे मजदूरों के बच्चों को मिलेगी बेहतर शिक्षा

चौधरी ने कहा कि श्रमिकों के बच्चों के बेहतर भविष्य की दिशा में सरकारों को चिन्तन करने की आवश्यकता है। बढ़ती महंगाई की वजह से कई श्रमिक परिवारों के सामने शिक्षा और सेहत ही सबसे बड़ी चुनौती है। सरकार को इस दिशा में नवाचार दिखाते हुए श्रमिक परिवारों के कल्याण की दिशा में कदमताल करनी होगी।