6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

महज चुनावी जुमला: एक ही पार्टी की सरकार दोनों जगह तो होता है विकास

केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार, वहां की तंगदिली से यहां नहीं बदले हाल...

2 min read
Google source verification
governments

महज चुनावी जुमला : एक ही पार्टी की सरकार दोनों जगह तो होता है विकास

भोपाल। करीब साढ़े चार साल पहले तक प्रदेश की भाजपा सरकार और मंत्रियों की जुबान पर एक बात आम थी- मनमोहन सरकार के सौतेले रवैये से मध्यप्रदेश में विकास का पहिया थम गया है।

इसे लेकर कई बार धरना भी दिया। फिर 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। प्रदेश सरकार को बड़ी उम्मीद थी कि डिमांड करते ही केंद्र से पैसा आ जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अव्वल तो यह कि वह केंद्र के खिलाफ विरोध भी नहीं जता सकी।

साढ़े चार साल में मनरेगा, स्मार्ट सिटी, सूखा राहत, भावांतर से दर्जनों मामले हैं, जिनमें मोदी सरकार ने अपनी ही पार्टी की प्रदेश सरकार के साथ तंगदिली दिखाई। केंद्र ने प्रदेश में कुछ नए प्रोजेक्ट चालू किए, लेकिन योजनाओं एक्जीक्यूशन के स्तर पर हालात नहीं बदले।

केंद्र-राज्य में कब किसकी सरकार
1991 से 1996 तक - केंद्र में कांगे्रस, प्रदेश में 93 तक भाजपा उसके बाद कांग्रेस
1996 से 1998 तक - केंद्र में संयुक्त मोर्चा, प्रदेश में कांग्रेस
1998 से 2004 तक - केंद्र में भाजपा (एनडीए), प्रदेश में दिसंबर 2003 तक कांग्रेस
2004 से 2014 तक - केंद्र में कांग्रेस (यूपीए), प्रदेश में भाजपा
2014 से अब तक - केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा

कांग्रेस
यूपीए सरकार ने 2008 से 2012 तक मध्यप्रदेश को 39 योजनाआें में 439407 करोड़ रुपए दिए।

भाजपा
यूपीए सरकार 30 हजार करोड़ सालाना देती थी। मोदी सरकार 61 हजार करोड़ दे रही है।

मोदी सरकार के बाद प्रदेश के हाल
- मोदी सरकार ने गेहूं-चावल पर बोनस राशि देने से हाथ खींच लिए। प्रदेश सरकार ने कृषक प्रोत्साहन राशि के नाम पर बोनस का पैसा अपने खाते से बांटा।
- प्रदेश ने भावांतर योजना के लिए केंद्र से एक हजार करोड़ रुपए मांगे, लेकिन मिले 400 करोड़।
- यूपीए के दौर में जीएसटी का विरोध करने वाली प्रदेश की भाजपा सरकार ने मोदी सरकार के दबाव में सहमति दे दी।
- यूपीए के दौर में पेट्रोल-डीजल के दामों का विरोध करने वाली प्रदेश सरकार अब मौन है।

- मोदी सरकार बनने के बाद भी मप्र के बिजली घरों को कोयला संकट का सामना करना पड़ा।
- नेशनल हाई-वे की स्थिति खराब, यूपीए के दौर में भाजपा सरकार इसे बड़ा मुद्दा बताती थी।
- प्रदेश की सात स्मार्ट सिटी के लिए केंद्र ने 500 करोड़ रोक लिए, क्योंकि प्रदेश सरकार अपना हिस्सा नहीं दे पाई।
- मनरेगा के लगभग 3600 करोड़ केंद्र ने रोक लिए थे, समय पर मजदूरी नहीं बंट पाई। अगस्त 2018 में जारी किया।
- पीएम आवास के करीब 2700 करोड़ केंद्र ने रोक लिए हैं।
- मुख्यमंत्री और मंत्री अपने विभागों की ग्रांट के लिए केंद्रीय मंत्रियों को चिट्ठियां लिखते हैं। दिल्ली जाकर मिलते हैं, लेकिन काम की रफ्तार नहीं सुधरी।

प्रदेश 2004 से 2014 तक पिछड़ गया, क्योंकि यहां भाजपा की सरकार थी और केंद्र में कांग्रेस की। केंद्र यदि बदले पर उतारू हो जाए और राज्य का विकास रुक जाता है।
- प्रभात झा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भाजपा

केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार होने से विकास की बात जुमलेबाजी है। केंद्र में कांग्रेस थी तो शिवराज महंगाई के विरोध में धरने पर बैठे थे। अब केंद्र से मदद नहीं मिलने पर भी चुप हैं।
- अरुण यादव, पूर्व अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस