
साल में केवल एक दिन खुलता है इस दुर्ग का मंदिर, जानिये इस किले से जुड़े कुछ खास राज
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 45 किमी दूर स्थित रायसेन का किला इतिहास की अनूठी दास्तानों में से एक माना जाता है। 11 वीं शताब्दी के आस-पास बने इस किले पर कुल 14 बार विभिन्न राजाओं, शासकों ने हमले किए। तोपों और गोलों की मार झेलने के बाद भी आज तक यह किला सीना तानकर खड़ा है। भोपाल से करीब 45 किमी दूर जिला मुख्यालय रायसेन में स्थित किला 1500 फीट से अधिक ऊंची पहाड़ी पर लगभग दस वर्ग किमी में फैला है। इतिहासकारों के अनुसार रायसेन किला का निर्माण एक हजार ईसा पूर्व का माना गया है।
इस किले को लेकर कई क्विदंतियां प्रचलित हैं, ऐसे में इस किले के बारे में जानना लोगों का दिलचस्प लगता है। यह एक ऐसा किला है जिसकी चाहर दीवारी में वो हर साधन और भवन मौजूद हैं, जो अमूमन भारत के अन्य किलों में भी हैं। लेकिन यहां कुछ खास चीजें भी मौजद हैं, जो इसे अन्य किलों से अलग करते हुए विशेष बनाती हैं। इन्हीं में से एक है किला पहाड़ी पर तत्कालीन समय का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और इत्र दान महल का ईको साउंड सिस्टम, यही वे कुछ प्रमुख बातें हैं जो इस दुर्ग को अन्य किलों से तकनीकी मामलों में अलग करती हैं।
रहस्य: साल में एक बार खुलता है मंदिर...
इस किले यानि दुर्ग में एक ऐसा मंदिर भी है जो साल में केवल एक ही बार खुलता है। दरअसल यहां स्थित सोमेश्वर महादेव का मंदिर साल में एक बार ही महाशिवरात्रि पर ही खुलता है।
पुरातत्व विभाग के अधीन आने पर विभाग ने मंदिर को बंद कर दिया था। 1974 में नगर के लोगों ने एकजुट होकर मंदिर खोलने और यहां स्थित शिवलिंग की प्राणप्रतिष्ठा के लिए आंदोलन किया।
उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी ने महाशिवरात्रि पर खुद आकर शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कराई। तब से हर महाशिवरात्रि पर मंदिर के ताले श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं और यहां विशाल मेला लगता है।
एक जगह जमा होता है पानी
करीब दस वर्ग किमी में फैले इस किले की पहाड़ी पर गिरने वाला बारिश का पानी भूमिगत नालियों के जरिए किला परिसर में बने एक कुंड में जमा होता है। नालियां कहां से बनी हैं, उनमें पानी कहां से समा रहा है, कितनी नालियां हैं।fort of mp ये सब आज तक कोई नहीं जान पाया। जानकारों का कहना है कि सदियों पुराने इस वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से तत्कालीन शासकों की दूर दृष्टि और ज्ञान का अंदाजा लगाया जा सकता है।
ईको साउंड सिस्टम भी है इस किले में
यहां बने इत्रदान महल के भीतर दीवारों पर बना ईको साउंड सिस्टम अपने आप में एक मिसाल हैं। एक दीवार के आले में मुंह डालकर फुसफुसाने से विपरीत दिशा की दीवार के आले में यह आवाज साफ आवाज सुनाई देती है। दोनो दीवारों के बीच लगभग बीस फीट की दूरी है। यह कैसे होता है मतलब ये सिस्टम कैसे काम करता है ये आज भी समझ से परे बना हुआ है।
यहां तक की इस किले में पारस पत्थर होने सहित उसकी रक्षा करने को लेकर भी कई प्रकार की बातें प्रचलित हैं।
मंदिर, महल से लेकर कचहरी व हम्माम तक सब मौजूद
किला परिसर में बने सोमेश्वर महादेव मंदिर के अलावा यहां हवा महल, रानी महल, झांझिरी महल, वारादरी, शीलादित्य की समाधि, धोबी महल, कचहरी, चमार महल, बाला किला, हम्माम, मदागन तालाब भी मौजूद है।
दीवारों के नौ द्वार तथा तेरह बुर्ज...
-भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित इस किले की इमारतों तक जाने के लिए आपको पैदल चलना पड़ता है। इसलिए इस किले को जानने के लिए थोड़ा समय दें। किला बलुआ पत्थर की चट्टान पर ऊंचाई पर खड़ा है।
-ऊंची दीवार और बुर्ज किले को और दिलचस्प बनाते हैं। किले के चारों आेर बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारे हैं। इन दीवारों के नौ द्वार तथा तेरह बुर्ज हैं।
-किले की दीवारों में शिलालेख विद्यमान है। यह किला रायसेन जाते समय सड़क के बाईं ओर दिखाई देता है।
-तब हमें इसके महत्व का अहसास नहीं होता, लेकिन करीब जाने पर यह पर्यटकों को लुभाने लगता है और फोटोग्राफर्स को यह पसंद आता ही है, क्लिक के लिए बेहतर एंगल्स जो मिल जाते हैं।
Unique Fort of Raisen: इस दुर्ग पर हुए हमलों को ऐसे समझें...
: 1223 ई. में अल्तमश
: 1250 ई. में सुल्तान बलवन
: 1283 ई. में जलाल उद्दीन खिलजी
: 1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी
: 1315 ई. में मलिक काफूर
: 1322 ई. में सुल्तान मोहम्मद शाह तुगलक
: 1511 ई. में साहिब खान
: 1532 ई. में हुमायू बादशाह
: 1543 ई. में शेरशाह सूरी
: 1554 ई. में सुल्तान बाजबहादुर
: 1561 ई. में अकबर
: 1682 ई. में औरंगजेब
: 1754 ई. में फैज मोहम्मद
महत्वपूर्ण घटनाएं : जो किले को बनातीं हैं और ज्यादा खास...
: 17 जनवरी 1532 ई. में बहादुर शाह ने रायसेन दुर्ग का घेराव किया।
: 06 मई 1532 ई. को रायसेन की रानी दुर्गावति ने 700 राजपूतानियों के साथ दुर्ग पर ही जौहर किया।
: 10 मई 1532 ई. को महाराज सिलहादी, लक्ष्मणसेन सहित राजपूत सेना का बलिदान।
: जून 1543 ई. में रानी रत्नावली सहित कई राजपूत महिलाओं एवं बच्चों का बलिदान।
: जून 1543 ई. में शेरशाह सूरी द्वारा किए गए विश्वासघाती हमले में राजा पूरनमल और सैनिकों का बलिदान।
राजा ने किले में काटा था रानी का सिर: इसे जीतने के लिए सिक्कों से बनी थी तोपें...
इस किले को जीतने के लिए 15वीं सदी में शेरशाह सूरी ने सिक्कों को गलवा कर तोपें बनवाई थीं। मालवा की पूर्वी सीमा पर स्थित इस किले को जीतने के लिए शेरशाह ने धोखे का सहारा लिया था। कहा जाता है तब राजा पूरनमल ने अपनी पत्नी का स्वयं सिर काटा था।
इस बात का तारीखे शेरशाही में उल्लेख है कि दिल्ली का शासक शेरशाह सूरी 4 माह की घेराबंदी के बाद भी इस किले को नहीं जीत पाया था।
- जिसके बाद उसने तांबे के सिक्कों को गलवा कर यहीं तोपों का निर्माण किया, तब कहीं जाकर शेरशाह को जीत नसीब हुई।
- जब शेरशाह ने इस किले को घेरा तब 1543 ईसवी में यहां राजा पूरनमल का शासन था।
- वह शेरशाह के धोखे का शिकार हुआ था। जब राजा पूरनमल मालूम पड़ा कि वह धोखे का शिकार हो गया है, तो उसने अपनी पत्नी रत्नावली का स्वयं सिर काट दिया था जिससे वह शत्रुओं के हाथ न लगे।
Published on:
05 Mar 2020 07:23 pm
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