डॉ. जिनेंद्र गढवाल बताते हैं कि दरअसल, कोरोना सैंपल की जांच में इसे पकड़ना बहुत मुश्किल होता है. इस कारण संक्रमित होने का पता ही चल पाता है. ओमिक्रॉन के इस नए सब-वैरिएंट (BA.2) के S जीन में पहले के स्ट्रेन जैसे म्यूटेशन नहीं है. इस वजह से RT-PCR टेस्ट में इस वैरिएंट को पकड़ पाना मुश्किल होता है.
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ओमिक्रॉन के BA.1 स्ट्रेन की तुलना में नए सब-वैरिएंट (BA.2) में 28 यूनिक म्यूटेशन हो सकते हैं. इस नए सब वैरिएंट में भी पहले के स्ट्रेन से मिलते-जुलते 32 म्यूटेशन भी हैं.RT-PCR टेस्ट में इस वैरिएंट के पकड़ में नहीं आने से कोरोना के इस नए वैरिएंट को पकड़ने के लिए एकमात्र उपाय जीनोम सीक्वेंसिंग ही है.
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इसलिए खतरनाक है सब-वैरिएंट BA.2
— ओमिक्रॉन के ओरिजनल स्ट्रेन BA.1 के S जीन या स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन हैं, जो कि RT-PCR टेस्ट में नजर आ जाते हैं पर BA.2 नजर नहीं आता.
— कोरोना के इस नए वैरिएंट को पकड़ने के लिए एकमात्र उपाय जीनोम सीक्वेंसिंग है.
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— ये प्रक्रिया बहुत ही खर्चीली है, आम मरीज इसका खर्च वहन नहीं कर सकता है.
— इसकी रिपोर्ट आने में भी कई दिन लगते हैं. इससे हालात बुरे हो जाते हैं.