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कई टेस्ट में भी पकड़ में नहीं आता BA 2 स्ट्रेन, जानिए क्यों खतरनाक है ओमिक्रान का ये सब वेरिएंट

locationभोपालPublished: Jan 25, 2022 01:32:35 pm

Submitted by:

deepak deewan

ओमिक्रान के सब वेरिएंट ने सभी की चिंता बढ़ा दी है.

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ओमिक्रान के सब वेरिएंट ने सभी की चिंता बढ़ा दी है.

भोपाल. देश में कोरोना के कारण चिंता बरकरार है. मध्यप्रदेश में भी तीसरी लहर ने व्यापक संक्रमण बढ़ाया है. हालांकि सोमवार को 24 घंटों में मिलनेवाले केसेस में आंशिक कमी आई है पर कोरोना के कारण मौतें अभी भी हो रहीं हैं. इस बीच इंदौर में मिले ओमिक्रान के सब वेरिएंट ने सभी की चिंता बढ़ा दी है.
ओमिक्रॉन के नए सब-स्ट्रेन (BA.2) ने प्रदेश सरकार सहित केंद्र सरकार और चिकित्सकों की नींद उड़ा दी है. प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर में अभी तक इससे 21 संक्रमित मिल चुके हैं. विशेषज्ञ और डाक्टर्स बताते हैं कि यह बेहद तेजी से फैलता है और सबसे बुरी बात यह है कि इसे RT-PCR टेस्ट से भी पकड़ना मुश्किल होता है.
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कोरोना के नए सब-वैरिएंट को ‘स्टेल्थ ओमिक्रॉन’ या ‘छिपा हुआ ओमिक्रॉन’ भी कहा जा रहा है. इसका कारण यह है कि कोरोना के कई टेस्ट भी इसे पकड़ने में नाकाम रहते हैं. एक रिपोर्ट का कहना है कि रिसर्चर्स के मुताबिक स्टेल्थ ओमिक्रॉन के म्यूटेशन, ओमिक्रॉन के अन्य पूर्ववत स्ट्रेन के म्यूटेशन से बहुत अलग हैं.
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डॉ. जिनेंद्र गढवाल बताते हैं कि दरअसल, कोरोना सैंपल की जांच में इसे पकड़ना बहुत मुश्किल होता है. इस कारण संक्रमित होने का पता ही चल पाता है. ओमिक्रॉन के इस नए सब-वैरिएंट (BA.2) के S जीन में पहले के स्ट्रेन जैसे म्यूटेशन नहीं है. इस वजह से RT-PCR टेस्ट में इस वैरिएंट को पकड़ पाना मुश्किल होता है.

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ओमिक्रॉन के BA.1 स्ट्रेन की तुलना में नए सब-वैरिएंट (BA.2) में 28 यूनिक म्यूटेशन हो सकते हैं. इस नए सब वैरिएंट में भी पहले के स्ट्रेन से मिलते-जुलते 32 म्यूटेशन भी हैं.RT-PCR टेस्ट में इस वैरिएंट के पकड़ में नहीं आने से कोरोना के इस नए वैरिएंट को पकड़ने के लिए एकमात्र उपाय जीनोम सीक्वेंसिंग ही है.

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इसलिए खतरनाक है सब-वैरिएंट BA.2
— ओमिक्रॉन के ओरिजनल स्ट्रेन BA.1 के S जीन या स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन हैं, जो कि RT-PCR टेस्ट में नजर आ जाते हैं पर BA.2 नजर नहीं आता.
— कोरोना के इस नए वैरिएंट को पकड़ने के लिए एकमात्र उपाय जीनोम सीक्वेंसिंग है.

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— ये प्रक्रिया बहुत ही खर्चीली है, आम मरीज इसका खर्च वहन नहीं कर सकता है.
— इसकी रिपोर्ट आने में भी कई दिन लगते हैं. इससे हालात बुरे हो जाते हैं.

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