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आठ साल की चाहत, डेढ़ साल से लाइलाज कैंसर को रोज दे रही मात

locationभोपालPublished: Jul 19, 2021 01:13:37 am

चाहत करीब डेढ़ साल से हर रोज इस बीमारी को मात दे रही है। कैंसर के कारण उसका एक पैर भी काटना पड़ा, लेकिन चाहत ने हार नहीं मानी।

आठ साल की चाहत, डेढ़ साल से लाइलाज कैंसर को रोज दे रही मात

आठ साल की चाहत, डेढ़ साल से लाइलाज कैंसर को रोज दे रही मात

भोपाल. सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म दिल बेचारा याद होगी। इसमें सुशांत लाइलाज बीमारी ऑस्टियोसारकोमा से पीडि़त होते हैं। फिल्म में वे इस गंभीर और लाइलाज बीमारी से जूझते हुए भी दूसरों को खुश रखने की कोशिश करते हैं। बैरसिया की आठ साल की चाहत की कहानी भी इस फिल्म के किरदार से मिजली जुलती है। चाहत करीब डेढ़ साल से हर रोज इस बीमारी को मात दे रही है। कैंसर के कारण उसका एक पैर भी काटना पड़ा, लेकिन चाहत ने हार नहीं मानी। अब वो एक पैर के सहारे ही आगे के रास्तों पर चलना सीख रही है। हालांकि आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के सामने आगे के इलाज का खर्च जुटाना सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है।
पिता ने लगाई मदद की गुहार
चा हत के पिता नीलेश कुमार मिश्रा मेरठ विवि में कम्प्यूटर ऑपरेटर हैं। परिवार बैरसिया के पास मंदिर में सेवा कार्य करता है। नीलेश ने बताया कि चाहत साइकिल से गिर गई थी। इसके बाद पैर में दर्द रहने लगा। आसपास के डॉक्टरों को दिखाया तो उन्होंने शहर ले जाने को कहा। इसके बाद बच्ची को फोर्टिस दिल्ली रैफर कर दिया गया। जांच में ऑस्टियोसारकोमा पाया गया तो चाहत को टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल रैफर कर दिया गया। तब तक बीमारी बढ़ चुकी थी, जिसके चलते बायां पैर काटना पड़ा। अब चाहत को कृत्रिम पैर लगवाने के साथ कीमोथैरेपी का खर्च उठाने में परिवार असमर्थ है।
ये है ऑस्टियोसारकोमा
हड्डियों में घाव कैंसर में बदल जाता है। ये एक प्रकार का बोन कैंसर है, जो आमतौर पर घुटने के पास पिंडली में होता है। ये जांघ की हड्डी और कंधे के पास की हड्डी में भी हो सकता है। अधिकतर ये बीमारी बीमारी जबड़े की हड्डियों और लंबी हड्डियों में तेजी से फैलती है।
एक लाख में से तीन को होती है बीमारी
इस बीमारी का पता पहले या दूसरे चरण में लग जाए तो दवाओं और सर्जरी के माध्यम से ट्यूमर को हटाया जा सकता है। इसके बाद प्रभावित अंग को काटना ही विकल्प होता है। बीमारी कितनी दुर्लभ है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह बीमारी प्रति 100,000 लोगों पर सिर्फ तीन लोगों को ही होती है। यही नहीं करीब एक-तिहाई पीडि़तों की मृत्यु पहले वर्ष में हो जाती है।
क्या है लक्षण: हड्डियों के सिरों के आसपास सूजन या गांठ, हड्डी और जोड़ों में दर्द, महीनों तक दर्द का बना रहना, खेलने या एक्सरसाइज करने के दौरान हड्डियों में दर्द होना, दर्द के साथ सूजन।
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