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दूसरी लहर में 50 परिवारों के बच्चे हुए अनाथ

कोरोना की दूसरी लहर में शहर में 16 नहीं 50 परिवारों के बच्चे अनाथ हुए, जिनके माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं।

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दूसरी लहर में 50 परिवारों के बच्चे हुए अनाथ

दूसरी लहर में 50 परिवारों के बच्चे हुए अनाथ

भोपाल. कोरोना की दूसरी लहर में शहर में 16 नहीं 50 परिवारों के बच्चे अनाथ हुए, जिनके माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। महिला बाल विकास विभाग ने जिले में सर्वे कराने के बाद इनको तलाशा है। इन बच्चों में से कई के परिजनों ने शासन से मिलने वाली मदद की पेशकश नहीं की थी। अब विभाग इनके प्रकरण खुद बनाकर इनको सरकार की तरफ से दी जाने वाली हर सहायता राशि उपलब्ध कराएगा। जिससे इन बच्चों की पढ़ाई और लालन पालन हो सके। सर्वे के दौरान इनमें से कई बच्चों ने बताया कि उनको अपने माता-पिता की अंतिम इच्छा पूरी करनी है।

यश, उम्र 14 साल। कोरोना ने पहले मां को छीना फिर पिता को। यश उस पल को याद करता है जब उसकी मां अस्पताल जा रही थी। मां नीतू वर्मा जाते समय यश को बोलकर गईं थीं कि अच्छे से पढ़ाई करना, मैं जल्दी लौटकर आऊंगी। कुछ दिनों बाद विनोद वर्मा भी अस्पताल में भर्ती हो गए। आखिरी समय में उन्होंने यश को वीडियो कॉल किया, लेकिन ऑक्सीजन मास्क लगा होने के कारण वह बात नहीं कर सके। ये दोनों के बीच आखिरी पल थे, यश के पिता अकेले थे। इसी प्रकार यश भी अकेला है।

इशिका उम्र 20 और अक्षिता उम्र 16 वर्ष। दोनों पढ़ाई में होशियार हैं। दूसरी लहर ने माता पिता का साया छीन लिया। रजिस्ट्री कराने के बाद घर लौटे पिता हीरेश दुबे के पास फोन आया कि जहां रजिस्ट्री कराई थी वह रजिस्ट्रार पॉजिटिव आ गए हैं, आप जांच करा लें। जांच में हीरेश फिर पत्नी प्रीति दुबे भी पॉजिटिव आ गईं। अस्पताल जाने के बाद दोनों कभी लौटकर नहीं आए। बच्चियों की बुआ कल्पना शुक्ला ने बताया कि तेरहवीं की रस्म पूरी करने के बाद दोनों बच्चियों को उनके माता-पिता के बारे में जानकारी दी।

50 में से 36 को मिलने लगी मदद
महिला बाल विकास की तरफ से किए सर्वे में सामने आए 50 में से 36 बच्चों के खाते में हर माह 5 हजार रुपए की आर्थिक मदद, खाद्यान पर्ची से राशन दिया जा रहा है। स्कूल खुलने के बाद सरकार इनकी फीस भी भरेगी। इसके अलावा बेचलर डिग्री तक बच्चों की पूरी फीस सरकार के द्वारा भरी जाएगी। इसमें अगर कोई बच्चा मेडिकल लाइन में जाना चाहता है, उसका चयन सरकारी कॉलेज में होने पर सरकार इसकी फीस भी भरेगी। अगर निजी कॉलेज है तो उसकी फीस उस समय अलग से तय होगी। वर्तमान में ये डेढ़ लाख रुपए सालाना है।

जिले में सर्वे के बाद कई और बच्चे ऐसे मिले जिनके माता-पिता कोरोना में नहीं रहे। कुल संख्या 50 तक पहुंच गई है। इसमें से 36 बच्चों के खाते में रुपए और खाद्यान मदद की जा रही है। जल्द ही बाकी को भी पूरी मदद मिलने लगेगी।
योगेंद्र सिंह यादव, जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला बाल विकास