65 साल के झाम सिंह धुर्वे 35 साल पहले बेंगलुरु काम करने गए लेकिन फिर कभी नहीं लौटे। वे मानसिक रूप से बीमार थे। हालांकि पत्नी और परिवार ने झाम सिंह को खूब खोजा लेकिन वह नहीं मिले। आखिरकार पत्नी निराश हो गईं। पति के मिलने की आशा छोड़कर वे विधवा जीवन जीने लगीं। अचानक एक दिन झामसिंह लौटे तो पूरा गांव खुशी से झूम उठा।
यह भी पढ़ें : Phalodi Satta Bazar – बीजेपी को टेंशन! जानिए एमपी में किसको कितनी सीटें दे रहा फलोदी का सट्टा बाजार झाम सिंह को खुद का नाम भी याद नहीं था। वे बैंगलोर के एक अस्पताल में भर्ती थे। वे बैंगलोर में मानसिक रोगियों के लिए काम कर रही बैनियान संस्था की टीम को मिले। संस्था ने उनका समुचित इलाज कराया। कार्यकर्ताओं ने झाम सिंह से परिवार की जानकारी ली तो वे केवल इतना बता सके कि उनका गांव जुन्नारदेव के पास है।
तब संस्था ने ग्रामीण आदिवासी समाज विकास संस्थान के प्रमुख श्यामराव धवले से संपर्क किया। उन्हें झाम सिंह की फोटो भेजी। आदिवासी समाज विकास संस्थान के कार्यकर्ता राजेंद्र शर्मा ने जुन्नारदेव के आसपास के सभी गांवों में जाकर झाम सिंह की फोटो दिखाई। चिकलमउ की फूलवती धुर्वे ने झाम सिंह को पहचान लिया और बताया कि वह उनका भाई है।
ग्रामीण आदिवासी समाज विकास संस्थान ने तुरंत बेंगलुरु की बैनियान संस्था को यह सूचना दी। संस्था की टीम झाम सिंह को लेकर चिकलमउ पहुंची तो परिजन उन्हें देखकर रोने लगे। 35 साल बाद पति पत्नी दोबारा मिले।