
भोपाल। इस साल शारदीय नवरात्रि का पर्व आज यानि 21 सितंबर(गुरुवार) से शुरु हो रहा है। इस दौरान भोपाल समेत देश के तकरीबन हर हिस्से में देवी पंडाल संजने के साथ ही देवी आरती का दौर शुरू हो जाएगा।
यह पर्व नौ दिनों तक चलेगा, वहीं दसवें दिन यानि 30 सितंबर को दशहरा मनाया जाएगा। इस नवरात्रि पर्व में हर दिन देवी मां के एक विशेष रूप की पूजा होगी। और हर देवी से अलग-अलग आशीर्वाद भक्तों को प्राप्त होगा। आज हम आपको बताने जा रहे हैं हर देवी की पूजा से जुड़ी कुछ खास बातों के बारें में कि किस दिन कौन सी देवी के पूजन से कौन सा आशीर्वाद मिलता है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार साल में चार नवरात्रि आतीं हैं और हर नवरात्रि में एक समान दिनों के हिसाब से ही देवी का पूजन होता है, क्या आप जानते है कि छठीं माता कात्यायनी की पूजा से युवतियों को मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है। देवी मां के इन्हीं खास आशीर्वादों को दिन के अनुसार ऐसे समझें...
1. प्रथम देवी शैलपुत्री :
पंडित शर्मा के अनुसार देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।
- अराधना से होगी इच्छित वर व नौकरी की प्राप्ति :देवी शैलपुत्री का वर्ण चंद्र के समान है, इनके मस्तक पर स्वर्ण मुकुट में अर्धचंद्र अपनी शोभा बढ़ाता है। ये वृष अर्थात बैल पर सवार हैं अतः इन्हें देवी वृषारूढ़ा भी कहते हैं। इन्होने दाहिने हाथ में त्रिशूल व बाएं हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। देवी शैलपुत्री की साधना का संबंध चंद्रमा से है। कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार कुण्डली में चंद्रमा का संबंध चौथे भाव से होता है अतः देवी शैलपुत्री कि साधना का संबंध व्यक्ति के सुख, सुविधा, माता, निवास स्थान, पैतृक संपत्ति, वाहन, जायदाद तथा चल-अचल संपत्ति से है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री की आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। इसके साथ ही मनपसंद वर-वधू, धन लाभ और अच्छी नौकरी की प्राप्ति होती है।
2. द्वीतिय देवी मां ब्रह्मचारिणी :
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला व बाएं हाथ में कमण्डल रहता है।
- उपासना से मिलता है अमोघ फल :मां दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी जिसका दिव्य स्वरूप व्यक्ति के भीतर सात्विक वृत्तियों के अभिवर्दन को प्रेरित करता है। मां ब्रह्मचारिणी को सभी विधाओं का ज्ञाता माना जाता है। मां के इस रूप की आराधना से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम जैसे गुणों वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। मां के इस दिव्य स्वरूप का पूजन करने मात्र से ही भक्तों में आलस्य, अंहकार, लोभ, असत्य, स्वार्थपरता व ईष्र्या जैसी दुष्प्रवृत्तियां दूर होती हैं। मान्यता है कि देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है।
3. तृतीय देवी चन्द्रघंटा :
मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है।
मां चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।
- भय का होता है नाश : मां दुर्गा के नौ रुपों में तीसरा रुप है देवी चन्द्रघंटा का। नवरात्र के तीसरे दिन दुर्गा के इन्हीं चन्द्रघंटा रुप की पूजा की जाती है। माता का यह रुप लोक परलोक के कष्टों से मुक्ति प्रदान करने वाला है।
चन्द्रघंटा रुप में माता पहली बार आदिशक्ति की भांति दस हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिए नजर आती हैं। माता के हाथों में कमल, शंख, धनुष-बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल, गदा है। माता के कंठ में सफेद फूल की माला है। माना जाता है कि माता के इस रुप की आराधना करने से मन को असीम शांति मिलती है और भय का नाश होता है। माता का यह रुप अहंकार, लोभ से मुक्ति प्रदान करता है।
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4- चतुर्थ देवी कूष्माण्डा :
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।
जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं।
इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।
- मां दूर करतीं हैं सारे कष्ट :श्री दुर्गाका चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। मान्यता है कि श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी आराधनासे मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। माँ कुष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं।
मंत्र : "सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में॥"
5. पंचवी माता स्कंदमाता :
नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। मां अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
- सभी इच्छाएं होती हैं पूरी : साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णत: तल्लीन होता है। इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर होना चाहिए। उसे अपनी समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढऩा चाहिए। माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है।
6. षष्ठी माता कात्यायनी :
कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवें रूप है| यह अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम है, संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हैमावती, इस्वरी इन्ही के अन्य नाम हैं | शक्तिवाद में उन्हें शक्ति या दुर्गा, जिसमे भद्रकाली और चंडिका भी शामिल है, में भी प्रचलित हैं|
यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में उनका उल्लेख प्रथम किया है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थी , जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दी गई सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया |
- मनोवान्छित वर की होती है प्राप्ति: माना जाता है कि जिन कन्याओं के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हें इस दिन मां कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हें मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।
विवाह के लिए कात्यायनी मंत्र-
'ऊॅं कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।'
7. सातवीं देवी मां कालरात्रि :
मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालात्रि को व्यापक रूप से माता देवी - काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृित्यू, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालात्री के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं |
- सिद्धियों की रात :नवरात्र की सप्तमी में साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में अवस्थित होता है। कुण्डलिनी जागरण हेतु जो साधक साधना में लगे होते हैं आज सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं। नवरात्र सप्तमी तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होती है। सप्तमी की रात्रि ‘सिद्धियों’ की रात भी कही जाती है। इस दिन आदिशक्ति की आंखें खुलती हैं।
8. अष्टमी माता महागौरी :
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
- अक्षय पुण्यों के बनते हैं अधिकारी : नवदुर्गा के रूपों में महागौरी आठवीं शक्ति स्वरूपा हैं। शास्त्रानुसार नवरात्र अष्टमी पर महागौरी की पूजा अर्चना का विधान है। देवी महागौरी आदीशक्ति स्वरूपा हैं इनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाशमय होता है। इनकी शक्ति अमोघ फलदायिनी है। मां महागौरी की अराधना से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा देवी का भक्त जीवन में पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी बनता है। दुर्गा सप्तशती में ऐसा वर्णन आता है की एक समय में देवतागण ने शुभ निशुम्भ से पराजित होने के बाद गंगा के तट पर जाकर देवी से प्रार्थना की कि देवताओं ने देवी महागौरी का गुणगान किया। देवी महागौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ जिसने शुम्भ निशुम्भ के प्रकोप से देवताओं को मुक्त कराया।
9. नवम देवी मां सिद्धिदात्री :
मां दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।
- सिद्धि और मोक्ष देने वाली मां : मां दुर्गा अपने नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्री के नाम से जानी जाती हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह हैं और इनका आसन कमल है। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में गदा, ऊपर वाले हाथ में चक्र तथा बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में शंख और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प है। नवरात्रे- पूजन के नवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन माता सिद्धिदात्री की उपासना से उपासक की सभी सांसारिक इच्छाएं और आवश्यकताएं पूर्ण हो जाती हैं।
कुमाऊं समाज की कलश यात्रा आज
कोलार के अब्बास नगर में कुमाऊं समाज (उत्तराखंड) के नवनिर्मित हो रहे मां नंदा देवी मंदिर में नवरात्रि पर प्राणप्रतिष्ठा होनी है। इसके लिए गुरुवार को सुबह 9 बजे गिरधर परिसर से कलश यात्रा निकाली जाएगी। जो विभिन्न मार्गों से होकर मंदिर स्थल पर पहुंचेगी।
समाज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मोहन सिंह नेगी ने बताया कि शुक्रवार को नवग्रह पूजा, शनिवार को प्राण प्रतिष्ठा होगी। रविवार से 29 सितंबर तक रोजाना भजन कीर्तन, सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा। 29 को हवन और शाम 4 बजे से भंडारे के साथ कार्यक्रम का समापन होगा।
Published on:
21 Sept 2017 01:30 pm
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