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राजधानी समेत मप्र पर कुछ ऐसा रहा नोटबंदी का एक साल

नोटबंदी ने ऐसा सबक सिखाया कि हर कोई कैश की बजाय बैंक बैलेंस पर विश्वास कर रहा है...

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भोपाल। नोटबंदी ने ऐसा सबक सिखाया कि हर कोई कैश की बजाय बैंक बैलेंस पर विश्वास कर रहा है। आंकड़े बताते हैं कि नोटबंदी में मध्यप्रदेश के बैंकों का खजाना लबालब हो गया था और उसके बाद से यह बढ़ता ही जा रहा है। यानी जमा ज्यादा और निकासी कम। जून में बंद हुए दूसरी तिमाही में बैंकों की डिपॉजिट बढ़कर ३.४० लाख करोड़ रुपए हो गया है। कुछ बंदिशों के चलते कैशलेस ट्रांसजक्शन का प्रचलन बढऩे से एेसा हुआ है।


नोटबंदी के दौरान प्रदेश के बैंकों में करीब 34 हजार करोड़ रुपए जमा हुए थे, जिससे नोटबंदी के पहले जमा राशि 3.04 लाख करोड़ में बड़ी उछाल मिली और यह रकम ३.३८ लाख करोड़ पहुंच गई। नोटबंदी का दौर गुजरने के बाद भी बैंकों का खजाना लबालब है। 2017-18 के सत्र की दूसरी तिमाही में इसमें दो हजार करोड़ की बढ़त मिली है। साफ है कि जिन उपभोक्ताओं ने बैंकों में रकम पहुंचाई थी उन्होंने निकासी में दिलचस्पी नहीं दिखाई। अभी भी उपभोक्ता जोखिम उठाने को तैयार नहीं हैं और नकदी से बचने की कोशिश कर रहे हैं।

सागर ने चौंकाया


सागर जिले ने सभी को हैरान कर दिया है, जहां सबसे अधिक रकम आई। राज्यस्तरीय बैंकर्स सलाहकार समिति के आंकड़ों के अनुसार नोटबंदी की तिमाही से पहले सागर जिले का बैंक डिपॉजिट 7938 करोड़ था। जो 31 दिसंबर 2016 को बढ़कर 12264 करोड़ पहुंच गया।

पांच जिलों आधा धन


नोटबंदी के दौरान प्रदेश का आधा धन तो पांच जिलों में निकलकर बाहर आया। जिसमें भोपाल, इंदौर, जबलपुर, सागर और रीवा जिला शामिल है। बैंकों के में नोटबंदी के दौरान करीब 34 हजार करोड़ रुपए आए थे। इन पांच जिलों से 18 हजार करोड़ रुपए से अधिक जमा हुए।

1 साल में आए 50 हजार करोड़


नोटबंदी के चलते बैंकों ने जमा राशि के कई रिकॉर्ड बनाए हैं। जून 2016 में बैंकों का डिपॉजिट 2.90 लाख करोड़ रुपए था। जो एक साल में बढ़कर 3.40 लाख करोड़ रुपए हो गया है। इस तरह 50 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त आने से बैंकों का खजाना लबालब हो गया है।

* नोटबंदी के बाद से बैंकों में डिपाजिट बढ़ा है। नोटबंदी के बाद 2000 रुपए के नए नोट आने के बाद बैंकों में कैश फ्लो में गति आई है। कैशलेस सिस्टम के बढऩे से नकद लेन-देन का रुझान कम हुआ है।
अजय व्यास, फील्ड महाप्रबंधक सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया