12 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

धनतेरस पर 13 गुना चाहिए फल तो जरूर खरीदें ये धातु, खुल जाएंगे तरक्की के द्वार

समुद्र मंथन के दौरान शरद पूर्ण‍िमा के पश्चात आने वाली त्रयो‍दशी के दिन धनवंतरी का प्रादुर्भाव हुआ था।

2 min read
Google source verification
dhanteras shopping

भोपाल। हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक दीपावली एक पांच दिवसीय पर्व है। इसके तहत पहले दिन धनतेरस,दूसरे दिन नरकचौदस, तीसरे दिन दिवाली, चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पांचवें दिन भाईदूज मनाया जाता है।

इसी के चलते दीपावली के दो दिन पहले धनत्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी का पूजन किया जाता है। धनतेरस का दिन भगवान धनवंतरी का जन्मदिवस भी माना जाता है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान शरद पूर्ण‍िमा के पश्चात आने वाली त्रयो‍दशी के दिन धनवंतरी का प्रादुर्भाव हुआ था, इसलिए इस दिन को धन त्रयोदशी भी कहा गया। धन व आरोग्य प्रदान करने वाली इस त्रयोदशी का सनातन धर्म में विशेष महत्व है।

शास्त्रों में कहा गया है कि समुद्र मंथन के समय अन्य दुर्लभ और कीमती वस्तुओं के अलावा शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी के दिन कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी और कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को भगवती लक्ष्मी जी का समुद्र से अवतरण हुआ था। यही कारण है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन और उससे दो दिन पूर्व त्रयोदशी को भगवान धनवंतरी का जन्म दिवस धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि भगवान धनवंतरी ने इसी दिन आयु में वृद्ध‍ि करने वाले आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था।

भगवान धनवंतरी को नारायण भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है, जो आरोग्य प्रदान करते हैं। इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें से दो भुजाओं में वे शंख और चक्र धारण किए हुए हैं और अन्य दो भुजाओं में औषधि के साथ वे अमृत कलश रखते हैं।

ऐसा माना जाता है कि यह अमृत कलश पीतल का बना हुआ है क्योंकि पीतल भगवान धनवंतरी की प्रिय धातु है। यही कारण है कि भगवान धनवंतरी के जन्मदिवस अर्थात धनतेरस पर लोग खास तौर से पीतल के बर्तन खरीदते हैं। अन्य बर्तनों की खरीदी भी इस दिन खूब होती है। धनतेरस को लेकर मान्यता है, कि इस दिन खरीदी गई कोई भी वस्तु शुभ फल प्रदान करती है और लंबे समय तक चलती है लेकिन पीतल खरीदने से तेरह गुना अधिक लाभ मिलता है। वैसे कोई भी धातु की बनी वस्तुएं खरीदने का महत्व है। जैसे सोना, चांदी, तांबा, पीतल, कांसा आदि।

इस दिवाली पर ऐसे करें महालक्ष्मी पूजन? यह है सरल विधि:
कार्तिक अमावस्या को समस्त हिन्दू समाज सारे भारत में समान रूप से धन की देवी महालक्ष्मी को पूजता है। लक्ष्मीजी के पूजन में स्फटिक के श्रीयंत्र का विशेष महत्व माना गया है।

1. ईशान कोण में बनी बेदी पर लाल रंग के वस्त्र को बिछाकर लक्ष्मीजी की सुंदर प्रतिमा रखकर विराजित करें।
2. चावल व गेहूं की 9-9 ढेरी बनाकर, नवग्रहों का सामान बिछाकर व शुद्ध घी का दीप प्रज्वलित कर 1 या 5 खुशबूदार अगरबत्ती जलाकर, सुगंधित इत्रादि से चर्चित कर, गंध-पुष्पादि नैवेद्य चढ़ाकर इस मंत्र को बोलें...

।। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्‍वर:। गुरु साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नम: ।।

3. इस मंत्र के पश्चात इस मंत्र का जाप करें...

।। ॐ ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु शशि भूमिसुतो बुधास्च गुरुस्च शुक्रः शनि राहू केतवे सर्वे ग्रह शांति करा भवन्तु ।।

4. इसके बाद आसन के नीचे कुछ मुद्रा रखकर ऊपर सुखासन में बैठकर सिर पर रूमाल या टोपी रखकर शुद्ध चित्त मन से इस मंत्र का जितना भी हो सके जाप करना चाहिए-
।। ॐ श्री हीं कमले कमलालये। प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।


5. महानिशिथ काल में लक्ष्मीजी का मंत्र जाप करने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं। इस बार महानिशिथ काल नहीं है, क्योंकि अमावस्या 23:09 तक ही है। 22:48:18 से निशिथ काल शुरू होकर 23:36:18 तक रहेगा। 23:09:00 तक अमावस्या रहने से मंत्र का जप भी इसी समय तक करें।