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SC ST Atrocities Act से भाजपा में बढ़ी तकरार, टेंशन में सरकार!

भाजपा ही नहीं कांग्रेस में भी कुछ नेता...

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SC ST Atrocities Act से भाजपा में बढ़ी रार, टेंशन में सरकार!

भोपाल। चुनावों से ठीक पहले शुरू हुए सवर्णों के आंदोलन ने जहां प्रदेश के कई नेताओं की नींद उड़कर रख दी, वहीं अब एसटीएससी एट्रोसिटी एक्ट भाजपा के गले की फांस बनता दिख रहा है।

एसटीएससी एट्रोसिटी एक्ट के चलते अब भाजपा के अंदर रार बढ़नी शुरू हो गई है, जिसके चलते एक ओर जहां राजनैतिक माहौल गर्मा गया है। वहीं भाजपा के अंदर भी इसे लेकर टेंशन बढ़ गया है।

खास बात ये है कि ये परेशानी केवल मध्यप्रदेश तक ही सीमित नहीं है। बल्कि कई और राज्यों में भी इसे लेकर भाजपा में अंदरुनी विरोध देखने में आ रहा है।

MP में भाजपा नेताओं का खुला विरोध...
इसी के चलते शनिवार को एट्रोसिटी एक्ट के विरोध में मध्यप्रदेश में भाजपा के कद्दावर नेता रघुनंदन शर्मा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसी बातें भी कहीं हैं जिसके चलते राजनीति में भूचाल की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

जानिये कौन हैं रघुनंदन शर्मा...
रघुनन्दन शर्मा की प्रदेश के कद्दवर नेताओं में गिनती होती है, वे भाजपा होशंगाबाद जिले से 2 बार भाजयुमो अध्यक्ष, इसके अलवा ये सीएम शिवराज सिंह के काफी नजदीकी माने जाते हैं। और तो और ये केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज के चुनाव में प्रभारी भी रह चुके हैं।

वहीं इससे पहले इस एक्ट के विरोध में ही मध्यप्रदेश में ही विस चुनाव में टिकट की दावदारी कर रहे श्योपुर के भाजपा के जिला कोषाध्यक्ष नरेश जिंदल सहित तीन अन्य पार्टी और पद दोनों से इस्तीफा दे चुके हैं।

वहीं सूत्रों केे अनुसार भाजपा के भीतर मुखर हो रहे इन विरोध स्वरों से सरकार भी तनाव में आ गई है।

सरकार के खिलाफ मोर्चा!...
एसटीएससी एट्रोसिटी एक्ट मामले में इससे पूर्व वाराणसी में भाजपा के कद्दावर नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद कलराज मिश्र ने एससी-एसटी कानून के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था।

उन्होंने एससी-एसटी संशोधन विधेयक के विरोध पर बोलते हुए कहा था कि उनके ही सामने कई ऐसे मुद्दे आ चुके हैं जिसमें फर्जी तरीके से लोगों को फंसाया गया। कलराज मिश्रा ने कहा कि सरकार को एससी-एसटी एक्ट पर पुनर्विचार करना चाहिए। इस एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है।

ये बोले रघुनंदन शर्मा...
रघुनन्दन शर्मा का कहना है कि जब तक सरकार इस एक्ट को वापस नहीं लेती है मैं लड़ता रहूंगा। उन्होंने यहां ये भी साफ किया कि मेरे आप काफी जनसमर्थन है।

ऐसे में हम नया संगठन खड़ा करेंगे जो सवर्णों के हितों की रक्षा करेगा। इसके अलावा उन्होंने किसी को भी समर्थन देने या लेने से इनकार करते हुए कहा है कि हां अब जरूरी हुआ तो हम सपाक्स जैसे संगठनों के साथ खड़े रह सकते हैं।

इसके अलावा उन्होंने एक और बात कह कर राजनीति में भूचाल ला दिया है उनका कहना है कि MP सरकार के एक कद्दावर मंत्री के खिलाफ मेरे पास अवैध उत्खनन के बड़िे खास सबूत भी हैं। और माना जा रहा है कि वे जल्द ही इस मंत्री का काला चिट्ठा भी जनता के सामने खोलेंगे।

MP में और भी नेता...
वहीं शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्री गोपाल भार्गव का बयान भी पार्टी के लिए मुसीबत साबित हो रहा है।

दरअसल भार्गव ने पिछले दिनों नरसिंहपुर जिले में ब्राह्मण समाज द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि 'यदि योग्यता को दरकिनार करके अयोग्य लोगों का चयन किया जाए, यदि 90 फीसदी वाले को बैठा दिया जाएगा और 40 फीसदी वाले की नियुक्ति की जाए तो यह देश के लिए घातक है।'

उन्होंने कहा इससे हमारा देश पिछड़ जाएगा। कहीं ब्राह्मणों के साथ अन्याय न हो जाए। यह प्रतिभा के साथ एक मजाक है और ईश्वर की व्यवस्था के साथ अन्याय हो रहा है।

कांग्रेस में ये...
इसके अलावा कांग्रेस सांसद कांतिलाल भूरिया ने सवर्णों के लिए आरक्षण की वकालत की है। उन्होंने कहा है कि गरीब सवर्णों को भी आरक्षण मिलना चाहिए। इनके अलावा नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी सुप्रीम कोर्ट की बात का समर्थन कर चुके हैं।

ये कहते हैं जानकार...
वहीं राजनीति में हो रहे इस बदलाव को लेकर राजनीति के जानकार डीके शर्मा कहते हैं कि SC/ST Act संशोधन को लेकर मध्यप्रदेश सहित पूरे देश में शुरू हुए आंदोलन को देखते हुए कई बड़े नेता भी विरोध के समर्थन में आते दिख रहे हैं।

जिसके चलते एक ओर भाजपा में विरोध सामने आ रहा हैं, वहीं हो सकता है कांग्रेस में भी कुछ लोग इसे लेकर सामने आएं। इसका कारण वे बताते हैं कि कई नेता अपने क्षेत्र में सवर्णों के उपर ही जीत के लिए निर्भर है, ऐसे में वे जानते है कि एक्ट का विरोध न करना उनके राजनैतिक कॅरियर के लिए घातक हो सकता है।

शर्मा के अनुसार पूर्व में जहां पार्टियों में मची घमासान के बीच कई नेता चाहते हुए भी केवल पार्टी में अपनी स्थिति को बचाने के लिए विरोध में सामने नहीं आ रहे थे, ऐसे में अब जब कुछ नेता सामने आ चुके हैं। तो संभव है और नेता भी इसके विरोध में सामने आएं।

इसके पीछे कारण बताते हुए वे कहते हैं कि शुरूआत में उन्हें लगता था कि हम अकेले पड़ जाएंगे और किसी के सामने नहीं आने के चलते भी वे चुपचाप थे, लेकिन अब जब कुछ लोग इसके विरोध में सामने आ ही चुके हैं, तो अब उनकी भी हिचकिचाहट कुछ कम हो गई होगी। क्योंकि पूर्व में भी कई राज्यों के नेता दबी जुबान में इस एक्ट का विरोध कर रहे थे, लेकिन अपनी पार्टी में पोजीशन बचाने के कारण खुलकर सामने आने से कतरा रहे थे।

कहीं ये तो नहीं पीछे का कारण!...
जानकार मानते हैं कि सन 2014 के चुनाव नतीजों का ‘लोकनीति’ का अध्ययन बताता है कि भाजपा को इस दौरान दलितों के वोट बहुत बड़े पैमाने पर मिले थे।

उसके बाद के सर्वेक्षणों में भी दलितों में भाजपा की लोकप्रियता बढ़ते जाने के संकेत थे। ‘लोकनीति’ के सर्वे में पाया गया था कि मई 2017 में दलितों में भाजपा का समर्थन 32 फीसदी तक बढ़ गया था। लेकिन मई 2018 में सामने आया कि भाजपा से दलितों का बड़े पैमाने पर मोहभंग हुआ है।

एससी-एसटी एक्ट को नरम करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद यह बदलाव देखा गया। व्यापक दलित वर्ग तो आंदोलित हुआ ही, स्वयं भाजपा के दलित सांसदों ने नेतृत्त्व से नाराजगी व्यक्त की थी।