
#Important Election News मतदान से पहले प्रत्याशियों को लगेगा तगड़ा झटका
परिवारवाद के खिलाफ देशव्यापी हल्ले के बाद भी मध्यप्रदेश में सभी राजनीतिक दलों ने रिश्तेदारों को जमकर टिकट बांटे। सियासी आकाओं को उमीद थी कि नेता रिश्तेदारों को विजय दिलाकर पार्टी को सीट दिलवा देंगे। मगर ऐसा हो न सका। स्थानीय निकाय के चुनावों के पहले चरण के परिणामों से पता चला है कि मतदाताओं ने नेताओं के अहंकार को धूल चटा दी है। जनता ने विधानसभा अध्यक्ष के बेटे, मंत्री की बहन, विधायकों की पत्नी-बेटी-बहू, पूर्व विधायकों के बेटे-भाई को नकार दिया। सब हार गए। धिक्कार है, नेताओं के इरादों पर और फक्र है, जनता के शानदार फैसले पर।
असल में जनता जान चुकी है कि परिवारों को राजनीतिक विरासत सौंपने वाले नेता क्षेत्र, राजनीतिक दल और लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं। जो अपने परिवारों को ही आगे बढ़ा रहे हैं, वे सियासी जोंक से कम नहीं। ये जोंक व्यवस्था रूपी ढांचे का खून जूस रही हैं।
सवाल तो यह है कि जनता ने किसी को विधायक बना दिया तो फिर उसे अपने बेटे-बेटियों को सरपंच, जिला पंचायत प्रतिनिधि, पार्षद बनाने की लालसा क्यों हैं? सत्ता की ऐसी कौन सी भूख बाकी रह गई, जिसे वे अपने रिश्तेदारों के दम पर शांत करना चाहते हैं? क्या उन्हें सड़कों-बिल्डिंगों के ठेके लेना हैं, क्या कमीशन में बढ़ोतरी चाहते हैं, क्या जमीनों पर कब्जे करने का इरादा है? आखिर चाहते क्या हैं?
प्रतीत होता है कि ये खुद को इलाके का राजा मान चुके हैं और आस लगा रहे हैं कि जनता तो हमारे 'खून' को ही अपना नेता मान लेगी। सब पदों पर अपने घर के लोगों को बैठा देंगे तो चारों ओर से लूटेंगे, न कोई हिस्सा देना होगा और न ही कोई रोकेगा।
प्रदेश में अभी चार चरण के चुनाव शेष हैं। हर चरण में नेताओं के रिश्तेदार मैदान में हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि जनता वोट की चोट से परिवारवाद के घड़ों को तहस-नहस करेगी।
Published on:
30 Jun 2022 12:28 am
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