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भोपाल

बाउंसर बन रही एमपी की महिलाएं, अब खुद लेंगी लोगों की सुरक्षा का जिम्मा

जल्द ही आपको राजधानी के शॉपिंग मॉल, विश्वविद्यालय, गल्र्स छात्रावास में लड़कियों-महिलाओं की सुरक्षा के लिए तैनात महिला बाउंसर नजर आएं तो अचरज नहीं होगा। पुरुषों के वर्चस्व वाले बाउंसर जैसे पेशे में अब भोपाल की महिलाओं ने भी कदम रख दिए हैं।

भोपालDec 30, 2021 / 01:47 pm

Subodh Tripathi

बाउसंर बन रही एमपी की महिलाएं, अब खुद लेंगी लोगों की सुरक्षा का जिम्मा

बाउसंर बन रही एमपी की महिलाएं, अब खुद लेंगी लोगों की सुरक्षा का जिम्मा

योगेंद्र सेन/भोपाल. जहां आज तक बाउंसर के रूप में केवल पुरुष ही नजर आते थे, वहीं अब महिलाएं भी इस रूप में नजर आए तो चौंकिएगा मत, क्योंकि राजधानी में महिला बाउंसर तैयार हो रही है। जो निश्चित ही सुरक्षा के मद्देनजर अच्छे-अच्छों को पटखनी देने में पीछे नहीं हटेंगी।

 

प्रदेश में पहली बार तैयार हुईं महिला बाउंसर
प्रदेश में संभवत: पहली बार भोपाल में बीस महिला बाउंसर का एक बैच तैयार हुआ है। इन्होंने बकायदा आत्मरक्षा और दूसरों की सुरक्षा कैसे करें, इसके लिए प्रशिक्षण लिया है। आज ये महिलाएं शहर में अलग-अलग स्थानों पर सिक्योरिटी गार्ड के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं। इन महिलाओं के लिए इस क्षेत्र में कदम रखना ही बड़ी चुनौती था। लोगों ने रोका, टोका, कहा- बाउंसर जैसा काम तुम्हारे बस का नहीं, लेकिन अपने हौसले और कुछ करने के जुनून ने सारी परेशानियों को दूर कर अपने को साबित कर दिखाया। कल तक जो ताने मारते थे, आज वे ही हौसला अफजाई कर रहे हैं।


रक्षिता वेलफेयर सोसायटी ने दिया इस काम को अंजाम

सोसाइटी ने ‘रक्षिता वाहिनी’ का गठन किया है। संस्था से जुड़ी डॉ. ब्रीज त्रिपाठी ने बताया कि कुछ महिलाएं ऐसी सामने आईं जो आर्थिक रूप से परेशानी झेल रही थीं। परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था। ऐसी महिलाओं के लिए मध्यप्रदेश में पहली बार महिलाओं द्वारा संचालित एक ऐसी सिक्योरिटी एजेंसी अस्तित्व में आयी है, जिसमें केवल महिलाओं की ही सेवाएं ली जाएंगी। इसके लिए चुनी गयी महिलाओं को आत्मरक्षा सहित दूसरों की रक्षा करने की ट्रेनिंग भी दी गयी है। ‘रक्षिता वाहिनी’ में महिला बाउंसर्स भी शामिल की गयी हैं। अब तक 20 महिला गाड्र्स की नियुक्ति हो चुकी है आगे इनकी संख्या और बढ़ाई जाएगी। ट्रेनिंग और जॉब में एक निजी सिक्योरिटी एजेंसी के हेड मेजर शैलेंद्र राणा सहयोग कर रहे हैं।

परिवार का संबल बनी
दो साल से कोरोना और लॉकडाउन के चलते पति का काम ठीक नहीं चल रहा था। मेरे दो ब”ो हैं। उनकी स्कूल फीस और अन्य खर्चों के कारण घर चलाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में मैंने इस जॉब को करने का मन बनाया। शुरुआत में थोड़ी झिझक थी, लेकिन परिवार के सहयोग और काम करने की लगन से इसे कर दिखाया।
– योगिता

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आगे बढऩे की जिद: मैं परिवार सहित रीवा से भोपाल आई। मेरे दो बच्चेे हैं। घर चलाने के लिए मैंने मार्केटिंग का काम शुरू किया। रोजाना दिनभर कंपनियों के सामान बेचने के बाद महीने में मुश्किल से 7 हजार रुपए कमा पाती थी। कुछ अच्छा करने, और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मैंने इस काम को चुना। ट्रेनिंग के बाद अब मैं ड्यूटी कर रही हूं। ।
– शीला सेन

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सम्मान के साथ जीने की चाह
परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। एक बेटा है। उसकी पढ़ाई-खिलाई का जिम्मा भी है। कुछ अच्छा काम करना चाहती थी। सम्मान के साथ जीने की चाह है। इसलिए मैंने इस काम को करने की ठानी। इसके लिए कड़ी मेहनत की, ट्रेनिंग ली। शुरुआत में कुछ परेशानियां आईं, लेकिन हर बाधा को पार किया।
– शारदा चौहान

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