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Protem Speaker: जानिए कौन होता है प्रोटेम स्पीकर, इसके कार्य और वेतन, एमपी में पहली बार 2020 में शुरु की गई थी इस पद की सेलरी

Protem Speaker: अब आप जरूर कन्फ्यूज हो रहे होंगे कि विधान सभा स्पीकर है, तो अब ये प्रोटेम स्पीकर क्या है? कौन होता है, कौन चुनता है, इनकी सैलरी कितनी होती है...? इन सवालों के जवाब के लिए आपको ये खबर जरूर पढ़नी चाहिए...

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Assembly

Protem Speaker: एमपी मे मुख्यमंत्री की शपथ के बाद अब नये मंत्रिमंडल के गठन की कवायद शुरू हो गई है। इसके लिए एमपी की भाजपा सरकार में राज्यपाल ने प्रोटेम स्पीकर चुन लिया है। पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता और रेहली से नौ बार विधायक रहे गोपाल भार्गव को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया है। अब आप जरूर कन्फ्यूज हो रहे होंगे कि विधान सभा स्पीकर है, तो अब ये प्रोटेम स्पीकर क्या है? कौन होता है, कौन चुनता है, इनकी सैलरी कितनी होती है...? इन सवालों के जवाब के लिए आपको ये खबर जरूर पढ़नी चाहिए...

जानिए कौन होता है प्रोटेम स्पीकर

दरअसल प्रोटेम लैटिन भाषा के शब्द प्रो टैम्पोर(क्कह्म्श ञ्जद्गद्वश्चशह्म्द्ग) का संक्षिप्त रूप है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है-'कुछ समय के लिए'। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रोटेम स्पीकर कुछ समय के लिए राज्यसभा और विधान सभा में काम करता है। सीधे और सरल शब्दों में कहा जाए, तो विधानसभा और लोकसभा के स्पीकर के पद पर जो व्यक्ति कुछ समय के लिए या अस्थायी रूप से कार्य करता है, वह प्रोटेम स्पीकर कहलाता है। प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति गवर्नर करता है। आमतौर पर इसकी नियुक्ति तब तक के लिए की जाती है, जब तक कि विधा सभा या लोक सभा में स्थायी रूप से स्पीकर या अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो जाता। ऐसे में प्रोटेम स्पीकर ही नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाता है। शपथ ग्रहण का पूरे कार्यक्रम का जिम्मा प्रोटेम स्पीकर को उठाना होता है।

राज्यपाल ऐसे करता है प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति

प्रोटेम स्पीकर के पद पर सदन के वरिष्ठ सदस्य को चुना जाता है। प्रोटेम स्पीकर उस शख्सियत को ही बनाया जाता है, जो कई बार विधानसभा चुनाव जीत चुका हो। भारत के संविधान के अनुच्छेद 180 के तहत राज्यपाल के पास सदन का प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करने की शक्ति होती है। जब सदन नए स्पीकर की चुनावी प्रक्रिया पूरी हो जाती है और सदन को नया स्पीकर मिल जाता है, उसके बाद यह पद स्वत: समाप्त माना जाता है। इसलिए प्रोटेम स्पीकर का पद अस्थायी होता है।

प्रोटेम स्पीकर के कार्य

1. नए सदस्यों को शपथ दिलाना

2. विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव कराना

3. फ्लोर टेस्ट का काम करना

4. स्थायी स्पीकर चुने जाने तक सदन की गतिविधियों को संचालित करना

5. सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने का कार्य भी प्रोटेम स्पीकर को ही करना होता र्है

मप्र में सबसे लंबे समय तक ये रहे हैं प्रोटेम स्पीकर

आमतौर पर प्रोटेम स्पीकर का कार्यकाल 1-8 दिन का रहता है। लेकिन मप्र के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो अब तक सबसे लंबे समय के लिए ज्ञान सिंह प्रोटेम स्पीकर के पद पर रहे हैं।

यहां जानें कौन कितने दिन के लिए रहा प्रोटेम स्पीकर

- ज्ञान सिंह- 41 दिन के लिए- 2013 में प्रोटेम स्पीकर रहे।

- काशी प्रसाद 2 बार प्रोटेम स्पीकर रहे 1952 और 1956 केवल 20 दिन के लिए

- करीब 2 महीने तक जगदीश देवड़ा प्रोटेम स्पीकर रहे

- 2013-14 में केडी देशमुख 18 दिन के लिए प्रोटेम स्पीकर रहे।

एमपी में 2020 में शुरू की गई प्रोटेम स्पीकर की सेलरी

हालांकि विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर का कार्यकाल आमतौर पर कुछ दिनों का ही होता है। लेकिन 2020 में कोरोना वैश्विक महामारी के चलते एमपी विधानसभा की कार्यवाही 24 मार्च को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बहुमत साबित करने के बाद स्थगित कर दी गई थी। जिससे विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हो सका था। इस कारण उस समय प्रोटेम स्पीकर जगदीश देवड़ा का कार्यकाल समाप्त नहीं हो सका था। वहीं मानसून सत्र में नए विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव होना था। ऐसे में करीब 2 महीने तक जगदीश देवड़ा ही प्रोटेम स्पीकर रहे थे। वहीं यही जगदीश देवड़ा ही मध्य प्रदेश के पहले ऐसे प्रोटेम स्पीकर रहे जिन्हें विधायक के वेतन भत्तों के साथ ही प्रोटेम स्पीकर पद का कार्यभार संभालने के लिए राज्य सभा अध्यक्ष के समकक्ष वेतन और भत्ते मिले। इसके लिए बाकायदा विधान सभा सचिवालय के एक प्रपोजल को सरकार ने मंजूरी दी और एमपी में पहली बार प्रोटेम स्पीकर पद पर रहते हुए विधायक के रूप में मिलने वाले वेतन के साथ ही प्रोटेम स्पीकर के रूप में वेतन देना भी शुरू किया गया। उस समय जगदीश देवड़ा को विधायक के अलावा प्रोटेम स्पीकर के रूप में 75 हजार रुपए अतिरिक्त आर्थिक लाभ दिया गया था। ये वेतन राज्य सभा अध्यक्ष के समकक्ष होता है।

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