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International Tiger Day: ऐसा शहर जहां जंगलों से निकलकर सड़कों पर आ जाते हैं बाघ

International Tiger Day: आपने बाघों को पिंजरे में कैद देखा होगा या किसी जंगल सफारी के देरान घूमते हुए देखा होगा, हम आपको रहे हैं कि भोपाल ऐसा शहर है जहां जंगल से बाहर निकल कर बाग सड़कों पर निकल पड़ते हैं...।

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भोपाल

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Manish Geete

Jul 29, 2019

tiger

International Tiger Day: ऐसा शहर जहां जंगलों से निकलकर सड़कों पर आ जाते हैं बाघ

भोपाल। आपने बाघों ( tigers ) को वाइल्ड लाइफ सेंचुरी ( ( wild life century ) ) में घूमते हुए या फिर चिड़ियाघरों ( Zoo ) में कैद देखा होगा, लेकिन देश में एक शहर ऐसा भी है, जहां बाघ जंगलों से बाहर निकलकर शहर की सड़क पर निकल पड़ते हैं। जी हां, मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल ऐसा शहर है, जिसकी आबादी बढ़ने के साथ ही शहर रातापानी सेंचुरी तक पहुंच गया है। आलम यह है कि वहां से निकलकर बाघ अब शहर की तरफ आ गए हैं। भोपाल और उसके आसपास करीब 7 से 8 बाघ हैं, जो इन दिनों घूम रहे हैं। गौरतलब है कि सोमवार को ही मध्यप्रदेश को फिर से टाइगर स्टेट का दर्जा मिल गया। मध्यप्रदेश के पास देश में सबसे अधिक 526 टाइगर हैं।

पढ़िए International tiger day अंतरराष्ट्रीय टाइगर डे पर विशेष...।

सड़क किनारे लगाने पड़े बोर्ड
भोपाल की आबादी वाले क्षेत्रों तक बाघों का मूवमेंट होने के कारण फारेस्ट विभाग को जगह-जगह चेतावनी के बोर्ड लगाने पड़े। कलियासोत डैम, भदभदा डैम, केरवा डैम समेत कलियासोत डैम के 13 शटर गेट के आसपास लोगों को अलर्ट करने के बोर्ड लगाए गए हैं। यहां अक्सर ही बाघ पानी पीने के लिए कलियासोत डैम, केरवा डैम और भदभदा डैम के आसपास आ जाते हैं।

बाघों को लाइव देखने उमड़ पड़ते हैं टूरिस्ट
अक्सर ही देखा गया है कि भोपाल के इन इलाकों में पर्यटकों की भीड़ होती है, इस बीच कई बार बाघ उन्हें दिख चुका है। कई वीडियो भी वायरल हुए। पर्यटकों को भी खबर लगती है तो वे बाघों को देखने उमड़ पड़ते हैं। क्योंकि भोपाल का कलियासोत और केरवा डैम, समसगढ़ इलाका रातापानी सेंचुरी से लगा हुआ है। रातापानी सेंचुरी में 42 से अधिक बाघ बताए जाते हैं, जिनमें से 7 बाघों का मूवमेंट भोपाल के इस छोटे से जंगल में है। करीब तीन से चार बाघों ने इन इलाकों को अपना क्षेत्र बना लिया है। हालांकि अब तक इन बाघों ने कभी किसी इन्सान पर हमला नहीं किया है।


जब कलियासोत डैम के पास दिखा बाघ
25 अगस्त 2016 कीरात को बाघ टी-1 कलियासोत डैम के पास घूमता नज़र आया। हालांकि इसकी सूचना वन विभाग के अधिकारियों को सुबह ही मिल गई थी जिसकी वजह से वनकर्मियों को रात में गश्त के लिए भेज दिया गया था। इसके साथ ही बाघ टी-1 के लगातार मूवमेंट को देखते हुए सभी चौकियां को सतर्क रहने के लिए कहा गया था। इसके अलावा कैमरे ट्रैप के माध्यम से उसके मूवमेंट पर नजर रखी जा रही थी। हाई डेफिनेशन कैमरे के माध्यम से भी उस पर नजर रखी जा रही थी।

मध्यप्रदेश इसलिए कहलाया टाइगर स्टेट
मध्यप्रदेश को एक बार फिर टाइगर स्टेट का दर्ज मिल गया है। मध्यप्रदेश में 526 बाघ है। मध्यप्रदेश में अवैध शिकार के कारण सबसे ज्यादा बाघ के मरने और पिछले सात सालों में मौतों के बावजूद मध्यप्रदेश को एक बार फिर टाइगर स्टेट का दर्जा मिल गया है। यह देश में सबसे अधिक टाइगर वाला प्रदेश बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर बाघों की संख्या पर रिपोर्ट जारी कर दी। देशभर में बाघों की संख्या को लेकर आंकड़े जारी किए गए हैं।

नए आंकड़ों के मुताबिक देश में बाघों की कुल संख्या 2967 पहुंच गई है। दिल्ली में सोमवार को सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आलइंडिया टाइगर एस्टीमेशन 2018 जारी कर दिया। इसके मुताबिक 2014 के मुकाबले देश में 741 बाघ बढ़ गए हैं। इससे पहले, मप्र 2006 से पहले टाइगर स्टेट कहलाता था। यहां देश में सबसे ज्यादा टाइगर थे। यहां 10 नेशनल पार्क, 5 टाइगर रिजर्व और 25 अभ्यारण्य में टाइगर की संख्या साल 2015 के नवंबर तक लगातार बढ़ रही थी।

देखें फाइल वीडियो

रातापानी बन सकता है टाइगर रिजर्व
प्रदेश में 5 टाइगर रिजर्व हैं। सीधी जिले में संजय गांधी, मंडला जिले में कान्हा किसली, सिवनी जिले में पेंच, पन्ना में पन्ना नेशनल पार्क और उमरिया जिले में बांधवगढ़ नेशनल पार्क। इसमें से बांधवगढ़ में टाइगर का घनत्व ज्यादा है तो कान्हा में सबसे ज्यादा टाइगर हैं। भोपाल के पास रातापानी को भी टाइगर रिजर्व बनाने की कोशिशें चल रही हैं लेकिन फैसला अभी भी नहीं हो पाया है।


कम हो रहे हैं बाघ
कभी बाघ से जिस मध्यप्रदेश की पहचान थी, आज उसी प्रदेश में वही बाघ अपनी पहचान खोता जा रहा था। कुछ वर्षों में बाघों की जिस रफ्तार से संदिग्ध मौतें हुईं, उसने राज्य को बाघों के लिए किलर स्टेट बना दिया था। प्रदेश में 7 सालों में 83 से अधिक बाघों की मौत हो चुकी है।


शहर का पूरा इलाका था बाघों से घिरा
मध्यप्रदेश के वन विभाग के पास 1960 का भोपाल का नक्शा मौजूद है, जिसमें दिखाया गया है कि भोपाल में कहां-कहां बाघों का ठिकाना था। नक्शे के मुताबिक पुराना भोपाल छोड़ दें तो नए भोपाल का लगभग पूरा इलाका बाघों का था, पर आज इन इलाकों में कंक्रीट की इमारतें खड़ी हैं। 1960 तक भोपाल का केरवा, कलियासोत क्षेत्र बाघों से भरा हुआ था। 1980 के दशक तक इन जंगली इलाकों में जब रसूखदारों ने दस्तक दी तो बाघों के आशियाने उजड़ गए।