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भोपाल

अनोखे शिवालयः विश्व का एक मात्र शिवलिंग, जहां सिंदूर चढ़ाने से प्रसन्न होते हैं भोलेनाथ

पत्रिका.कॉम आपको बता रहा है मध्यप्रदेश के अनूठे शिवालयों के बारे में। इस कड़ी में पेश है तिलक सिंदूर की रोचक कहानी।

भोपालApr 22, 2024 / 10:24 am

Manish Gite

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मान्यता है कि जब भस्मासुर शिवजी के पीछे पड़ गए थे, तो उनके प्रकोप से बचने के लिए भोलेनाथ सतपुड़ा की पहाड़ियों में स्थित गुफा में छुप गए थे। यह भी कहा जाता है कि विश्व के सभी शिवलिंगों में यह स्थान ऐसा है जहां शिवलिंग पर जल, दूध, बिल पत्र के साथ ही सिंदूर चढ़ाया जाता है। इसी लिए यह शिवालय बन गया ‘तिलक सिंदूर’।

 

होशंगाबाद जिले के इटारसी से महज 18 किलोमीटर दूर स्थित सतपुड़ा के पहाड़ों में यह स्थान है। यहां एक रहस्यमयी गुफा के भीतर विराजमान है यह अति प्राचीन शिवलिंग। मान्यता है कि यहां शिवलिंग पर सिंदूर चढ़ाने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। यह स्थान प्राचीन काल से आदिवासियों के राजा-महाराजा का भी पूजन स्थल बना हुआ है।

 

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भस्मासुर से बचने यहां भी छुपे थे

माना जाता है कि जब भस्मासुर भगवान शंकर को मारने के लिए पीछे पड़ गया था, तो उससे पीछा छुड़ाने के लिए भगवान ने सतपुड़ा की इन्हीं पहाड़ियों में शरण ली थी। यहां कई दिनों तक छुपने के बाद उन्होंने पचमढ़ी जाने के लिए एक सुरंग का निर्माण किया था। यहीं से वे पचमढ़ी के जटाशंकर में जाकर छुपे थे।

-मान्यताओं के अनुसार आज भी यह सुरंग मौजूद है, जो पचमढ़ी तक पहुंचती है। इसी सुरंग के रास्ते भोले शंकर जटाशंकर गए थे। वहां उन्होंने काफी समय व्यतीत किया था। इसलिए शिवजी का दूसरा घर भी जटाशंकर धाम को कहा जाता है।

 

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यह है पौराणिक महत्व

तपस्वी ब्रह्मलीन कलिकानंद बताते थे कि सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में यह स्थित है। यह ओंकारेश्वर शिवालय के समकालीन शिवलिंग है। यहां की जलहरी चतुष्कोणीय है। सामान्यतः जलहरी त्रिकोणीय होती है। ओंकारेश्वर महादेव के समान ही यहां का जल पश्चिम दिशा की ओर बहता है, जबकि अन्य सभी शिवालयों में जल उत्तर की ओर प्रवाहित होता रहता है। प्राचीन ग्रंथों में भी भारतीय उपमहाद्वीप के इस स्थान का उल्लेख मिलता है, जिसमें इस स्थान को अनोखा बताया गया है।

 

इटारसी से 18 किमी दूर है

इटारसी से 18 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम जमानी में यह स्थान खटामा के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। उत्तरमुखी शिवालय सतपुड़ा के पहाड़ों में है। इस क्षेत्र में सागौन, साल, महुआ, खैर आदि के पेड़ अधिक हैं। यहां छोटी धार वाली नदीं हंसगंगा नदी बहती है।

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यह भी है खास

यह स्थान पहले मकड़ई के शाह परिवार की रियासत का हिस्सा था।
यहां पूजन के लिए पहले शाह परिवार द्वारा ही भुमका नियुक्त किया जाता था।
यहां पर 1925 से मेला लगाने की शुरुआत जमानी के माल गुजार की ओर से की गई थी।
1970 से इस स्थान को जनपद पंचायत केसला द्वारा टेक ओवर किया गया।
यहां का गुफा मंदिर अतिप्राचीन हैं, वहीं 1971 में पार्वती महल का निर्माण हुआ।
देश में एकमात्र ऐसा शिवलिंग है जिस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है।
ओंकारेश्वर के बाद यह दूसरा स्थान हैं जहां चतुष्कोणीय जलहरी है।
यह बमबम बाबा जैसे कई सिद्ध पुरूषों की तपोस्थली भी रही है।
गणेश जी ने जब सिंदूर नामक राक्षस का वध किया तो उसके सिंदूरी खून से शिवजी का अभिषेक यहीं पर किया गया था।
यहां पर नंदी के ऊपर भगवान शंकर की ऐसी मूर्ति है जो देश में दूसरी नहीं है।

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