
माचिसों के माध्यम से भी घर-घर पहुंची थी आजादी की अलख
प्रवीण मालवीय
भोपाल. अंग्रेजी शासन जब आजादी के परवानों पर जुल्मों की इंतहा कर रहा था और आजादी का नाम लेना भी गुनाह था, तब कई संकेतों के माध्यम से आम देशवासियों के दिल में आजादी की अलख जगाने की कोशिश की जा रही थी। ऐसे संकेतों में माचिसें भी शामिल थीं। 1930 से 1947 के बीच देश में कई माचिसों के कवर इस तरह बनाए गए जिससे लोगों में देशभक्ति की भावना जागी, शहर के माचिस संग्रहकर्ता सुनील भट्ट के संग्रह में कई ऐसी माचिस शामिल हैं जिनसे गुलामी के दौर में हर घर तक आजादी का संदेश पहुंचाने का काम किया।
राजघरानों से निकलकर आम आदमी के हाथ आई तो जली अलख
माचिसों के इतिहास के बारे में भट्ट बताते हैं, 20 वीं सदी की शुरुआत तक देश में माचिस निर्माण की फैक्ट्रियां नहीं थी। माचिस स्वीडन और जापान से आती थीं और अंग्रेज अधिकारी और राज घरानों में ही इनका प्रयोग होता था। 1920 में कलकत्ता में माचिस की पहली फैक्ट्री लगी, इसके बाद एक दशक के अंदर इनकी बाढ़ सी आ गई। 1930 तक कलकत्ता में ही सैकड़ों फैक्ट्रियां लग चुकी थीं। जैसे-जैसे माचिसें आम आदमी तक पहुंचने लगी, आजादी के दीवानों ने इनका उपयोग संदेश पहुंचाने के लिए करना शुरू कर दिया। माचिस कवर पर भारत माता, तब का तिरंगा झंडा और कमल, मशाल जैसे आजादी के प्रतीक छापने शुरू कर दिए। जब यह माचिस घर-घर तक पहुंचती तो लोग इन छपे हुए प्रतीकों को संभालकर रखते थे और यह आमजन में लगातार आजादी पाने की चाह बढ़ाते थे।
आजादी के नायकों की तस्वीरें
1940 के बाद की माचिसों पर महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस सहित अन्य आजादी के नायकों के चित्र भी नजर आने लगे। इससे पहले विवेकानंद और शिवाजी पहले ही माचिसों के कवर पर जगह बना चुके थे, लेकिन 1940 के बाद तब के वर्तमान नायकों के चित्र भी दिखाई देने लगे।
आजाद हिंद के लिए जाती थी वॉर क्वालिटी मैच बॉक्स
आजादी के पहले सेना के उपयोग के लिए डेम्प प्रूफ माचिसें विशेष तौर पर बनाई गईं, ऐसी माचिसों की जरुरत नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज को भी थी, ऐसे में आजादी के परवानों ने वॉर क्वालिटी की इन माचिसों की खेप आजाद हिंद सेना के लिए भिजवाने का प्रबंध किया, जिससे आजाद हिंद के सैनिकों ने उपयोग किया बल्कि उनके सामानों में यह माचिसें बरामद भी की गईं, जिन्हें कई लोगों ने संग्रहित किया।
Published on:
26 Jan 2022 04:21 pm
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