
पढ़ाई में मुसीबत बने डीजे और धूमधड़ाके
भोपाल. फरवरी और मार्च महीनों में वार्षिक व बोर्ड परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं। इस समय डीजे और अन्य आयोजनों के धूमधड़ाके से स्टूडेंट्स को परीक्षा की तैयारी करने में खासा खलल पड़ता है। दिन हो या देर रात, आयोजनों का धूमधड़ाका बेरोक-टोक चलता रहता है। इस धूमधड़ाके को रोकने के लिए जिम्मेदार विभाग उदासीन दिखते हैं।
राजधानी में ध्वनि प्रदूषण पढ़ाई में बाधा बन रहा है, लेकिन इसकी सुध जिम्मेदार विभागों को नहीं है। मॉनिटरिंग करने वाली एजेंसी के हिसाब से भी सबकुछ सही चल रहा है। पीसीबी वैसे भी वर्ष में दीवाली के आसपास ध्वनि प्रदूषण नापता है। बाकी के दिनों में शहर में कितना ध्वनि प्रदूषण व शोरगुल बढ़ रहा है, इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
इस समय शादी-सहालग और अन्य आयोजनों के चलते होशंगाबाद, अरेरा कॉलोनी, कोलार रोड, शिवाजी नगर, टीटी नगर समेत पूरे शहर में डीजे का धूमधड़ाका और तेज शोरगुल हो रहा है। शांत माने जाने वाला अरेरा कॉलोनी क्षेत्र भी ध्वनि प्रदूषण की चपेट में है। वहां के लोगों को बहरेपन का शिकार होने की सबसे अधिक आशंका है।
दिन हो या रात शहर में हर जगह तय डेसिबल से कहीं अधिक ध्वनि प्रदूषण किया जा रहा है। पत्रिका टीम ने ध्वनि प्रदूषण का जायजा लिया और मोबाइल एप के जरिए ध्वनि प्रदूषण को नापा। कई स्थानों पर प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पाया गया, जबकि यह समय पीक ऑवर्स में शुमार नहीं था। पीक ऑवर्स में तो प्रदूषण और भी अधिक हो जाता है। ध्वनि प्रदूषण के हिसाब से पीसीबी ने शहर को चार जोन में बांटा है, इंडस्ट्रियल, कमर्शियल, रेसीडेंशियल व साइलेंस जोन। रेसीडेंशियल जोन में ध्वनि प्रदूषण का स्तर अधिक है।
इनसे फैलता है ध्वनि प्रदूषण
तेजी से हो रहे शहरीकरण के चलते बढ़ रहीं निर्माण गतिविधियां, आतिशबाजी, डीजे आदि तेज आवाज पैदा करने वाले उपकरण, जरनेटर सेट, लाउडस्पीकर, पब्लिक एड्रेसिंग सिस्टम, वाहनों के हॉर्न आदि ध्वनि प्रदूषण बढ़ाने के लिए खास तौर पर जिम्मेदार माना जाता है।
गतिविधि आवाज डेसिबल में
ज्वालामुखी विस्फोट 190
डीजे की आवाज 150
बिजली गिरना 120
जेट प्लेन की आवाज 120
फैक्टरी बॉयलर 110
ट्रेन 110
बाइक व कार 90
कुत्ते का भौंकना 70
तेज वार्तालाप 70
टाइपराइटिंग 50
कानाफूसी 15
सांस लेना 10
दिवाली पर ही दिया जाता ध्यान
मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ध्वनि प्रदूषण को लेकर लापरवाह नजर आता है। पीसीबी के सूत्रों की मानें तो सिर्फ दिवाली के आसपास दो बार ध्वनि प्रदूषण स्तर नापा जाता है। बाकी दिनों में तो औपचारिकता पूरी की जाती है। यदि इस समय शहर में अलग-अलग स्थलों पर ध्वनि प्रदूषण नापा जाए तो इसका स्तर कहीं अधिक निकलेगा।
खतरनाक है इतनी तेज आवाज
80 डेसिबल से अधिक ध्वनि प्रदूषण बहरापन जैसी व्याधियां पैदा करता है। इससे अधिक प्रदूषण बढऩे पर कान का पर्दा फटना, कान के अंदर डैमेज, हाइ बीपी, पेट में अल्सर, घबराहट, नर्वस प्रॉब्लम, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, गर्भवती महिलाओं में भू्रण प्रभावित होना आदि परेशानियां हो सकती हैं।
डीजे की स्टार्टिंग साउंड ही बहुत अधिक
डीजे आदि का प्रयोग करने वाले सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स का भी ध्यान नहीं रखते। पुलिस अधिकारी बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार 80 डेसिबल से अधिक ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग नहीं किया जा सकता, जबकि डीजे की स्टार्टिंग साउंड ही 150 डेसिबल तक पार कर जाती है।
शहर में ध्वनि प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ा है। 40-50 डेसिबल तक ही ध्वनि प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए उचित है। इसके अधिक डेसिबल का लगातार शोर सुनने से बहरापन, चिड़चिड़ापन, बीपी, हृदय रोग आदि परेशानियों की आशंका बढ़ जाती है।
- कर्नल (डॉ) राजबाला सिंह भदौरिया, ईएनटी स्पेशलिस्ट-बंसल हॉस्पिटल
तेज आवाज की अभी कोई शिकायत कहीं से नहीं आई है। हमारे पास ध्वनि प्रदूषण नापने के लिए पर्याप्त इंतजाम हैं। रेगुलर फीचर में ध्वनि प्रदूषण की नाप की जाती है।
- डॉ. पीएस बुंदेला, रीजनल अफसर, पीसीबी
सक्षम अधिकारी की अनुमति के बिना डीजे आदि का प्रयोग करने पर कोलाहल अधिनियम व ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाती है और डीजे जब्त भी किया जा सकता है।
- संपत उपाध्याय, एसपी-साउथ
Published on:
02 Mar 2019 10:18 am
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