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उपचुनाव का रण: कांटे के मुकाबले के बीच उम्मीदवारों को सता रहा है ‘नोटा’ का खौफ? जानिए बीजेपी-कांग्रेस का प्लान

उम्मीदवारों को ‘नोटा’ का खौफ?

भोपालOct 13, 2020 / 07:37 pm

Faiz

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उपचुनाव का रण: कांटे के मुकाबले के बीच उम्मीदवारों को सता रहा है ‘नोटा’ का खौफ? जानिए बीजेपी-कांग्रेस का प्लान

भोपाल/ मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव में जीत को लेकर राजनीतिक दल ऐड़ी चौटी का जोर लगाते नजर आ रहे हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो, मौजूदा स्थितियों को देखते हुए हार-जीत का अनुमान लगाना फिलहाल मुश्किल है। उपचुनाव की सभी 28 सीटों पर होने जा रहे मुकाबले में हर सीट पर कांटे की टक्कर है। हालांकि, ये पहला मौका है जब उम्मीदवारों के चहरे पर एक-एक वोट की चिंता साफ दिखाई दे रही है। उम्मीदवारों की बड़ी चिंता उनके हिस्से के वोट ले जाने वाले नोटा की है।

 

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[typography_font:14pt;” >आधा दर्जन सीटों पर नोटा ने बदल दिये थे समीकरण

दरअसल, 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में आधा दर्जन सीटें ऐसी भी थीं, जहां उम्मीदवारों की हार-जीत का बड़ा कारण नोटा बन गया था। यही कारण है कि, इस बार भी सीट जीतने को लेकर प्रत्याशी एक-एक वोट को लेकर फिक्रमंद नजर आ रहे हैं। नोटा यानी वो विकल्प, जिसका चयन मतदाता उस समय करता है, जब उसे सीट पर उतारे गए किसी भी दल का प्रत्याशी पसंद नहीं आता। ऐसी स्थिति में मतदाता मशीन में दिये गए नोटा का बटन दबाकर किसी उम्मीदवार का चयन न करने को वोट देता है। यही कारण है कि, भाजपा हो या कांग्रेस दोनो ही दलों के प्रत्याशियों को इस बार नोटा का खौफ दिखाई दे रहा है और प्रत्याशी अपना वोट पकाने के लिए मतदाता को लुभाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।

 

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गृहमंत्री ने कहा- इस वजह से मिलेगा पार्टी को फायदा

हालांकि, मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि, इस बार नोटा का कोई बड़ा रोल नहीं होगा और भाजपाई जिस तरीके से घर-घर जाकर लोगों को सरकार की उपलब्धियों के बारे में बताकर जनसंपर्क कर रहे हैं, उसका फायदा जरूर पार्टी को होगा। उन्होंने कहा कि, वोटर अपना वोट कमल पर ही देगा। दरअसल, प्रदेश की 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव से पहले 2018 के नतीजों पर नजर डालें तो काफी संख्या में लोगों ने नोटा का बटन दबाया था। इन वजहों से कुछ सीटों पर जीत का अंतर काफी कम हो गया था।

 

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ये रहे आंकड़ें

सुवासरा से हरदीप सिंह डंग विधानसभा चुनाव के दौरान सबसे कम मात्र 350 वोटों से जीते थे, जबकि यहां पर नोटा को 2976 वोट मिले थे। इसी तरह नेपानगर में सुमित्रा कासडेकर 1264 वोटों से जीती थींं, यहां 2551 मत नोटा पर डले थे। ब्यावरा से गोवर्धन दांगी ने 1481 वोट जीत हासिल की थी, इस सीट पर 1481 वोट ही नोटा को मिले थे। वहीं, सांवेर में तुलसी सिलावट 2945 वोटों से जीते थे, जबकि यहां पर नोटा को 2591 वोट मिले। इसकी वजह से यहां पर जीत का अंतर महज 354 वोट ही रहा था। वहीं, आगर में बीजेपी के मनोहर ऊंटवाल को 2490 वोटों से जीत हासिल की थी।

 

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इस बार नोटा वाले वोट उनके खाते में जाए

वहीं, कांग्रेस भी नोटा के वोटों को अपने खाते में लेने की हर संभव कोशिश कर रही है। इसके लिए कांग्रेस ने कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर पर मेहनत की जिम्मेदारी सौंपी है। बहरहाल, 2020 के उपचुनाव में जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे नेताओं को चिंता इस बात को लेकर भी है कि, चुनाव में उनका खेल बिगाड़ने वाला नोटा इस बार भी कहीं भारी न साबित हो जाए। दोनों ही दल जनता को जागरूक कर नोट की बजाए उनके पक्ष में मतदान की अपील करते नजर आ रहे हैं। लेकिन तमाम मुद्दों के बीच सियासी दलों से टूट चुका आम मतदाता की पसंद पर इस बार नोटा कितना खरा उतरता है यह देखना भी दिलचस्प होगा।

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