भोपाल

Shri Krishna Gaman Path: मथुरा से चलकर कोटा के रास्ते उज्जैन आए थे भगवान श्रीकृष्ण, देखें गमन पथ के चुनिंदा स्थान

Shri Krishna Gaman Path: मध्य प्रदेश शासन जल्द ही इस मार्ग को 'श्रीकृष्ण गमन पथ' के रूप में विकसित करने वाली है। सीएम डा. मोहन यादव ने भोपाल में इसकी घोषणा की है। ऐसे में मान्यताओं के अनुसार, श्रीकृष्ण गमन पथ के मार्ग के बारे में जानते हैं।

2 min read

Shri Krishna Gaman Path: द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलदाऊ के साथ गुरु श्रेष्ठ सांदीपनि से शिक्षा प्राप्त करने उज्जैन आए थे। भगवान मथुरा से रणथंबौर, दंडगढ़, कोटा होते हुए उज्जैन पहुंचे थे। हालांकि, प्रदेश के धार और रायसेन जिलों में स्थित प्रसिद्ध स्थानों से भी श्रीकृष्ण का खास कनेक्शन है। धार्मिक विद्वानों, पुरातात्विदों और साहित्यिक प्रमाणों के आधार पर भगवान के उज्जैन पहुंचने वाले मार्ग की खोज कर ली है। जबकि, अन्य इलाकों की प्रमाणिकता की पड़ताल की जा रही है। अब मध्य प्रदेश शासन जल्द ही इस मार्ग को 'श्रीकृष्ण गमन पथ' के रूप में विकसित करने जा रहा है। मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने भोपाल में इसकी घोषणा की है।

पुराविद् डा. रमण सोलंकी ने मीडिया से चर्चा के दौरान कहा कि मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव 18 साल पहले ही इस दिशा में काम शुरू कर चुके हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण गमन पथ की खोज के लिए पुरातत्वविद और साहित्यकार स्व. डा. श्यामसुंदर निगम की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। इसमें पुरातत्विद डा. भगवतिलाल राजपुरोहित, पुराविद डा. रमण सोलंकी, साहित्यकार डा. केदारनारायण जोशी के साथ पुरातत्व और साहित्य से जुड़े अनेक विद्वान व शोधार्थी शामिल थे। समिति ने लगातार पुरातत्व व साहित्य प्रमाणों के आधार पर श्रीकृष्ण गमन पथ की खोज की। इन्हीं प्रमाणों के आधार पर विद्वानों ने तय किया कि भगवान श्रीकृष्ण मथुरा से मेहंदीपुर बालाजी, रणथंबौर, दंडगढ़, कोटा के रास्ते छोटे-छोटे गांवों से होते हुए उज्जैन पहुंचे।, जबकि इसके आगे धार और रायसेन की तरफ भी अलग अलग मौकों पर आए।

3 बार आए श्रीकृष्ण

विद्वानों का मत है कि भगवान श्रीकृष्ण तीन बार उज्जैन आए थे। पहली बार शिक्षा ग्रहण करने, दूसरी बार रुक्मिणी विवाह के लिए तथा तीसरी बार उज्जैन की राजकुमारी मित्रवृंदा से विवाह करने हेतु आए थे। आगे के मार्ग की खोज का कुछ काम शेष है। जल्द ही संपूर्ण पथ गमन को एक सर्किट के रूप में चिह्नित कर लिया जाएगा।

श्रीकृष्ण लीला का साक्षी स्वर्णगिरी पर्वत

गुरुश्रेष्ठ सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण करने आए भगवान श्रीकृष्ण सांदीपनि आश्रम में चौंसठ दिन रहे। इस दौरान उन्होंने विद्या अध्ययन के साथ गो सेवा, आश्रम के अन्य शिष्यों की तरह गुरु व गुरुमाता की सेवा की। एक दिन गुरुमाता के आदेश पर भगवान श्रीकृष्ण सुदामा जी के साथ कुरुकुल की भोजनशाला के लिए स्वर्णगिरी पर्वत पर लकड़ियां लेने गए थे। महिदपुर तहसील के ग्राम नारायणा व चिरमिया में आज भी यह स्थान श्रीकृष्ण की लीला का साक्षी है। गिरीराज गोवर्धन की तरह देशभर से भक्त स्वर्णगिरी पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं।

Updated on:
22 Jun 2024 02:18 pm
Published on:
22 Jun 2024 02:17 pm
Also Read
View All

अगली खबर