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बीकानेर: खेजड़ी की कटाई से संकट में पशुपालक, सांगरी पहुंची 1400 रुपए प्रति किलो, सूखी पत्तियां आती हैं चारे के काम

बीकानेर जिले में औसत प्रति हेक्टेयर 40 से 50 परिपक्व खेजड़ी नजर आती है। अभी सोलर प्लांट लगाने वाली जगह पर एक भी खेजड़ी नहीं दिखती। पढ़ें दिनेश कुमार स्वामी की ये स्पेशल रिपोर्ट...

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Bikaner News Khejri Tree

Khejri Tree (Patrika Photo)

बीकानेर: खेजड़ी कटने पर शासन-प्रशासन के मूकदर्शक बने रहने का नतीजा अब सामने है। जो सांगरी राजस्थानी देशी खाने की शान बनी, वह ही थाली से गायब होने को है। सोलर प्लांट लगाने के लिए खेजड़ी काटने की पांच साल पहले जब शुरुआत हुई, तब 400 रुपए प्रति किलो सांगरी मिलती थी। आज यह 1400 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई है। अब तक करीब पांच लाख से ज्यादा खेजड़ी कट चुकी है।


जिले में खेजड़ी के 5 लाख से ज्यादा पेड़ कटने के आंकड़े का सत्यापन पुरानी सैटेलाइट इमेज करती हैं। इनमें बीकानेर जिले में औसत प्रति हेक्टेयर 40 से 50 परिपक्व खेजड़ी नजर आती है। अभी सोलर प्लांट लगाने वाली जगह पर एक भी खेजड़ी नहीं दिखती।


जिले में 8 से 9 हजार हेक्टेयर भूमि सोलर की जद में आ चुकी है। इस पर से खेजड़ी का सफाया हो चुका है। औसत 50 खेजड़ी के हिसाब से भी देखें, तो खेजड़ी कटने का यह आंकड़ा करीब साढ़े चार लाख खेजड़ी तक पहुंच जाता है।


पशुपालकों के सामने संकट


पशुपालक चारे का संकट झेल रहे हैं। हर घर में सूखी सब्जी के रूप में रहने वाली सांगरी घरों से गायब हो रही है। पशुपालक बताते हैं कि खेजड़ी के सूखे पत्ते का पशु चारा अभी 800 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। चार-पांच साल पहले यह 400 रुपए प्रति क्विंटल आसानी से मिल जाता था। जिस गति से खेजड़ी काटी जा रही है, सांगरी 10 हजार रुपए प्रति किलो भी नहीं मिलेगी। पशु चारे के भाव पांच साल में दोगुना हो गए। यानी अगले पांच साल में यह भी 1500 रुपए प्रति क्विंटल पहुंच जाएगा।


रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का बड़ा साधन


क्षेत्र में खेजड़ी की वजह से सांगरी भी खूब होती रही है। सांगरी में हेल्दी फूड कंटेंट होते हैं। इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। कोरोना काल के दौरान राजस्थान में मृत्य दर सबसे कम रहने का एक बड़ा कारण यहां के घरों की रसोई में कैर-सांगरी का भरपूर उपयोग भी रहा है। अब सांगरी महंगी शादियों तक सीमित हो रही है। घर की रसोई से धीरे-धीरे गायब हो रही है।


टॉपिक एक्सपर्ट : जैव विविधता पर प्रहार


अंधाधुंध खेजड़ी और अन्य वृक्षों की कटाई से सबसे बड़ा नुकसान यहां प्राकृतिक रूप से ऑक्सीजन की उपलब्धता के रूप में सामने आएगा। खेजड़ी का वृक्ष पौष्टिक फूड एंड फॉडर का बड़ा स्रोत है। इसकी सांगरी सब्जी बनाने के काम आती है। सूखे पत्ते व पकी फलियां (लूंग व खोखे) पशुओं के लिए पौष्टिक आहार के रूप में काम लिए जाते हैं।


इसके साथ ही इसके खोखे व पत्तियों को हिरण, नील गाय जैसे स्वच्छंद विचरण करने वाले पशु खाते हैं। चूहे, गिलहरी और सैही जैसे छोटे जीव इसके खोखो पर पलते हैं। पक्षियों के आवास और मधुमिक्खयों के छत्ते भी होते हैं।


कुल मिलाकर एक खेजड़ी काटने पर केवल एक वृक्ष नहीं कटता। उसके आसपास की पूरी फूड चेन नष्ट हो जाती है। रेप्टाइल और अन्य जीवों के आवास छिन जाते हैं। खेजड़ी की छाल का आयुर्वेद में दवा के रूप में भी उपयोग होता है।
-प्रो. अनिल छंगाणी, महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर


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