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फूस की झोपड़ियां… चूल्हे पर पकती बाजरे की रोटियां, बीकानेर में अब सिर्फ रेत नहीं उड़ते, रेगिस्तान में बने ‘देशी रिसॉर्ट’

देशी खानपान… मिट्टी की झोपड़ियां… चूल्हों पर पकती रोटियां और गांव की सुबह की सैर। देशी-विदेशी सैलानियों के मनोभावों को पकड़ती सोच को व्यवसाय के रूप में अब बीकानेर के गांव अपनाने में आगे आने लगे हैं।

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Bikaner Tourism

बीकानेर के गावों में नया टूरिज्म (फोटो-पत्रिका)

अतुल आचार्य:बीकानेर। जहां कभी सिर्फ ऊंट, हवेलियां और रेगिस्तानी विस्तार ही बीकानेर की पहचान थे। अब वहीं के गांवों और ढाणियों में एक नया बीज अंकुरित हो रहा है। यह बीज है ग्रामीण पर्यटन का, जिसे युवा पीढ़ी अपनी सोच और मेहनत से सींच रही है। यह ऐसा पर्यटन है, जिसके विदेशी भी दीवाने हो रहे हैं।

देशी खानपान… मिट्टी की झोपड़ियां… चूल्हों पर पकती रोटियां और गांव की सुबह की सैर। देशी-विदेशी सैलानियों के मनोभावों को पकड़ती सोच को व्यवसाय के रूप में अब बीकानेर के गांव अपनाने में आगे आने लगे हैं। नतीजा यह है कि ग्रामीण पर्यटन की ट्रेन भी अब बीकानेर के रेगिस्तान में चल पड़ी है।

रेगिस्तान में सिर्फ रेत नहीं उड़ते

युवा पीढ़ी का यह कॉन्सेप्ट देशी ही नहीं, बल्कि विदेशी सैलानियों को भी लुभा रहा है। कह सकते हैं कि बीकानेर के धोरों में अब सिर्फ रेत नहीं उड़ती। उमीदें भी अंकुरित हो रही हैं और उन्हें सींच रही है गांव की नई पीढ़ी, जो अपने ही परिवेश को सैलानियों के लिए नया अनुभव बना रहे हैं।

गांवों की चौपाल से रिसॉर्ट तक का सफर

बीकानेर के सियाणा और रायसर जैसे गांवों में अब छोटे-छोटे ग्रामीण थीम रिसॉर्ट खुल गए हैं। जहां सैलानी सिर्फ ठहरने नहीं आते, बल्कि गांव को जीने आते हैं। यहां पर चारपाई, झोपड़ी, देसी चूल्हा, मिट्टी के बर्तन और लोकगीतों से सजे अनुभव उन्हें एक नई दुनिया में ले जाते हैं।

कैर-सांगरी का नाश्ता और चूल्हे की रोटी

सियाणा गांव में एक रिसॉर्ट चला रहे भवानी सिंह भाटी बताते हैं कि- 'यहां सुबह पर्यटकों को गांव की सैर करवाई जाती है। फिर देसी नाश्ता कैर-सांगरी, चटनी, राबड़ी और बाजरे की रोटी चूल्हे पर बनती है। लोग झोपड़ी में सोते हैं और बाहर खुली चौपालों में चाय पीते हैं।'

देसी स्वाद बन रहा सबसे बड़ी पहचान

राजस्थानी सूखी सब्जियां, चूल्हे में बनी बाजरे की रोटियां और मिट्टी के बर्तनों में परोसा गया भोजन। इस ग्रामीण पर्यटन की यही असली यूएसपी बन रही है। रिसॉर्ट्स में पर्यटकों को सिर्फ खाने का नहीं, खाना बनाने का अनुभव भी करवाया जा रहा है। यह सहभागिता उन्हें राजस्थान की संस्कृति से और मजबूती के साथ जोड़ रही है।

ढाणी में बदली सोच, बदला फोकस

स्थानीय पर्यटन विकास से जुड़े विजय सिंह रायसर कहते हैं- 'पहले बीकानेर की पहचान सिर्फ हवेलियों और जूनागढ़ तक सीमित थी। अब गांवों की ओर भी नजर जा रही है। डेजर्ट साइट्स के पास बनाए जा रहे रिसॉर्ट्स में देसी रहन-सहन को आधुनिक सुविधा के साथ जोड़ा जा रहा है।'

रेगिस्तान में सस्टेनेबल टूरिज्म

रेगिस्तान की झोपड़ियां भी खास हैं। गर्मी में ठंडी और सर्दी में गर्म रहती हैं। यही वजह है कि सस्टेनेबल टूरिज्म यानी स्थायी पर्यटन का एक उदाहरण बनते जा रहे हैं ये गांव।

पर्यटन का बदलता नक्शा

बीकानेर जैसे रेगिस्तानी इलाके में अब पर्यटन का नक्शा बदल रहा है। अब वह सिर्फ ऐतिहासिक किलों तक नहीं, बल्कि गांव की चौपाल, खेत की मेड़ और मिट्टी की महक तक पहुंच रहा है। बाहर से आए पर्यटक हों या देशी ट्रैवलर, सभी अब 'अनकही कहानियों' की तलाश में गांवों की ओर रुख कर रहे हैं।

परंपरा और स्थानीयता का नया रूप

इस बदलते परिदृश्य में सबसे बड़ी भूमिका निभा रही है युवा सोच। जो कभी शहरों की ओर रोजगार के लिए भागते थे, अब वही गांवों में रहकर संस्कृति, परंपरा और स्थानीयता को नया रूप देकर पर्यटन के जरिए रोजगार भी पैदा कर रहे हैं।