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विश्व आदिवासी दिवस: विकास की रेल कागजों पर दौड़ी, ये आज भी वहीं जहां पहले खड़े थे

अधिकांश आज भी विकास की मुख्यधारा से दूरशिक्षा, स्वास्थ्य के साथ मूलभूत सुविधा से भी फिलहाल दूर  

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बिलासपुर - सरगुजा और बिलासपुर संभाग की बात करें तो आदिवासी समाज विशेषकर जो गांवों में हैं, जंगलों में हैं आज भी विकास की मुख्यधारा से पिछड़ा हुआ है। समाज के लोग बुनियादी सुविधा की तंगी तो झेल ही रहे हैं साथ ही गंभीर समस्या से भी पीडि़त हैं।
सिम्स और जिला अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार सिकल सेल और एनीमिया जैसे गंभीर बीमारियों से सबसे अधिक संरक्षित जनजाति के लोग ही पीडि़त है। वहीं अगर बात की जाए कुपोषण की तो इससे भी सबसे अधिक प्रभावित आदिवासी बच्चे ही है। शिक्षा में सबसे अधिक ड्रॉपआउट रेट और सबसे कम महिला साक्षरता दर भी इन्ही की है।

बड़े हैरानी की बात है कि करोड़ों का फंड है, योजनाएं हैं इसके बावजूद आदिवासी समाज विकास की मुख्यधारा से दूर है। विशेष संरक्षित जनजाति की बात करें तो स्थिति और भी गंभीर दिखती है, विकास की रेल कागजों पर दौडकऱ गुजर जा रही है पर ये समुदाय आज भी वहीं खड़ा है जहां ये सदियों से खड़ा था।

आता है करोड़ों का फंड
छत्तीसगढ़ सर्व विशेष पिछड़ी जनजाति कल्याण समिति के प्रदेश अध्यक्ष उदय पंडो ने बताया कि विशेष पिछड़ी जनजाति 7 प्रकार के होते हैं। 2 विशेष पिछड़ी जनजाति के विकास लिए हर वर्ष 55 लाख का फंड राज्य सरकार द्वारा जारी किया जाता है। वहीं 5 अन्य विशेष जनजातियों के लिए केंद्र सरकार से हर साल प्रदेश को 1 करोड़ का फंड आता है। इसके बाद भी इनकी असल स्थिति वर्षो पुरानी ही है।


शिक्षा की स्थिति
भारत सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ़ ट्राइबलस अफेयर से प्राप्त डाटा के अनुसार राज्य के आदिवासी युवाओं के शिक्षा की बात की जाए तो सबसे अधिक स्कूल ड्रॉपआउट रेट इस समाज के बच्चों की है। छत्तीसगढ़ में केवल 55 प्रतिशत आदिवासी बच्चे ग्रेजुएट है,ं वहीं अगर बात पोस्ट ग्रेजुएशन की, की जाए तो केवल 38 प्रतिशत आदिवासी छात्र पोस्ट ग्रेजुएशन की पढाई पूरी कर पा रहे हैं। जबकि एकलव्य, और प्रयास विद्यालय लगातार खोले जा रहे हैं।

ग्राउंड स्कैन

00. सरगुजा जिले में विशेष संरक्षित जनजातियों की स्थिति में कुछ सुधार जरूर आया है पर अभी भी यह जनजाति पूर्ण विकास से कोसों दूर है। छत्तीसगढ़ सर्व विशेष पिछड़ी जनजाति कल्याण समिति के प्रदेश अध्यक्ष उदय पंडो ने बताया कि केंद्र व राज्य सरकार का फंड केवल कागजों पर है धरातल पर नहीं पहुंच पा रहा है।
कर रहे हैं काम
आदिम जाति तथा अनुसूचित जनजाति विकास विभाग के कमिश्नर डीपी नागेश ने बताया कि संरक्षित जनजातियों के विकास के लिए शासन द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही है। संरक्षित जनजातियों को वन भूमि पट्टा दिया जा रहा है। सबसे ज्यादा उनके शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है।

00. जांजगीर
जिले में केवल पांच फीसदी लोग संरक्षित जनजाति के हैं। इन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ मिल रहा है। जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा, अकलतरा ब्लाक में ढाई फीसदी संरक्षित जाति के लोग हैं तो वहीं सक्ती जिले में ढाई फीसदी लोग ही शामिल हैं। सहायक आयुक्त आदिम जाति कल्याण विभाग सीएस उईके ने बताया कि संरक्षित जाति के तकरीबन 40 हजार लोग निवासरत हैं। इन्हें सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिल रहा है।

00. रायगढ़
जिले में संरक्षित जनजातियों के परिवारों की संख्या 1229 है। इनकी कुल संख्या में 4 हजार 739 है। संरक्षित जनजातियों को योजना का लाभ दिए जाने की बात विभागीय अधिकारी कर रहे हैं, लेकिन कोरवा समाज के सूरज का कहना है कि समाज का कागजों में विकास हो रहा है।

वर्जन - शासन के द्वारा संरक्षित जनजाति के लिए जो योजनाएं बनाई जाती है। उसका क्रियान्वयन विभाग के द्वारा किया जाता है। जिले में संरक्षित जनजाति परिवार के उत्थान के लिए विभाग कार्य कर रहा है।
बीके राजपूत, बीके राजपूत, सहायक आयुक्त, आदिवास विकास विभाग

00. कोरबा, यहां कोरवा ही बदहाल
जिस संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा के नाम पर कोरबा जिले का नाम रखा गया, आज भी वह जनजाति विकास की मुख्य धारा से काफी दूर है।
कोरबा जिले में संरक्षित जानजाति पहाड़ी कोरवा और बिरहोर परिवार के तीन हजार 12 सदस्य निवास करते हैं। कोरबा जिले में सबसे अधिक दो हजार 464 पहाड़ी कोरवा हैं। इस जनजाति के लोग कोरबा और पोड़ी उपरोड़ा विकासखंड के अलग- अलग गांव में रहते हैं। संरक्षित जानजाति आर्थिक तौर पर काफी कमजोर हंै। सडक़, बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं इनसे दूर हैं। अशिक्षा और जागरुकता की कमी से कई बीमारियां भी इन्हें घेर रही हैं।

वर्जन - कोरबा जिले में संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा और बिरहोर की आबादी लगभग तीन हजार है। इनके विकास को लेकर सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं
श्रीकांत कसेर, सहायक आयुक्त, आदिवासी विकास विभाग कोरबा