
Weather News: सच होती मौसम की भविष्यवाणी, 80% तक सटीक हो रहा मौसम का पूर्वानुमान, बच रही लाखो लोगों की जान
जयंत कुमार सिंहबिलासपुर. मौसम की भविष्यवाणी या पूर्वानुमान अब सटीक होने लगी है। पिछले 10 साल और हाल ही के साल की बात करें तो इसमें 50 से 80% तक का सुधार आया है। वहीं छत्तीसगढ़ के मौसम वैज्ञानिक कहते हैं कि पूर्वानुमानों में 90% की सटीकता आई है। इसके पीछे कारण स्पष्ट है। पहले की तुलना में आधुनिक संसाधन, कौशल प्रशिक्षण व मौसम का न्यूूमेरिकल वेदर प्रिडिक्शन में 14 मॉडल को शामिल किया गया जो एक्यूरेसी (सटीकता) को बढ़ाता है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत मौसम विभाग भारी वर्षा, लू, गरज के साथ तूफान और चक्रवातों के संबंध में पूर्वानुमान कौशल में महत्त्वपूर्ण सुधार हुए हैं और इसमें सटीकता आई है। अभी भी बादल का फटना, भूस्खलन, हिमस्खलन व भूकंप आदि पहुंच से दूर बने हुए हैं।
गलत चेतावनी में सुधार
भारी वर्षा की गलत चेतावनी की दर या न देने की दर 2021 में 26 %। इसमें 53% का सुधार लू की गलत चेतावनी के वर्ष 2021 में 63 से 82% का सुधार। 24, 48, 72 घंटे की लीड अवधि में चक्रवातों का पता लगाने में पिछले वर्षों की तुलना में वर्ष 2021 में 63, 91, 164 किमी का सुधार।
भारी वर्षा की चेतावनी के लिए : 2021 में संभावना 74 % वहीं 2002 से 2020 के बीच इसी अनुमान में 51 % सुधार
लू की चेतावनी के लिए : 2021 में संभावना 97%वहीं 2014 से 2020 के बीच इसी के अनुमान में 15% सुधार
तूफान की चेतावनी के लिए : 2021 में संभावना 86% वहीं 2016 में 31% प्रतिशत थी। 55 % सुधार इसमें हुआ।
मार्च से जून 2021 के दौरान तीन घंटे के तत्काल पूर्वानुमान के साथ गरज के साथ तूफान की चेतावनी का पता लगाने की संभावना 79 % सटीक रही
(नोट: आंकड़े 24 घंटे की लीड के आधार पर)
सटीकता के प्रमुख कारण
क्षमताओं में बेहतरी के लिए मानसून मिशन की शुरुआत की है। जिसका पहला चरण 2012-2017 था। वहीं दूसरा चरण 2017-2022 है। इसके तहत भारत अपनी उच्च कंप्यूटिंग निष्पादन प्रणाली यानि एचपीसी का विस्तार कर रहा है। लंबे समय के पूर्वानुमान के लिए देश में नए सांख्यिकीय मॉडलों, कपल्ड एटमॉस्फियर ओशन मॉडल यानी एमएमसीएफएस और मल्टीएनसेंबर प्रणाली का प्रयोग शुरू हुआ। मौसम की गणना के लिए पहले जीएफएस, जीईएफएस और डब्ल्यूआरएफएस का प्रयोग होता था। अब 14 मॉडल का प्रयोग। जिससे सटीकता बढ़ी।
बादल फटना-भूस्खलन पर काम जारी
वैज्ञानिकों के लिए बादल फटना, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं अभी दूर की कौड़ी है। इस मामले में प्रयास चल रहा है। जहां तक बादल फटने की बात है इसके लिए भारी वर्षा की चेतावनी जारी होती है लेकिन बादल फटने का एरिया काफी कम होता है और इसमें सही जगह की गणना मुश्किल होती है।
एक्सपर्ट व्यू
मौसम पूरी तरह से प्राकृतिक है फिर भी हमारे पूर्वानुमान अब सटीकता के करीब पहुंच चुके हैं। पूरे देश के साथ छत्तीसगढ़ में भी मौसम के पूर्वानुमान में 80 से 90 प्रतिशत की सटीकता आई है। पिछले वर्ष ठंड के दिनों में दिसंबर से फरवरी तक हमारे पूर्वानुमान लगभग शत-प्रतिशत सटीक थे। नई तकनीक, नए सेटअप, कर्मियों का कौशल प्रशिक्षण काफी सहायक रहा है। प्रकृति पर किसी का जोर नहीं है फिर हमारी कोशिश इस दिशा में लगातार जारी है।
-एच.पी. चंद्रा, मौसम वैज्ञानिक, आईएमडी रायपुर
Published on:
13 Nov 2022 11:38 am
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