हाइपर एक्टिविटी और उसकी किस्म के हिसाब से दवाएं मौजूद हैं। इनसे भी ज्यादा जरूरी है माता-पिता की सूझबूझ व समझाइश। जैसे- – माता-पिता को सबसे पहले यह समझना चाहिए कि उनका बच्चा दूसरे बच्चों से अलग है लेकिन असामान्य नहीं। बच्चे की एक्टिविटी को सबसे पहले घरवालों को स्वीकार करना चाहिए लेकिन दूसरों के सामने बार-बार उसे असामान्य न कहें। ऐसा करने से बच्चे में हीन भावना बढ़ने लगती है और वह धीरे-धीरे जिद्दी होकर मनमर्जी करने लगता है।
– गहरी सांस का अभ्यास कराएं। गुस्सा या चिड़चिड़ेपन की स्थिति में गहरी सांस उपचार का काम करती है।
– घरेलू काम में बच्चों को शामिल करें। साथ ही उन्हें जिम्मेदारी भी सौंपें।
– बच्चे को घुमाने ले जाएं। उन्हें खेलने दें और स्कूल के काम व खेल के बीच संतुलन बनाना सिखाएं।
– बच्चों की किसी भी हरकत पर फौरन प्रतिक्रिया न दें। उनके साथ खुद भी धैर्यवान बनें।
– बच्चा अगर शर्मीला है तो उसे अपने साथ सामाजिक कार्यक्रमों में लेकर जाएं। उसे गु्रप में रहने के लिए प्रेरित करें। लेकिन यह भी ध्यान रखें कि कोई बच्चे का मजाक न बनाए।
– घर में किसी प्रकार का झगड़ा या कलह है तो इसे बच्चे के सामने न आने दें। इससे बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
ऐसे मामले इन दिनों ज्यादा देखने में आ रहे हैं। लेकिन माता-पिता निराश न हों। दवाओं और पर्याप्त चिकित्सकीय और मनोवैज्ञानिक परामर्श से बच्चों की एकाग्रता में सुधार किया जा सकता है। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को समझें। उन्हें दंड देने या किसी अन्य बच्चे से उसकी तुलना करने से बचें। बच्चे की हिम्मत बढ़ाएं और इसके लक्षण पहचानते ही डॉक्टर से तुरंत परामर्श करें।