
Sonu ke Titu ki Sweety and Nanu ki Jaanu
फिल्मों का देसी नाम रखकर दर्शकों के साथ जुड़ाव साधने का आजकल चलन सा बन गया है। इसकी बानगी हालिया रिलीज फिल्म 'सोनू के टीटू की स्वीटी' के नाम में भी देखने को मिली। नाम का उच्चारण करना थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन इसमें देसीपन भी है, जो दर्शकों को अपना सा लगता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह टोटका 'देसी' दर्शकों के साथ जुड़ाव कायम करने में मददगार साबित होता है।
इन फिल्मों के नामों में देसीपन:
कुछ फिल्में जो रिलीज होने वाली हैं उनके नामों में देसीपन है, जैसे 'बत्ती गुल मीटर चालू', 'वीरे दी वेडिंग', 'दिल जंगली', 'नानू की जानू', 'शादी तेरी बजाएंगे बैंड हम', 'चंदा मामा दूर के', 'संदीप और पिंकी फरार', 'सुई धागा', 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' और 'पल पल दिल के पास'। इन फिल्मों के नाम अपने दिलचस्प शीर्षक की वजह से पहले ही लोगों के मन में उत्सुकता पैदा कर चुके हैं।
देसी शीर्षक का दर्शकों के साथ जुड़ाव: मनु ऋषि
अभिनेता व लेखक मनु ऋषि चड्ढा का कहना है कि देसी शीर्षक दर्शकों के साथ एक जुड़ाव कायम करते हैं। मनु ने कहा, 'दर्शकों को लगता है कि जैसे यह उनकी अपनी कहानी है। तो, यह एक आम परिवार के दिल में जगह बनाने, उनका प्यार और सराहना पाने का प्रयास है, जो बॉक्स ऑफिस पर अच्छा परिणाम देता है।' उन्होंने कहा,'भारत के 80 फीसदी लोग फिल्मों में अपने जैसे किरदार पाते हैं, तो अगर एक फिल्म का शीर्षक उन्हें अपनेपन जैसे एहसास कराता है तो उनके दिल में जगह बनाने के साथ ही यह बॉक्स ऑफिस के परिणाम को भी अपने पक्ष में कर लेता है।'
यह तरीका काम कर गया: लव रंजन
'सोनू के टीटू की स्वीटी' के निर्देशक लव रंजन का कहना है कि फिल्म के नाम ने लोगों को आश्चर्य में डाल दिया, उन्हें इसके सही उच्चारण में मुश्किल हुई, कुछ लोगों ने तो 'ट्वीटी' कह डाला, लेकिन यह तरीका काम कर गया।
Published on:
02 Apr 2018 07:54 pm
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