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कटे हाथ से भी हवा से बातें करते हैं दिव्यांग साइकिल राइडर

आर्थिक तंगी के दौरान घटी एक घटना ने बदल दिया जीवन

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कटे हाथ से भी हवा से बातें करते हैं दिव्यांग साइकिल राइडर

कटे हाथ से भी हवा से बातें करते हैं दिव्यांग साइकिल राइडर

चेन्नई.

किसी शायर ने क्या खूब कहा है कि मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों मेें जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। कुछ ऐसी ही कहानी है महानगर के कोडंगयुर निवासी 37 वर्षीय दिव्यांग तमीम अंसारी बी. की। दाहिना हाथ नहीं होने के बावजूद जब वे साइकिल चलाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे हवा से बात कर रहे हैं। उनके जज्बे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दो सालों से रोजाना सुबह 50-100 किमी साइकिल से यात्रा करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है।

16 साल की उम्र में खोना पड़ा दाहिना हाथ

मात्र 16 साल की उम्र में दाहिना हाथ खो देने का बाद भी वह पानी से भरे बैग, आपातकालीन चिकित्सा किट और कंधे पर पंचर किट लटकाए हुए रोज सुबह साइकिल चलाने के लिए निकल पड़ता है। बिन दाहिने हाथ के साइकिल चलाने में होने वाली परेशानी के बारे में पूछने पर वे बड़े जोश और उत्साह से कहते हैं कि साइकिल से मैं चलने में नहीं पक्षी की तरह उड़ने में विश्वास रखता हूं। पिछले तकरीबन 13 सालों से पानी और आधारकार्ड आदि दस्तावेजों में सुधार की एजेंसी चलाने वाले तमीम बताते हैं कि दिन भर वे अपने घर में ही मौजूद अपनी एजेंसी में काम करते हैं। निजी काम होने के कारण नियमित आय नहीं होती। कभी दिन भर ग्राहकों का टोटा होता है तो कभी भीड़ भी लग जाती है। हालांकि दो साल पहले तक उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन उनकी भांजी से जुड़ी एक घटना ने उनके जीवन को ही बदलकर रख दिया। उन्होंने बताया कि दरअसल उस दौरान एक बार उसने मुझसे कुछ खरीदने के लिए कहा लेकिन पैसा नहीं होने के कारण मुझे झिझक होने लगी। उम्र में छोटी होने के बावजूद वह मेरी परेशानी भांप गई और अपनी मां के पर्स से 100 रुपए चुराकर मेरे बटुए में रख दिए।

87 घंटे में चलाया 1200 किमी साइकिल

इस घटना में मेरे मन को झकझोर कर रख दिया और उसी दिन से मैंने कुछ ऐसा करने का फैसला किया जिससे मेरी और मेरे घरवालों की एक अलग पहचान बन सके। कोरोना महामारी के दौरान मैंने साइकिल चलाना शुरू किया और आज तक पीछे मुडकर नहीं देखा। शुरुआत में वे अपने घर के पास की दुकान से एक पुरानी साइकिल खरीदकर चलाते थे लेकिन करुणाकरण नामक दोस्त की सलाह के बाद उन्होंने एक नई साइकिल खरीद ली। उन्होंने अपनी साइकिलिंग का वीडियो रिकार्ड करना और अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपलोड करना शुरू किया। उन्होंने ऑडेक्स इंडिया रैंडोनर्स की ओर से आयोजित राइडिंग के लिए रिकार्ड भी बनाया। उन्होंने 200 किमी यात्रा 13 घंटे में और 300 किमी यात्रा 18.5 घंटे में पूरी की। उनके मुताबिक एल.बी. सुरेश कुमार नामक एक बाइकर्स से मुलाकात के बाद उनमें और निखार आया। दरअसल सुरेश कुमार ने उनकी मुलाकात हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. अश्वनी कुमार से कराई। डॉ. अश्वनी ने उनके लिए नई साइकिल खरीदा और सु्रेश से उन्होंने राइडिंग की कुछ और बारीकियां सीखी। इसके बाद उन्होंने 87 घंटों में 1200 किमी की यात्रा पूरी की।

देश के लिए पदक लाना है सपना

किसी जमाने में पुरानी साइकिल से शुरुआत करने वाले तमीम के पास इस समय दो साइकिलें हैं। उन्होंने बताया कि वे आत्महत्या की रोकथाम आदि विभिन्न सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूकता लाने जैसे सामाजिक कार्यों के लिए भी यात्राओं पर जाते हैं। अपना सपना साझा करते हुए उन्होंने कहा कि मैं पैरालंपिक में भाग लेकर देश के लिए पदक लाना चाहता हूं।