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श्रीराम और भक्तिमति शबरी के प्रसंगों से ओतप्रोत लीला सम्पन्न

22 जनवरी को दीपावली की तरह ऐतिहासिक बनाने की अपील

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 मंचन करते कलाकार

मंचन करते कलाकार

छतरपुर. 22 जनवरी को श्रीराम मंदिर अयोध्या में स्वरूप की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यकम आयोजित हो रहा है। जिसके पूर्व विभिन्न धार्मिक गतिविधियां आयोजित की जा रहीं है। इसी क्रम में खजुराहो में तीन दिवसीय श्रीराम चरित लीला का आयोजन सम्पन्न हुआ। तीसरे और आखिरी दिन भक्तिमति शबरी लीला का मंचन किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में स्थानीय लोगो ने श्रीराम और भक्तिमति शबरी के प्रसंगों का आनन्द उठाया।

कार्यक्रम की प्रस्तुती छतरपुर से पधारी सुश्री अंजली शुक्ला एवं साथियों द्वारा की गई, जिसमें भक्तिमति शबरी कथा में बताया कि पिछले जन्म में माता शबरी एक रानी थीं, जो भक्ति करना चाहती थीं, लेकिन माता शबरी को राजा भक्ति करने से मना कर देते हैं। तब शबरी मां गंगा से अगले जन्म भक्ति करने की बात कहकर गंगा में डूब कर अपने प्राण त्याग देती हैं। अगले दृश्य में शबरी का दूसरा जन्म होता है और गंगा किनारे गिरि वन में बसे भील समुदाय को शबरी गंगा से मिलती हैं। भील समुदाय़ शबरी का लालन-पालन करते हैं और शबरी युवावस्था में आती हैं तो उनका विवाह करने का प्रयोजन किया जाता है, लेकिन अपने विवाह में जानवरों की बलि देने का विरोध करते हुए, वे घर छोड़ कर घूमते हुए मतंग ऋषि के आश्रम में पहुंचती हैं, जहां ऋषि मतंग माता शबरी को दीक्षा देते हैं। आश्रम में कई कपि भी रहते हैं जो माता शबरी का अपमान करते हैं। अत्यधिक वृद्धावस्था होने के कारण मतंग ऋषि माता शबरी से कहते हैं कि इस जन्म में मुझे तो भगवान राम के दर्शन नहीं हुए, लेकिन तुम जरूर इंतजार करना भगवान जरूर दर्शन देंगे। लीला के अगले दृश्य में गिद्धराज मिलाप, कबंद्धा सुर संवाद, भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग मंचित किए गए। भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग में भगवान राम माता शबरी को नवधा भक्ति कथा सुनाते हैं और शबरी उन्हें माता सीता तक पहुंचने वाले मार्ग के बारे में बताती हैं। लीला नाट्य के अगले दृश्य में शबरी समाधि ले लेती हैं। कार्यक्रम के अंत में अतिथियों द्वारा सभी कलाकारों का अभिनन्दन किया गया।