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बुंदेलखंड में आज भी चल रही वस्तु विनिमय की व्यवस्था, किराए के बदले लोग देते हैं अनाज

धसान नदी पर मध्यप्रदेश के अलीपुरा से उत्तरप्रदेश के खखोरा गांव तक चलने वाली नाव के किराए का भुगतान आज भी अनाज के रूप में किया जाता है। यह परंपरा रियासत काल से चली आ रही है और आज भी कायम है।

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Villagers going from Alipura to Khakhora by boat

नाव से अलीपुरा से खखोरा जाते ग्रामीण

देश में जहां आज डिजीटल पेमेंट का बोलबाला है और नकद भुगतान की व्यवस्था आम हो चुकी है, वहीं बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों में आज भी रियासत काल की वस्तु विनिमय व्यवस्था जीवित है। धसान नदी पर मध्यप्रदेश के अलीपुरा से उत्तरप्रदेश के खखोरा गांव तक चलने वाली नाव के किराए का भुगतान आज भी अनाज के रूप में किया जाता है। यह परंपरा रियासत काल से चली आ रही है और आज भी कायम है।

रियासत काल का उपहार


इस नाव यात्रा की शुरुआत रियासत काल में हुई थी, जब अलीपुरा के राजा हरपाल सिंह ने खखोरा के ठाकुर को राखी बंधवाने के बदले धसान नदी के घाट को उपहार स्वरुप दिया था। इसके बाद से यह घाट खखोरा गांव के लोगों को स्थायी रूप से मिला और उन्होंने नाव चलाने की जिम्मेदारी संभाली। उस समय से लेकर आज तक, खखोरा के लोग नाव का उपयोग करने के बदले नकद राशि की जगह 10 किलो अनाज के रूप में किराया देते हैं।

वर्तमान में भी कायम है परंपरा


आज भी जब खखोरा के लोग अलीपुरा से खखोरा यात्रा करते हैं, तो उन्हें यात्रा के बदले नकद भुगतान की आवश्यकता नहीं होती। नाव चलाने वाले परिवार के पूरन रैकवार कहते हैं कि खखोरा के निवासी साल भर में कितनी भी बार नाव का उपयोग करें, उन्हें केवल एक बार फसल के मौसम में 10 किलो अनाज किराए के रूप में देना होता है। इसके विपरीत, अन्य गांव के लोग प्रति चक्कर 10 रुपए किराया अदा करते हैं।

सडक़ मार्ग से नाव का रास्ता बेहतर


अलीपुरा से खखोरा जाने के लिए दो मुख्य सडक़ मार्ग हैं - एक गर्रोली से होकर, जो 22 किलोमीटर लंबा है, और दूसरा मउरानीपुर से होकर, जो 20 किलोमीटर लंबा है। वहीं, अगर नदी के रास्ते नाव का इस्तेमाल किया जाए तो दूरी केवल 3 किलोमीटर रह जाती है। यही वजह है कि खखोरा गांव के लोग और आसपास के इलाके के लोग अक्सर नाव का इस्तेमाल करते हैं।

मौसम के अनुसार नाव का संचालन


नदी में पानी रहने पर लोग 11 महीने तक नाव का उपयोग करते हैं, केवल जून महीने में जब नदी सूख जाती है, तब नाव का संचालन बंद हो जाता है। लोग नाव का उपयोग न केवल यात्रा के लिए, बल्कि अपनी बाइक और अन्य सामान को लेकर आने-जाने के लिए भी करते हैं।

नाव चलाने की जिम्मेदारी


पूरन रैकवार और उनके छोटे भाई उमराव रैकवार वर्तमान में इस पारंपरिक व्यवस्था का हिस्सा हैं। दोनों भाई एक-एक हफ्ते के टर्न में नाव चलाते हैं और परंपरा का निर्वाह करते हैं। वे बताते हैं कि यह व्यवस्था पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। अलीपुरा रियासत के वंशज मनोज सिंह बताते हैं, हमारे पूर्वज राजा हरपाल सिंह जू देव ने ही यह घाट उपहार में दिया था। तब से यह परंपरा जारी है और आज भी खखोरा गांव के लोग उसी तरह से किराया देते हैं, जैसे पहले दिया करते थे।