चूरू

खेतों में पीले पड़ रहे अरमाने के पत्ते ला रहे हैं आंखों में आंसू

अगस्त महिने में बादलों की बेरूखी से खेत वीरान हा चुके हैं। जो फसलें जुलाई में खेतों में लहलहा रही थी, अब वे पीली पड़ जल चुकी हैं। कई किसानों ने तो खेतों को खुला छोड़ दिया है। कई ने घास में बदल चुकी फसलों को पालतु पशुओं के लिए समेटना शुरू कर दिया है।

3 min read
Aug 26, 2023

अजय स्वामी

चूरू. अगस्त महिने में बादलों की बेरूखी से खेत वीरान हा चुके हैं। जो फसलें जुलाई में खेतों में लहलहा रही थी, अब वे पीली पड़ जल चुकी हैं। कई किसानों ने तो खेतों को खुला छोड़ दिया है। कई ने घास में बदल चुकी फसलों को पालतु पशुओं के लिए समेटना शुरू कर दिया है। इधर, गांवों में सन्नाटा पसरा है। चौपाल पर पशुओं के अलावा कुछ नहीं दिखाई पड़ा। एकाध बुर्जुग दिखे तो भी उदास। पत्रिका टीम ने शुक्रवार को कई गांवों का दौरा कर हालात का जायजा लिया। किसानों व ग्रामीणों से बात की तो बोले अब क्या बताएं। म्हांकी कुण सुणसी। राम तो तकड़ो रूठ्यो इं बार। इब राज को ही आसरो है। अब खेत भी खाली, अंटी भी खाली किसानों के माथे पर भविष्य की चिंता की लकीरें गहरा गई है। किसी को बेटी के हाथ पीले करने का सपना टूटता दिख रहा था। किसी को खाने के दानों की व्यवस्था की मुसीबत का हल सता रहा था। कुल मिलाकर गांवों में हालात विकट हो चले हैं। ग्रामीण बोले 80 फीसदी फसलें पीली पड़ चुकी हैं। पशुओं के खाने के लिए घास बचा है। बड़ी आस से फसलें बोई। अच्छे जमाने के आसार थे। चिंता इस बात की है अकाळ पडऩे के बाद अब आगे क्या होगा। त्योहार, शादी ब्याह की बात तो दूर खाने के लिए दाने - दाने के मोहताज हो जाएंगे। क्या करें, ना करें समझ नहीं आ रहा। जो जमा पूंजी थी खेत की बुआई, निराई व गुड़ाई में खपा दी। अब खेत भी खाली और अंटी भी खाली है। क्रॉप कटिंग जल्दी हो तो राहत मिले गांवों में किसानों ने कहा कि फसलें तो बर्बाद हो चुकी है। कई किसान फसलों को समेट रहे हैं। जल्दी से क्रॉप कटिंग का सर्वे हो जाए तो सरकार की ओर से राहत मिले। अगर किसानों ने फसलें समेट ली तो वो भी नहीं मिलेगी। किसानों ने कहा कि जिम्मेदार अधिकारी हालात का जायजा लें। बुजुर्ग किसानों ने गिनाए अकाल के ये कारण - जनवरी से जुुलाई तक लगातार बरसात हो रही - क्लाइमेट में बदलाव प्रमुख वजह - बीते दस सालों में पहली बार अगस्त में पानी नहीं बरसा - इस साल समय समय पर हुई बारिश के चलते गर्मी कम पड़ी - पिछवाई हवा चलने से मिट्टी जल्दी सूखने से फसलें पीली पडऩे लगी

- जिले में खरीफ की फसलों के बुआई के आंकड़ें - बाजरा दो लाख 48 हजार हैक्टेयर, मूंग दो लाख 62 हजार 500 हैक्टेयर, मोठ दो लाख 38 हजार 750 हैक्टेयर, चंवला 11 हजार 500 हैक्टेयर, मूंगफली 72 हजार हैक्टेयर, तिल 21 सौ हैक्टेयर, कपास 20 हजार हैक्टेयर, ग्वार एक लाख 48 हजार 500 हैक्टेयर में बोया गया है। इसके अलावा कई अन्य फसलें 33 सौ हैक्टयर में बोई गई हैं। इधर, कृषि अधिकारी कुलदीप शर्मा ने बताया कि फसलों की पैदावार के आंकड़ें राजस्व विभाग की ओर से तैयार किए जा रहे हैं। खराबे के आंकड़ेें पटवारी तैयार कर रहे हैं। (आंकड़ें सहायक कृषि निदेशक विभाग के अनुसार हैं)

किसान बोले... 50 बीघा में मूंग, मोठ, ग्वार व बाजरा बोया था। घर की बचत के 60 हजार रूपए खर्च हो गए। अब अंटी में एक भी रूपया नहीं बचा है। इस बार राम ऐसा रूठेगा, सोचा नहीं था। फसलें जल चुकी है। अब तो सरकार राहत दे तो बात बनें। बनारसी देवी (80) गांव रामसर बांटे पर खेत लिया व कर्ज लेकर फसलें बोई थीं। बारिश नहीं होने से सब कुछ चौपट हो गया। अब पशुओं के खाने लायक घास बची है। चिंता इस बात की है कि कर्ज कहां से चुकेगा। तीज त्योहार कैसे मनाएंगे। अणची देवी (70), रामसरा की रोही 12 बीघा में फसलें बोई थीं। अच्छे जमाने की आस थी। अगस्त में पानी नहीं बरसने से फसलें खराब हो गई। खेत ऐसे ही छोड़ आए। अब राज का सहारा है। नहीं तो दाने - दाने के मोहताज हो जाएंगे। शिवकरण, किसान, ऊंटवालिया 20 बीघा खेत में बाजरा, मूंग व मोठ बोया था। फसलें तो जल चुकी। अब क्रॉप कटिंग जल्द हो तो राहत मिलें। नहीं तो गांवों में हालात खराब हो जाएंगे। मनोज कुमार, किसान ऊंटवालिया

Published on:
26 Aug 2023 01:08 pm
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