
तीर्थ यात्रा से होते हैं कई आत्मिक लाभ
कोयम्बत्तूर. तीर्थ यात्रा का आयोजन करने से श्रावक को परमात्म भक्ति, सद्गुरू भक्ति, साधर्म भक्ति के अवसर मिलते हैं। उसकी धनराशि का सदुपयोग होता है। धार्मिक यात्रा से निवृत्ति, संघ वात्सल्य, सम्यग दर्शन की निर्मलता, स्नेहीजन का आत्म हित, मंदिरों के जीर्णोद्धार, शासन प्रभावना जिन आज्ञा पालन से तीर्थकंर नाम कर्म का बंध आदि लाभ होते हैं। यह बात जैन आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कही। वह अवलपुन्दूराई तक जाने वाली छरी पालक यात्रा के तहत नौ वें दिन गुम्मा महल से साधा महल पहुंचे। यहां धर्मसभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि श्रावक के वार्षिक 11 कर्तव्यों में तीसरा कर्तव्य तीर्थ यात्रा का है। श्रावक को छरी के नियमों का पालन करते हुए किसी पवित्र तीर्थ की यात्रा करनी चाहिए। जिस गांव, नगर पर्वत पर प्रभु के पांच कल्याणकों में से कोई भी कल्याणक हुआ हो तो उस भूमि को तीर्थ कहा जा सकता है। जिस प्रतिमा की प्रतिष्ठा के 100 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं वह जिनालय तीर्थ कहलाता है। तीर्थंकरों के चरणों से पवित्र भूमि भी तीर्थ कहलाती है। उन्होंने कहा कि जैन शासन की आराधना मात्र मोक्ष प्राप्ति के लिए होती है। धर्म आराधना के सभी कार्य आत्म कल्याण को प्रेरित करते हैं। छ:रीपालक पूर्वक जो तीर्थ यात्रा की जाती है उसमें अनेक जिनेश्वर परमात्माओं की आज्ञा का पालन सहज वह सुलभ हो जाता है। उन्होंने कहा कि जब आत्मा को सम्यग दर्शन की प्राप्ति हो जाती है इसके बाद आत्मा की दुर्गति के द्वार हमेशा के लिए बंद हो जाता है। मनुष्य व देवभव की प्राप्ति सद्गति स्वरूप है। मोक्ष मार्ग की सर्वोत्कृष्ठ आराधना मनुष्य भव में ही संभव है। जीवन में सुंदर आराधना करके जो आत्माएं देव बनती हैं उन आत्माओं को देवलोक के दिव्य सुखों में भी आसक्ति नहीं होती है। अनासक्त भाव से दिव्य सुखों का भोग करते हैं। उन्होंने कहा कि छह नियमों के पालन पूर्वक तीर्थयात्रा करने वाली आत्मा भी अपनी भावी भव परंपरा को सुधार लेती है। जिस प्रकार जहर का नाश जहर से ही होता है। उसी प्रकार धूल का नाश धूल से होता है। तीर्थ यात्रियों के चरणों के धूल के स्पर्श से भी आत्मा पर लगी पाप कर्म की धूल का नाश हो जाता है। जो आत्माएं अनंतकाल से भव भ्रमण कर रहीं है उन भव भ्रमण से मुक्ति पाने तीर्थ यात्रा का भ्रमण सर्वश्रेष्ठ हैं। शनिवार को सुबह 8.30 बजे से पैदल संघ का भव्य प्रवेश सर्व सिद्धि जिनालय अवलपुंदूराई में होगा। 15 दिसम्बर को आचार्य आदि साधु-साध्वी का प्रवेश ईरोड नगर में होगा।
Published on:
14 Dec 2019 01:29 pm
बड़ी खबरें
View Allकोयंबटूर
तमिलनाडु
ट्रेंडिंग
