दरअसल, शहर में दर्जनों ऐसे जर्जर भवन मौजूद हैं, जो कभी भी गिरकर जान-माल का बड़ा नुकसान कर सकते हैं। खास बात यह है कि ये कंडम भवन मुख्य बाजार, सराफा मार्केट और अन्य घनी आबादी वाले इलाकों में स्थित हैं। प्रशासन भी इन खतरनाक भवनों से वाकिफ है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है।
चिन्हांकन और चेतावनी बोर्ड का अभाव नगर पालिका ने न तो इन भवनों का ताजा चिन्हांकन किया है और न ही चेतावनी बोर्ड लगाए गए हैं। ऐसे में बरसात के मौसम में किसी भी अनहोनी से इंकार नहीं किया जा सकता। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन की लापरवाही के कारण उनकी जान पर खतरा मंडरा रहा है।
पिछले वर्ष भी हुई थी केवल औपचारिक कार्रवाई साल 2024 में दमोह में प्रशासन ने 50 से अधिक कंडम भवनों की सूची बनाई थी। उस समय रिपोर्ट तैयार कर ली गई थी, लेकिन कार्रवाई मात्र एक दो भवनों तक सीमित रही। वर्तमान में कभी भी जमींदोज होने वाले मकान अभी भी घनी बस्तियों में लोगों के लिए खतरा बने हुए हैं। बता दें कि नपा द्वारा पूर्व में चिन्हित भवनों को खाली कराने और गिराने की जगह प्रशासन लगातार बहाने बनाता रहा। कई बार इस मुद्दे को उठाया गया, लेकिन ठोस कार्रवाई के अभाव में स्थिति जस की तस बनी है।
कलेक्टर के निर्देश भी बने कागजी कार्रवाई कलेक्टर द्वारा अधिकारियों को 10 दिन में कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे। लेकिन जिम्मेदारों ने कार्रवाई को पूरा नहीं किया। मामले में दमोह तहसीलदार मोहित जैन से संपर्क का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया। बहरहाल, कंडम घोषित मकान आने वाले दिनों में किसी भी समय बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं।