आजीविका का बन गए साधन
सुंदरी के लगाए पौधे बड़े हो गए हैं और न केवल आजीविका का साधन बन गए हैं बल्कि पर्यावरण को शुद्ध करने में महती भूमिका निभा रहे हैं। यही नहीं, इस काम में सुंदरी ने न केवल खुद को सक्षम बनाया बल्कि जो भी महिलाएं संपर्क में आती गईं, उनको इस लायक बना दिया कि वे भी अब पेड़-पौधे लगाकर पर्यावरण शुद्ध कर रही हैं और उसी से आजीविका का रास्ता निकाल रही हैं। ऐसा होने से इन महिलाओं में आत्मविश्वास भी बढ़ा है।
100 से ज्यादा खड़े हैं पेड़
बकौल सुंदरी केवट खेती का काम उनका पैतृक है। सास-ससुर भी खेती करते थे, लेकिन शादी के बाद जैसे ही वह ससुराल पहुंचीं तो उन्होंने इस काम में हिस्सा लेना शुरू किया। फिर ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ीं। अपना स्वयं सहायता समूह तैयार किया। तीन साल पहले बनाए गए समूह के बाद उन्होंने अब 50 से ज्यादा महिलाओं को जोड़ लिया है।
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पांच बीघा जमीन में कर रही सपनों को साकार
सुंदरी केवट के पास केवल 5 बीघा जमीन है। इसी में से 2 बीघा में गेहूं, चना इत्यादि की खेती कर लेती हैं ताकि खाने-पीने का इंतजाम हो। बाकी तीन बीघा में पेड़-पौधे, सब्जियां लगा रही हैं, जो कमाई का जरिया बन रहे हैं।