
नए नियम बड़े कठिन, सहज नहीं होगा उम्मीदवारों का चयन
देहरादून (अमर श्रीकांत). पंचायत चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के मुख्यालयों पर कार्यकर्ताओं की भीड़ एकाएक बढ़ गई है। हालांकि उम्मीदवारों का चयन दोनों ही राजनीतिक पार्टियों के लिए इस बार सहज नहीं दिख रहा है। दरअसल इस बार उत्तराखंड में पहली बार शैक्षिक योग्यता और दो बच्चों के कानून के तहत चुनाव कराए जाएंगे। जिससे भाजपा और कांग्रेस के लिए उम्मीदवारों के चयन में परेशानी कुछ ज्यादा ही बढऩे की संभावना स्पष्ट रूप से दिख रही है। उत्तराखंड पर्वतीय राज्य है। यहां छोटे-छोटे कम आबादी वाली गांव है।
खास बात यह है कि अधिकतर लोग गांवों से पलायन कर चुके हैं। गांव खाली पड़े हुए हैं। कुछ बुजुर्ग लोग जरूर गांवों में रहते हैं, लेकिन पंचायतीराज के नए नियम के तहत इस बार के चुनाव में वही व्यक्ति उम्मीदवार हो सकता है जो कम से कम 10वीं पास हो। साथ ही दो से ज्यादा बच्चे नहीं हों। इस मानक के तहत दोनों ही पार्टियों को उम्मीदवार खोजने में परेाशनी शुरू हो गई है। क्योंकि पुराने लोग सरकार के नए मानक के लिहाज से खरे नहीं उतर पा रहे हैं। इसके अतिरिक्त नई पीढ़ी गांवों से काफी पहले ही पलायन कर चुकी है। अकेले दिल्ली में उत्तराखंड के करीब 22 से 25 लाख लोग रहते हैं। जिसमें 70 फीसदी युवा हैं। कभी-कभार ही ये लोग अपने गांवों की ओर तीन चार दिन के लिए आते हैं।
सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि पर्वतीय जनपदों में यातायात और चिकित्सा की सबसे बड़ी परेशानी है। अच्छे स्कूल भी नहीं हैं। पेयजल की भी परेशानी है। साथ ही साथ हर साल ही आपदाएं आती रहती हैं। जिससे जान माल की क्षति होती रहती है। इसलिए पहाड़ के गांव खाली पड़े हुए हैं।
चुने जाएंगे 66 हजार से अधिक प्रतिनिधि
ऐसी स्थिति में कुल 43 लाख 11 हजार 423 वोटरों को 66,399 प्रतिनिधियों का चयन करना है। अब गंभीर समस्या यह है कि नए मानकों के तहत उम्मीदवारों का चयन किस तरह से किया जाए। यह न केवल भाजपा बल्कि कांग्रेस दोनों के लिए ही बड़ा सिरदर्द है। असल में भाजपा की सरकार ने पंचायतीराज एक्ट में संशोधन युवा वर्ग को पटाने के मकसद से किया है। लेकिन कोई भी पढ़ा-लिखा पहाड़ का युवा गांवों की ओर लौटना नहीं चाह रहा है। हां, भाजपा ने पंचायतीराज एक्ट में संशोधन करके एक ‘खेल’ जरूर किया है कि सहकारी समितियों में शामिल अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य पंचायत चुनाव में उम्मीदवार बन सकते हैं। संशोधित पंचायती एक्ट में यह कहा गया है कि सहकारिता समितियों के सदस्य चुनाव में उम्मीदवार बन सकते हैं, लेकिन चुनाव में विजयी होने पर सहकारिता या फिर पंचायत में किसी एक पद से त्याग पत्र देना होगा। यहां यह बताना जरूरी है कि सहकारिता समितियों के चुनाव अभी हाल ही में हुए हैं जिसमें 90 फीसद समितियों में भाजपा का कब्जा है। ऐसी स्थिति में थोड़ा बहुत लाभ भाजपा को मिलने की संभावना है। पर जो लोग सहकारिता समितियों में जमे हुए हैं वे आखिर क्यों पंचायत चुनाव लड़ेंगे। बहरहाल आगामी एक सप्ताह में उम्मीदवारों की स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। इस बीच कांग्रेस और भाजपा दोनों ने अपनी ताकत उम्मीदवारों के चयन में झोंकना शुरू कर दिया है। तभी तो शनिवार के दिन दोनों ही पार्टियों के दफ्तर गुलजार दिखे।
‘उम्मीदवारों को लेकर गंभीर कांग्रेस’
कांग्रेस पहले से ही उम्मीदवारों को लेकर गंभीर रही है। परेशानी भाजपा को है। कांग्रेस कार्यकर्ता पंचायत चुनाव के लिए काफी पहले से ही तैयार हैं। चुनाव परिणाम भी कांग्रेस के पक्ष में आने की उम्मीद है। कार्यकर्ता पूरी ताकत के से चुनाव मैदान में हैं। पार्टी के अंदर गुटबाजी की बात बकवास है। भाजपा की सरकार ने पिछले ढाई साल में क्या किया है। इसका आकलन भी उत्तराखंड की ग्रामीण जनता करेगी।
- प्रीतम सिंह, अध्यक्ष, उत्तराखंड कांग्रेस
‘सक्रिय हैं भाजपा कार्यकर्ता’
कांग्रेस तो कहीं से भी पंचायत चुनाव में दिख नहीं रही है। कांग्रेस को उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे हैं। कांग्रेस के कार्यकर्ता घरों में हैं। भाजपा कार्यकर्ता सक्रिय है। गांवों में काफी पहले से लोगों तक अपनी पहुंच बना चुके हैं। भाजपा को मालूम है कि वह पंचायत चुनाव में विजयी होगी। सरकार ने काफी बढिय़ा काम किया है। अब पंचायत में पढ़े-लिखे लोग आएंगे। इससे गांवों की और ज्यादा तरक्की होगी। चिंता जैसी कोई बात नहीं है।
- अजय भट्ट, अध्यक्ष, उत्तराखंड भाजपा
Published on:
14 Sept 2019 11:37 pm
बड़ी खबरें
View Allदेहरादून
उत्तराखंड
ट्रेंडिंग
