
एआई से बनाई गई प्रतीकात्मक फोटो
Earthquake Warning:वैज्ञानिकों ने भूकंप के खतरों को लेकर मंथन किया। कार्यशाला में शामिल शोध प्रस्तुतियों ने यह स्पष्ट किया कि ल्यूमिनेसेंस डेटिंग तकनीक हिमालयी भू-विज्ञान, तलछट परिप्रेक्ष्य, जलवायु इतिहास और प्राचीन भूकंप विज्ञान को समझने की सबसे प्रभावी तकनीकों में से एक बन चुकी है। विशेषज्ञ इस तकनीक से 40 लाख वर्ष पुराने तथ्य की भी पड़ताल कर रहे हैं। आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर डॉ. जावेद मलिक के मुताबिक, उत्तराखंड विशेषकर कुमाऊं के हल्द्वानी, रामनगर, कालाढुंगी के कई क्षेत्र भूकंप के नजरिए से बहुत संवेदनशील जोन हैं। यहां पर कभी भी 8.5 रिक्टर का भूकंप आ सकता है। उनके मुताबिक, गढ़वाल मंडल में भी यही हालत हैं। यहां पर भी 7.5 से 8.5 की तीव्रता का भूकंप आ सकता है। वैज्ञानिक यहां पर 40 लाख साल पुराने तथ्यों की पड़ताल में जुटे हुए हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह कहना गलत है कि छोटे-छोटे भूकंप से जमीनी ऊर्जा रिलीज होती है और उससे बड़े भूकंप का खतरा कम हो जाता है। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। कम तीव्रता के भूकंप तो आते ही रहते हैं। कुछ तो इतने कम तीव्र होते हैं कि वह सिर्फ सेस्मोग्राफ में ही रिकार्ड हो पाते हैं। आम लोगों को उनका पता ही नहीं लगता है। इसके बावजूद बड़े भूकंप की आशंका हमेशा बनी रहती है। लिहाजा उत्तराखंड में बहुत खतरनाक स्तर का भूकंप कभी भी आ सकता है। अपने शोध का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हल्द्वानी और नंदपुर में काम किया गया है। कुमाऊं में साल 1505 में बहुत भीषण भूकंप आया था। 1803 में भी तीव्र भूकंप आया था लेकिन 1505 से कमतर था।
वैज्ञानिक मल सिंह ने कहा कि ल्यूमिनेसेंस डेटिंग में लगातार प्रगति के बावजूद कई महत्वपूर्ण सवाल अब भी शोध की प्रतीक्षा में हैं। हवा और नदी से निर्मित भू-आकृतियों के मिलन बिंदु जटिल होते हैं और इन्हीं कारणों से उच्च-रिज़ॉल्यूशन कालक्रम तैयार करने में यह तकनीक अत्यंत उपयोगी है। डॉ. अतुल सिंह ने सांगपो, डिटचू और रंगपो नदी हिस्सों में बाढ़ से पहले और बाद के नमूनों के आधार पर तलछट के आकार, स्रोत और परिवहन मार्गों का अध्ययन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर डॉ. मोनिका सिंघल, डॉ. आर बिस्वास, प्रभाकर जेना भी विचार रखे।
ग्लेशियर विज्ञानी डॉ.मनीष मेहता ने डेटिंग तकनीक और उनकी सीमाओं पर बात की। उन्होंने कहा कि केदारनाथ में लगभग 13 हजार साल पहले चौराबाड़ी ग्लेशियर रामबाड़ा तक था, जो अब काफी सिमट चुका है। उन्होंने टोंस नदी घाटी में पुराने ग्लेशियर अवसादों पर बताया कि यहां 22 हजार से 3 हजार साल के बीच लगभग पांच बार ग्लेशियर एडवांस हुए। चौखंबा पर्वत समूह से निकलने वाले सतोपंथ ग्लेशियर लगभग 18 से 20 हजार साल पहले बदरीनाथ तक फैले थे।
Published on:
13 Dec 2025 03:10 pm
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