5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

सामाजिक समसरता संग समवेत स्वरों में गूंजता “बोल-बम”

बांसवाड़ा. वाग्वर अंचल का बांसवाड़ा "लोढ़ी काशी" के नाम से विख्यात है। यहां सदैव धार्मिक आयोजनों की गंगा प्रवाहमान रहती है। इन्हीं आयोजनों में महत्वपूर्ण श्रावण माह में गत 38 वर्ष से निकाली जाने वाली कावड़ यात्रा है, जिसमें सर्व समाज के छोटे बच्चे से वृद्धजन सहभागिता निभाते हुए वागड प्रयाग बेणेश्वर धाम के पवित्र संगम से कलशों में जल भरकर कावड़ लिए 45 किलोमीटर की पद यात्रा कर बांसवाड़ा मंदारेश्वर शिवालय के शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।

2 min read
Google source verification
बांसवाड़ा में कावड़ यात्रा

सामाजिक समसरता संग समवेत स्वरों में गूंजता

बांसवाड़ा में कावड़ यात्रा का आरंभ वर्ष 1984 में हुआ। कावड यात्रा संघ मंदारेश्वर का गठन कर पहली बार पहली बार निकाली कावड़ यात्रा में 11 कावडियों ने भाग लिया था। इसके बाद वर्ष दर वर्ष कावड़ यात्रियों की संख्या में वृदि्ध होती गई। इस वर्ष कावडि़यों की संख्या 60 हजार तक पहुंचने की संभावना है।

पहले तीन, अब दो दिनी यात्रा

आरंभ से लेकर दस वर्ष पहले तक कावड़ यात्रा का आयोजन तीन दिवसीय होता था। इसमें यात्री को कावड़ यात्रा संघ से नामांकन कराना जरूरी था। नामांकन के पश्चात तय तिथि को कावड यात्री को कावड़, पूजा सामग्री व सामान के साथ बसों व अन्य वाहनों से बेणेश्वर धाम पहुंचाया जाता था। दस वर्ष पहले इसे दो दिवसीय कर दिया गया। कावड यात्रा के कई नियम हैं। स्वच्छ वस्त्र धारण करना, नंगे पांव चलना, निन्द्रा अथवा मल-मूत्र त्याग के बाद स्नान कर कावड ग्रहण करना, कावड लिए खाद्य वस्तु का सेवन नहीं करना आदि नियम हैं।

यों शुरू होती है यात्रा

संघ के अध्यक्ष रणजीतसिंह शेखावत बताते हैं कि बेणेश्वर धाम पर पहुंचने के बाद कावड़ यात्री ब्रह्ममूर्त में स्नान, पूजा, अर्चना करने के पश्चात पदयात्रा प्रारंभ करते हैं। बेणेश्वर से प्रस्थान करने के साथ पूरा क्षेत्र हर-हर महादेव, बोल-बम के उद्घोषों से गुंजायमान हो जाता है। 45 किमी मार्ग में कावड यात्री देवाधिदेव का स्मरण करते हुए चलते हैं। राह में कंकर, कांटों की परवाह किए बगैर लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चयी रहते हैं। कावड़ियों की सेवा के लिए कई स्वयं सेवी संगठन सुविधाएं जुटाते हैं।

मध्यरात्रि बाद अभिषेक

कावड़ यात्रा रविवार से आरंभ होती है। कावड़ यात्री के मंदारेश्वर पहुंचने पर मध्यरात्रि के बाद ऊं नमः शिवाय के जप के साथ जलाभिषेक का दौर शुरू हो जाता है, जो सोमवार मध्यरात्रि तक निरंतर बना रहता है। यहां श्रद्धालुओं की इतनी भीड़ उमड़ती हैं कि परिसर में पैर रखने की जगह नहीं मिलती है।

पहले निकलती थी भव्य शोभायात्रा

दस वर्ष पहले तीन दिनी कावड़ यात्रा के तहत शहर में कावड़ यात्रियों के जत्थों को नूतन उमावि में ठहराया जाता था। वहां विश्राम व भोजन की व्यवस्था रहती थी। अपराह्न उपरांत सभी कावडियों के बांसवाड़ा पहुंचने पर विशाल शोभायात्रा में वसंती व भगवा रंगों में रंगी व विभिन्न आकारों में सजी कावड़ों पर महंत नारायणदास महाराज तथा धर्म प्रेमी पुष्प-गुलाल की वृष्टि करते थे।

कोविड से बाधा

कावड़ यात्रा के इस सफर में बीते वर्ष बाधा आई। कोविड महामारी के कारण कावड़ यात्रा का सामूहिक आयोजन नहीं हुआ। हालांकि संघ की ओर से प्रतीकात्मक यात्रा अवश्य निकाली गई थी।