
pitra paksha
हिंदू संस्कृति में पितरों की शांति को अति महत्वपूर्ण माना गया है। इसी के चलते हर साल के 16 दिन पितरों को समर्पित किए गए हैं। जिन्हें पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है।
ऐसे में साल 2021 के पितृ पक्ष शुरु हो चुके हैं। इसी को देखते हुए आज हम आपको देश में मौजूद एक ऐसे स्थान के बारे में बता रहे हैं, जहां श्राद्ध और पिंडदान का अत्यंत खास महत्व माना गया है।
यूं तो देश में हरिकी पौड़ी, हरिद्वार, नासिक सहित कई स्थानों की पिंडदान व श्राद्ध को लेकर विशेष महिमा मानी जाती है।
लेकिन इनके अतिरिक्त एक स्थान ऐसा भी है जहां हरिद्वार की ही तरह न केवल पिंडदान व श्राद्ध को विशेष माना जाता है। बल्कि यहां आपके पूर्वजों का कई पीढ़ियों पहले का बही खातों में वर्णन तक मिल जाता है।
दरअसल पिंडदान के लिए बिहार का गया प्रमुख व महत्वपूर्ण स्थान माना गया है, जो पवित्र नदी फल्गु के तट पर बसा एक प्राचीन शहर है। इस शहर की देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पितृपक्ष और पिंडदान को लेकर अलग पहचान है। जिसके चलते पितरों की आत्मा की मुक्ति के लिए पिंडदान कराने लोग विदेशों से भी आते हैं।
मान्यता के अनुसार यहां पितरों का पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा यहां की सबसे खास बात यह है कि यहां कर्माकांड करवाने वाले पंडे आज भी हमारे पितरों के नाम तक जानते हैं।
दरअसल अपने बही-खातों की मदद से वे हमारे पूर्वजों के बारे में सब-कुछ बता देते हैं। इसके पास करीब 3 सदी तक के पुराने बही खातों तक की जानकारी मिल जाती है।
जिसके चलते यदि आप अपने पूर्वजों के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं, और उनके बारे में जनने की आपमें उत्सुकता है, तो वह आप यहां आकर प्राप्त कर सकते हैं। दरअसल यदि आप अपने पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति के लिए गया आए हैं तो यहां मौजूद पंडे आपके पूर्वजों की सम्पूर्ण जानकारी आपको दे देते हैं। लेकिन इस में शर्त जरूरी ये है कि आपके पूर्वजों ने भी कभी गया में आकर पिंडदान किया हो।
पंडा-पोथी: जिसमें दर्ज होती है जानकारी
यहां के पंडों के पास पिंडदान के लिए आने वाले लोगों का नाम सुरक्षित रहता है। इसका कारण यह है कि जब भी कोई नया व्यक्ति पिंडदान के लिए गया में पहुंचता है, तो यहां मौजूद पंड़ें उनसे एक फॉर्म भरवा लेते हैं।
जिसमें गया आए व्यक्ति का नाम, वह किसका पिंडदान करने आए हैं, जिसका पिंडदान करने आए हैं उससे व्यक्ति का रिश्ता व गोत्र सहित कई तरह की जानकारियां लिखनी होती हैं। इसके बाद इस फॉर्म को पोथियों के साथ रख दिया जाता है। इसी प्रकार यहां आकर पिंडदान कराने वाले सभी लोगों का नाम किसी न किसी पंडे के पास सुरक्षित 'पंडा-पोथी' में दर्ज रहती है, जिसे पंडे बहुत आसानी से खोज निकालते हैं।
बताया जाता है कि इनके पास करीब 300 सालों तक के बही-खाते आज भी सुरक्षित हैं। इसी के चलते कई विदेशी या NRI अपने पूर्वजों की खोज के लिए भी इन पंडा-पोथी का भी सहारा लेते हैं। बताया जाता है कि पोथियों की गया के पंड़ों के पास तीन स्तरीय व्यवस्था होती है। इसकी मदद से वे आसानी से पूर्वजों की पोथी ढ़ूढ़ लेते हैं।
ऐसे समझें पोथी व्यवस्था...
दरअसल पोथी व्यवस्था के तहत इंडेक्स की तरह पहली पोथी होती है, इस पोथी में सबंधित व्यक्ति के स्थान (जिले, गांव और क्षेत्र) का नाम होता है। साथ ही इस पोथी में करीब 300 वर्षों से उस स्थान से आए लोगों के बारे में पूरी जानकारी (जैसे व्यक्ति का पता, व्यवसाय और पिंडदान के लिए गया आने की तिथि) लिखी होती है।
वहीं दूसरी पोथी में आने वाले व्यक्तियों के हस्ताक्षर भी होते हैं, दरअसल पंडों द्वारा इसमें लोगों से हस्ताक्षर करवाए जाते हैं। इसमें गया आए लोगों की जानकारी तो होती ही है साथ ही यहां आने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर भी होते हैं। इस पोथी में व्यक्ति के नाम के साथ ही उसका नंबर और पृष्ठ की संख्या भी दर्ज रहती है।
तीसरी व आखिरी पोथी में व्यक्ति की समस्त जानकारी के अतिरिक्त उसके वर्तमान कार्यस्थल तक की जानकारी होती है। इस पोथी में किसी गांव के रहने वाले लोग अब कहां रह रहे हैं और क्या कर रहे हैं, इसकी भी पूरी जानकारी इसमें होती है। पिंडदान के लिए आने वाले लोग अपने वंशज के बारे में जानकारी मिल जाने के बाद उस पंडे से कर्मकांड करवाकर अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान करते हैं।
लाल कपड़े में सुरक्षित रखी जाती हैं पोथियां
जानकारी के अनुसार इन पोथियों को इतने वर्षों तक सुरक्षित रखने के लिए रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। वहीं इन्हें सुरक्षित रखने के लिए लाल कपड़े में बांधकर रखा जाता है। इसके अलावा बारिश के मौसम से पहले सभी पोथियों को धूप में इसलिए रखा जाता है, ताकि कोई भी पोथी नमी के कारण खराब ना हो जाएं।
Updated on:
24 Sept 2021 01:00 pm
Published on:
24 Sept 2021 12:46 pm
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