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आज से तीन दिनों तक भगवान शिव की भक्ति का समय, ये मिलेगा आशीर्वाद

श्रीकृष्ण के माह में महादेव की भक्ति...

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Devotion to Lord Shiva for three days from today, this will be blessed

Devotion to Lord Shiva for three days from today, this will be blessed

हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का नवां महीना अगहन कहलाता है। अगहन मास को मार्गशीर्ष नाम से भी जाना जाता है, जाे अभी वर्तमान में चल रहा है। इस दाैरान भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है। मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का ही एक रूप माना जाता है। शास्त्रों में कहा है कि इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है।

शास्त्रों में कहा गया है कि इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है। ज्योतिष के मुताबिक नक्षत्र 27 होते हैं। इसमें से एक है मृगशिरा नक्षत्र। इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है। इसी वजह से इस मास को मार्गशीर्ष मास के नाम से माना जाता है।

वहीं मान्यता के अनुसार इस माह में नदी स्नान से समस्त पापों का नाश होता हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। मार्गशीर्ष में नदी स्नान के लिए तुलसी की जड़ की मिट्टी व तुलसी के पत्तों से स्नान करना चाहिए। स्नान के समय ॐ नमो नारायणाय या गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए।

भगवान शिव की भक्ति का समय...
वहीं ज्योतिष के जानकार पंडित सुनील शर्मा के अनुसार 12 दिसंबर यानि आज को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। प्रदोष व्रत भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए रखा जाता है। इसके ठीक अगले दिन यानि 13 दिसंबर को मासिक शिवरात्रि है। ये दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। जबिक मार्गशीर्ष अमावस्या 14 दिसंबर काे सोमवती अमावस्या का संयोग रहेगा।

शनि से मिलेगी राहत
पंडित शर्मा के मुताबिक एक महीने में दो प्रदोष तिथि आती है। शुक्लपक्ष और कृष्ण पक्ष की प्रदोष तिथि में शनिवार या सोमवार का संयोग होना, इस प्रदोष व्रत के फल को कई गुना बढ़ा देता है।

इस बार संयोग से शनि भी अपनी स्वराशि मकर पर होने से शनि की पीड़ा में शिव पूजन से राहत मिलेगी। आयु, आरोग्य प्रदाता और संकटों का नाश करने वाली होती है। अचानक आने वाली दुर्घटनाओं से भी शिव की भक्ति रक्षा करती है। भगवान शिव वैसे तो छोटे-छोटे प्रयासों से ही प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन कुछ विशेष दिन उनकी भक्ति के लिए खास होते हैं।

जिन लोगों को शनि की साढ़ेसाती लगी हुई है। शनि का लघुकल्याणी ढैया चल रहा है। जिन लोगों की कुंडली में शनि खराब अवस्था में हैं। वक्री होकर नष्टकारक है, उन्हें शनि प्रदोष का व्रत अवश्य करना चाहिए।

ब्रह्ममुहूर्त में स्‍नान कर पूजा-अर्चना करें
प्रदोष के दिन ब्रह्ममुहूर्त में पवित्र नदियों का जल डालकर स्नान करें। पूजा स्थान को साफ-स्वच्छ करके पूर्वाभिमुख होकर भगवान शिव समेत उनके पूरे परिवार का पूजन करें। शिव का पंचामृत स्नान कराएं। आंकड़े के फूल, बेल पत्र, धतूरा, अक्षत आदि से पूजन कर नैवेद्य अर्पित करें।

इसके बाद समस्त कामनाओं की पूर्ति या जिस किसी विशेष प्रयोजन के लिए प्रदोष व्रत कर रहे हैं उसे बोलकर व्रत का संकल्प लें। पूरे दिन निराहार रहते हुए संयम का पालन करते हुए बिताएं। शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव का विधि-विधान से पूजन करें। अभिषेक करें। इस दिन शनिवार है इसलिए शनि स्तवराज, शनि चालीसा या शनि के मंत्रों का जाप भी करें। प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। प्रदोष काल सूर्यास्त से लगभग 1 घंटा पूर्व का होता है। उस समय में ही प्रदोष का पूजन संपन्न करना चाहिए।

दरअसल 12 दिसंबर को पड़ने वाला प्रदोष व्रत वर्ष 2020 का अंतिम प्रदोष व्रत है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि विधि पूर्वक इस व्रत को रखने से दांपत्य जीवन में मधुरता आती है, कलह और तनाव से मुक्ति मिलती है। प्रदोष व्रत लंबी उम्र भी प्रदान करता है।

प्रदोष व्रत की पूजा में सुबह और शाम की पूजा का विशेष माना गया है। सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। वहीं ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव प्रसन्न होकर कैलाश पर्वत नृत्य करते हैं।

पुराणों के अनुसार प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं, इसलिए शाम की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। प्रदोष व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करें।

इस मंत्र का जाप करें
'नमः शिवाय, ऊँ नमः शिवाय'
इस मंत्र का जाप करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, पूजा के समय जल चढ़ाएं।

इसके अलावा शनि प्रदोष हाेने के कारण इस समय शनि देव की भी पूजा की जाती है। जिन लोगों पर शनि की महादशा, शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या चल रही है उन लोगों को इस दिन शनि देव की पूजा करनी चाहिए। इस दिन शनि का दान देना भी उत्तम फल प्रदान करता है। इस दिन सरसों के तेल का दीपक पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं, साथ ही नजदीकी शनि मंदिर में शनि देव की पूजा करें।