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इस मंत्र को दिन में केवल इतने बार उच्चारण करने से सफलता, समृद्धि और सिद्धि होगी आपकी मुठ्ठी में

locationभोपालPublished: Nov 19, 2018 06:09:16 pm

Submitted by:

Shyam

सफलता, समृद्धि और सिद्धि होगी मुठ्ठी में, करें इस मंत्र इतने बार उच्चारण

gayatri mantra

इस मंत्र को दिन में केवल इतने बार उच्चारण करने से सफलता, समृद्धि और सिद्धि होगी आपकी मुठ्ठी में

ऋग्वेद में एक ऐसे महामंत्र का उल्लेख आता हैं कि जिसके दैनिक जीवन में जपने या उच्चारण करने से जीवन प्रखर व तोजोमय बनता हैं । अगर कोई व्यक्ति इस महा मंत्र जीवन का एक अनिवार्य अंग बना लें तो उसके जीवन के सारे अभाव दूर हो जाते हैं एवं सफलता, समृद्धि और सिद्धि का स्वामी भी हो जाता हैं, और वह महामंत्र हैं प्रकाशपुंज वेदमाता गायत्री का मंत्र गायत्री मंत्र । जाने इस गायत्री मंत्र को दिन में कब कब और कहां कितने बार उच्चारण करना चाहिए ।

 

1 – सुबह बिस्तर से उठते ही अष्ट कर्मों को जीतने के लिए 8 बार उच्चारण करें ।
2 – सुबह पूजा में बैठकर कम से तीन माला या 108 बार जप करें ।
3 – भोजन करने से पूर्व 3 बार उच्चारण करने से भोजन अमृत के समान हो जायेगा ।


4 – घर से बाहर जाते समय 3 या 5 बार समृद्धि सफलता और सिद्धि के लिए उच्चारण करें ।
5- किसी भी मन्दिर में जाने पर 12 बार परमात्मा के दिव्य गुणों को याद करने के लिए उच्चारण करें ।
6- अगर छींक आ जाए तो उसी समय 1 बार उच्चारण करने से अमंगल दूर हो जाते हैं । 7- सोते समय 7 बार सात प्रकार के भय दूर करने के लिए उच्चारण करें ।

 

गायत्री महामंत्र
।। ॐ भूर्भुवः स्वःतत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।

 

इस मंत्र को सूर्य देवता की उपासना साधना के लिये भी प्रमुख माना गया है । इसलिए इसका जप या उच्चारण करते समय भाव करें कि- हे प्रभू! आप हमारे जीवन के दाता हैं आप, हमारे दुख़ और दर्द का निवारण करने वाले हैं आप, हमें सुख़ और शांति प्रदान करने वाले हैं । हे संसार के विधाता हमें शक्ति दो कि हम आपकी ऊर्जा से शक्ति प्राप्त कर सकें, कृपा करके हमारी बुद्धि को सही रास्ता दिखायें ।

 

गायत्री महामंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या- इस मंत्र के पहले नौं शब्द ईश्वर के दिव्य गुणों की व्याख्या करते हैं ।

 

1- ॐ = प्रणव ।
2- भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाले ।
3- भुवः = दुख़ों का नाश करने वाले ।
4- स्वः = सुख़ प्रदान करने वाले ।
5- तत = वह ।


6- सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल ।
7- वरेण्यं = सबसे उत्तम ।
8- भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाले ।
9- देवस्य = प्रभू ।
10- धीमहि = आत्म चिंतन के* *योग्य (ध्यान) ।


11- धियो = बुद्धि ।
12- यो = जो ।
13- नः = हमारी ।
15- प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें ।


अर्थात- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।

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