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सुख-दुख बादल के छांव की तरह परिवर्तनशील : नरेश मुनि

ज्येष्ठ पुष्कर भवन, मागडी रोड़ स्थित पुष्कर जैन आराधना केंद्र में चातुर्मासार्थ विराजित उप प्रवर्तक नरेश मुनि ने धर्म सभा में कहा कि व्यक्ति के जीवन में सुख-दुख बादल के छांव की तरह परिवर्तनशील हैं। साधक आत्मा सुख में लीन और दुख में दीन ना बनें। यही सूत्र हर सम और विषम परिस्थिति में उसे […]

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ज्येष्ठ पुष्कर भवन, मागडी रोड़ स्थित पुष्कर जैन आराधना केंद्र में चातुर्मासार्थ विराजित उप प्रवर्तक नरेश मुनि ने धर्म सभा में कहा कि व्यक्ति के जीवन में सुख-दुख बादल के छांव की तरह परिवर्तनशील हैं। साधक आत्मा सुख में लीन और दुख में दीन ना बनें। यही सूत्र हर सम और विषम परिस्थिति में उसे धैर्य संबल प्रदान करते हुए व्यक्ति के जीवन में समभाव और संतोष की अनुभूति का निर्माण करेगा। व्यक्ति को समस्या के समाधान के लिए अशांत मन से सदैव बचना चाहिए। अपने जीवन में पुण्य का ज्यादा से ज्यादा संचय करें जिससे उसकी आत्मा आनंद के वास्तविक सुख को प्राप्त कर सके।शालिभद्र मुनि ने भजन के माध्यम से श्रद्धालुओं को प्रेरणा देते कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में हमेशा कुछ ना कुछ सीखने का प्रयास करें। जिसके जीवन में कुछ गुजरने की चाहत हो वह इंसान नामुमकिन को भी मुमकिन बना देता है। सफलता भी पुरुषार्थ करने वाले के कदम चूमती है। साध्वी मेघाश्री ने प्रारंभ में मानव जीवन को श्रृंगारित करने वाले चार प्रकार के श्रृंगार का वर्णन किया।

उन्होंने कहा कि प्रथम आंखों का श्रृंगार अर्थात आंखों से देखकर जीव दया का पालन करना चाहिए। दूसरा कानों का श्रृंगार अर्थात गुरु ज्ञानी महापुरुषों के मुखारविंद से जिनवाणी का श्रवण करना चाहिए। तीसरा हाथों का श्रृंगार यानी सुपात्र दान देने की भावना रखना चाहिए। चौथा जीभ का श्रृंगार अर्थात हमेशा मीठी वाणी वचन बोलना चाहिए। जो क्षण क्षण का सदुपयोग करता है वही पंडित है। श्रद्धालुओं ने विभिन्न प्रकार के त्याग नियम ग्रहण किए। संचालन महामंत्री महावीरचंद मेहता ने किया।