
surya dev special puja
Benifits of Surya Puja on Sunday: कलयुग के एकमात्र दृश्य देव व ग्रहों के राजा सूर्य देव को वैदिक ज्योतिष में पिता के स्वरूप में माना गया है, और इन्हीं के चारों तरफ सभी ग्रह घूमते हैं। सप्ताह में रविवार के दिन का अधिपत्य रखने वाला सूर्य एक ऐसा ग्रह है जो कभी वक्री चाल नहीं चलता है।
वहीं इसे ज्योतिष में नौकरी, सामाजिक प्रतिष्ठा और आत्म सम्मान के अलावा कमजोर होने पर अपमान तक का कारक माना गया है। माना जाता है कि कुंडली में सूर्य की मजबूत स्थिति होने पर जहां अन्य ग्रहों का दुष्प्रभाव कम होता है, वहीं कमजोर सूर्य कई तरह से जातक के लिए परेशानी का कारण भी बनता है।
ऐसे में सूर्य को मजबूत करने यानि बल प्रदान करने के लिए एक ओर जहां ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य के नाम पर रविवार का व्रत करना चाहिए। वहीं यह भी माना जाता है कि लगातार 1 वर्ष तक हर रविवार को व्रत करने से सभी प्रकार की शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिलती है। जबकि जानकारों के अनुसार 12 या 30 रविवार भी इस व्रत को करने के विशेष लाभ है।
वहीं शास्त्रों की मानें तो सूर्य का व्रत करने से काया निरोगी होने के साथ ही कई तरह के अशुभ फल भी शुभ फल में बदल जाते हैं।
ज्योतिष के जानकार व पंडित डीके शास्त्री के अनुसार कई बार लोग तमाम कोशिशों के बावजूद अपनी व्यस्तता या अन्य कारणों के चलते रविवार को व्रत नहीं रख पाते हैं। ऐसे में जिंदगी में चल रही परेशानियां, बिगड़े काम, रुका हुआ पैसा, मेहनत करने के बावजूद सफलता नहीं मिलने की समस्या से ऐसे जातक घिरे रहते हैं। पं. शास्त्री के अनुसार ऐसे में इन जातकों के लिए एक ऐसा उपाय है जो इन्हें केवल लाभ ही नहीं बल्कि उन्नति भी प्रदान करता है।
ज्योतिष के जानकार शास्त्री के अनुसार ऐसे जातकों को सूर्य देव की कृपा पाने के लिए भगवान सूर्य देव की प्रार्थना आदित्य हृदय स्तोत्र, का पाठ करना चाहिए। इसे अचूक व अत्यंत ही चमत्कारी माना जाता है।
यूं तो इस स्त्रोत के पाठ के साथ पूजा पाठ हवन और व्रत रखे जाते हैं। लेकिन जरूरत की स्थिति को देखते हुए जातक इसे बिना व्रत के सुबह ब्रह्म मुहूर्त में बिना कुछ खाए शुद्ध मन से स्नानादि के बाद भी भगवान सूर्य के समक्ष कर सकता है।
वाल्मीकि रामायण तक में है इसका प्रमाण...
आदित्य हृदय स्तोत्र के संबंध में जानकारों का कहना है कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आदित्य हृदय स्तोत्र का वर्णन वाल्मीकि की रामायण में तक मिलता है। यह स्तोत्र अगस्तय ऋषि ने भगवान राम को रावण के खिलाफ विजय प्राप्त करने के लिए दिया था।
यह स्त्रोत ऋषि अगस्त्य द्वारा राम-रावण के महायुद्ध से पहले सुनाया गया था। और भगवान राम ने रावण से युद्ध के पूर्व इसी स्त्रोत का पाठ कर सूर्य देव को प्रसन्न भी किया था।
यह पूजन तब भी बेहद खास माना जाता है जब जातक की राशि (जन्म कुंडली) में सूर्य ग्रहण लगा हो। मान्यता है कि इस स्त्रोत का पाठ करने से इस परिस्थिति में भी जातक को अच्छे परिणाम के लिए, नियमित रूप से कर्मकाण्ड (पाठ,व्रत हवन आदि) करने होंगे।
ये है खास...
माना जाता है कि आदित्य हृदय स्तोत्र मन की शांति, आत्मविश्वास और समृद्धि देता है। वहीं इस स्त्रोत के पाठ से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं, जैसे रोग और आंखों की कमजोरी, शत्रुओं से भय और सभी चिंताएं व तनाव सहित अन्य बहुत प्रकार के संकटों में लाभ मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र पूजा विधि से अनगिनत लाभ होते हैं।
आदित्य हृदय स्तोत्र: राशि के अनुसार लाभ (मान्यता के अनुसार)...
मेष- संतान प्राप्ति का लाभ और संतान को भी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
वृषभ- संपत्ति और स्वास्थ्य की समस्याओं में सुधार होता है।
मिथुन- भाई-बहनों से अच्छे संबंध और दुर्घटनाओं से रक्षा होती है।
कर्क- आंखों की समस्या से मुक्ति और धन-लाभ होता है।
सिंह – हर प्रकार के लाभ के साथ ही सभी प्रकार की मनोकामनाएं भी पूरी होंगी।
कन्या – अच्छा वैवाहिक जीवन, विदेश यात्रा और अच्छे स्वभाव की प्राप्ति होती है।
तुला – शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति और नियमित धन आने का मार्ग बनता है।
वृश्चिक – शिक्षा प्राप्ति के लिए और अच्छे भविष्य के लिए किया जाता है।
धनु – पिता से सहयोग, ईश्वर कृपा और विदेश यात्रा की प्राप्ति होती है।
मकर – अच्छा स्वास्थ्य, लम्बी आयु, अचानक लाभ प्रदान करता है।
कुम्भ – आर्थिक लाभ, अच्छा व्यवसाय, सुखद वैवाहिक जीवन प्रदान करता है।
मीन – कर्ज से मुक्ति, मुकदमों से छुटकारा, नौकरी में सफलता दिलाता है।
सूर्य देव को प्रसन्न करने के ये भी हैं उपाय-
- रोजाना सूर्योदय से पहले उठें और स्नान के बाद सूर्यनारायण को तीन बार अर्घ्य देकर प्रणाम करें।
- सूर्य मंत्र का जाप पूरी श्रद्धा के साथ करें।
- आदित्य हृदय स्त्रोत का नियमित पाठ करें।
मान्यता के अनुसार आदित्य ह्रदय स्तोत्र का नियमित पाठ करने से अप्रत्याशित लाभ प्राप्त होते हैं। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। साथ ही हर मनोकामना भी पूर्ण होती है। कुल मिलाकर ये कहा जाता है कि आदित्य ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है।
आदित्य ह्रदय स्तोत्र: ये है संपूर्ण पाठ...
विनियोग
ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो
भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः
पूर्व पिठिता
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् । येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥
मूल -स्तोत्र
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥
।।सम्पूर्ण ।।
Published on:
11 Jul 2021 01:08 am
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