
पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था कल्पवास
Magh Mela 2023: प्रयागराज में संगम तट पर हर साल देश के कोने-कोने से लोग कल्पवास (Kalpwas Kise Kahte Hai) करने आते हैं। कल्पवास को आध्यात्मिक विकास और आत्मशुद्धि का मार्ग माना जाता है। प्राचीनकाल से चली आ रही परंपरा के अनुसार इस साल भी संगम प्रयागराज में कल्पवासियों के तंबुओं का शहर (Tent City Prayagraj Magh Mela 2023) बसा है, जिसमें कठिन परिस्थितियों में लोग ईश्वर आराधना, आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के कार्य में जुटे हैं।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का कल्पवासः जानकारी के अनुसार कुंभ मेला 1954 में पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संगम तट पर स्थित अकबर किला प्रयागराज से कल्पवास (Dr Rajendra Prasad Kalpwas) किया था। इसके लिए किले की छत पर विशेष रूप से कैंप लगाया गया था। अब यह जगह प्रेसिडेंट व्यू के नाम से जानी जाती है।
कल्पवास के नियमः कल्पवास में श्रद्धालु संगम तट पर डेरा लगाते हैं और एक महीने तक झोपड़ी और टेंट में रहते हैं। कल्पवास (Kalpwas) कर रहे व्यक्ति को जमीन पर सोना पड़ता है। अपनी इच्छा पर नियंत्रण रखना होता है। साफ सुथरे पीले और सफेद रंग के कपड़ों का विशेष महत्व है। एक बार कल्पवास शुरू करने के बाद 12 वर्ष तक कल्पवास करना पड़ता है। कल्पवास में एक ही मीटिंग भोजन करना होता है। यह काफी कठिन साधना मानी जाती है।
पद्म पुराण में कल्पवास (Kalpwas) के 21 नियमों का वर्णन है। इसमें कहा गया है कि कल्पवास में सत्य, अहिंसा, इंद्रियों का शमन, दया, ब्रह्चर्य आदि का पालन करना चाहिए। इसके अलावा कल्पवास करने वाले व्यक्ति को पौष, माघ की कड़ाके की सर्दी में भी सूर्योदय के समय गंगा स्नान कर भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद भगवान विष्णु और ईष्ट देव की आराधना करनी चाहिए। इसके अलावा दिन भर आध्यात्मिक गतिविधियों में समय बिताना चाहिए। कहा जाता है कल्पवास से पिछले सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
Updated on:
07 Jan 2023 02:22 pm
Published on:
07 Jan 2023 02:20 pm
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