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किसी भी मंत्र का जप करते समय कभी न करें ये गलती, हो सकती है हानि

mantra jaap करते समय इन नियमों का ध्यान रखा जाएं तो मंत्र के देवता शीघ्र प्रसन्न होकर जपकर्ता की कामना पूरी कर देते हैं।

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भोपाल

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Shyam Kishor

Jul 11, 2019

mantra jaap vidhi

किसी भी मंत्र का जप करते समय कभी न करें ये गलती, हो सकती है हानि

हिन्दू धर्म को मानने वाले श्रद्धालु प्रतिदिन किसी न किसी रूप में देवी देवताओं के मंत्रों का जप करते ही है। कुछ लोग तो मंत्र जप के पूर्ण विधि विधान के साथ सावधानी पूर्वक पूरी श्रद्धा के साथ करते हैं, और कुछ ऐसे ही देखा देखी किसी भी मंत्र का जप शुरू कर देते हैं। लेकिन वेद शास्त्रों में सभी देवी देवी देवताओं या अन्य मंत्रों के जप के नियम बनाएं है, जिसके अनुसार जप करने पर ही वे कोई चमत्कार दिखा पाते हैं, अन्यथा गलत जप या उच्चारण से कभी-कभी जपकर्ता को हानि भी हो सकती है। जानें कैसे मंत्रों का जप कैसे करना चाहिए।

किसी भी मंत्र का जप करते समय किस प्रकार से मंत्र का उच्चारण किया जाये, मन्त्रों का उच्चारण किस स्वर में किया जाये जिससे मंत्र जप का लाभ अधिक से अधिक मिल सके यह बहुत ही महतवपूर्ण है। मंत्र जप के समय होठों के हिलने, श्वास तथा स्वर के निस्सरण के आधार पर शास्त्रों ने मंत्र जप को तीन वर्गों में विभाजित किया है, और इसी के आधार पर जप किया जाएं तो मंत्र के देवता मनोकामना पूर्ति करने में देरी नहीं करते।

1- वाचिक जप- जिस प्रकार से ईश्वर का भजन-कीर्तन और आरती ऊंचे स्वर में की जाती है, उस तरह उच्च स्वरों में मंत्रों का जप निषेध माना गया है। शास्त्र कहते है कि मंत्र जप करते समय स्वर बाहर नहीं निकला चाहिए। जप करते समय मंत्रों का उच्चारण ऐसा होता रहे की ध्वनि जप करने वाले साधक के कानों में पड़ती रहे, उसे वाचिक जप कहते हैं।

2- उपांशु जप- मंत्र जप की इस विधि में मंत्र की ध्वनि मुख से बाहर नहीं निकलती, परन्तु जप करते समय साधक की जीभ और होंठ हिलते रहना चाहिए| उपांशु जप में किसी दुसरे व्यक्ति के देखने पर साधक होंठ हिलते हुए तो प्रतीत होते है, पर कोई भी शब्द उसे सुनाई नहीं देता।

3- मानस जप- मन्त्र जप की इस विधि में जपकर्ता के होंठ और जीभ नहीं हिलते, केवल साधक मन ही मन मंत्र का मनन करता है, इस अवस्था में जपकर्ता को देखकर यह नहीं बताया जा सकता कि वह किसी मंत्र का जप भी कर रहा है।

उपरोक्त मंत्र जप विधि में से मानस जप को ही सर्वश्रेष्ठ जप बताया गया है और उपांशु जप को मध्यम जप और वाचिक जप को मानस जप की प्रथम सीढ़ी बताया गया है। मंत्र जप और मानसिक उपासना, आडम्बर और प्रदर्शन से रहित एकांत में की जाने वाली वे मानसिक प्रक्रियाएं है जिनमें मुख्यतः भावना और आराध्यदेव के प्रति समर्पण भाव का होना बहुत जरुरी होता है। इस विधि से अगर जप किया जाएं तो जिस देवता का मंत्र जप किया जाता है वह शीघ्र प्रसन्न होकर जपकर्ता की इच्छाएं पूरी करने लगते हैं।

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