
Meru Trayodashi 2023
मेरू त्रयोदशी का महत्व (Meru Trayodashi Mahatv): जैन धर्म में पूजा पाठ और अनुष्ठान का विशेष महत्व है। रोहिणी व्रत के बाद जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह त्योहार महत्वपूर्ण है। इसे पहले तीर्थंकर ऋषभदेव के मोक्ष के प्रतीक के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। मान्यता है कि जो भक्त यह व्रत करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। गृहस्थ भक्तों को सांसारिक सुखों का भोग करने के बाद भी आत्मिक शांति और सुख प्राप्त होते हैं। इस दिन उपवास रखने वाले भक्त को 13 साल 13 महीने तक एक परंपरा का पालन करना होता है।
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार जो भक्त मोक्ष चाहते हैं उन्हें 5 मेरू का संकल्प पूरा करना होता (Meru Trayodashi Puja Vidhi) है। इसके लिए भक्तों को 20 नवकारवली के साथ ओम् रं श्रीं आदिनाथ पारमगत्या नमः, ओम् रं श्रीं आदिनाथ परगनाय नमः मंत्र का जाप किया जाता है। इस दिन भक्त कोविहार रूपी कठिन उपवास का पालन करते हैं। वे अन्न ग्रहण नहीं करते और साधु को दान देने की प्रक्रिया का पालन करना होता है।
मेरू त्रयोदशी व्रत पूजा विधि (Meru Trayodashi Puja Vidhi): मेरू त्रयोदशी व्रत के दिन सभी श्रद्धालु सुबह जल्दी उठकर स्नान कर निर्जला व्रत रखते हैं। इसके साथ ही भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा के सामने चांदी के बने पांच मेरू रखे जाते हैं। इसमें एक मेरू बीच में और चार उसके चारों तरफ रखे जाते हैं।
इसके बाद इनके सामने पवित्र स्वास्तिक चिह्न बनाया जाता है, और घी का दीया जलाकर भगवान ऋषभदेव की पूजा की जाती है। पूजा के बाद ओम् रं श्रीं आदिनाथ परंतता नमः, ओम् रं श्रीं आदिनाथ पारमगत्या नमः मंत्र का जाप किया जाता है। इसके बाद साधु को दान देकर व्रत खोला जाता है।
यह करना चाहिए
1. इस दिन मंदिरों में जाकर दान देने का विशेष महत्व है।
2. इस दिन धार्मिक गीतों और कथाओं को सुनना शुभ माना जाता है।
3. व्रत और दान से अतीत में किए पापों से छुटकारा मिलता है।
4. मेरू त्रयोदशी व्रत से भक्त के जीवन में सुख समृद्धि आती है।
5. मेरू त्रयोदशी व्रत में भक्त को संयम का पालन करना होता है।
Updated on:
16 Jan 2023 07:57 pm
Published on:
16 Jan 2023 07:56 pm
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