जानकारों के अनुसार नवरात्रों मे आठवें दिन यानि अष्टमी तिथि का विशेष महत्व होता है, इस दिन महागौरी यानि देवी मां गौरी को जो भगवान शिव की अर्धांगनी और गणेश जी की माता हैं, कि पूजा की जाती है।
मान्यता के अनुसार यदि कोई भी भक्त इस दिन महागौरी की सच्चे दिल से उपासना करता है तो उसके सभी बुरे कर्म धुलने से पूर्व में संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। माना जाता है कि माता महागौरी के चमत्कारिक मंत्र का अपना महत्व है जिन्हें जपने से अनंत सुखों का फल मिलता है।
इनका मंत्र इस प्रकार है
(1) ‘ॐ महागौर्य: नम:।’
(2) ‘ॐ नवनिधि गौरी महादैव्ये नम:।’
इसके अलावा इस दिन भी नवरात्र के अन्य दिनों की तरह दुर्गा सप्तशती पाठ विशेष माना जाता है और अचूक फल देने वाला होता है।
दुर्गाष्टमी 2021 का शुभ मुहूर्त
साल 2021 में अश्विन मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, मंगलवार, 12 अक्टूबर 2021 को 09:49:37 PM से शुरु होकर बुधवार, 13 अक्टूबर 2021 को 08:09:54 PM तक रहेगी। ऐसे में अष्टमी का पूजन बुधवार, 13 अक्टूबर 2021 को किया जाएगा।
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दुर्गाष्टमी 2021 पर ये बन रहे योग
इस अष्टमी तिथि यानि बुधवार को सुकर्मा योग 06:09 AM से शुरु होगा जो बृहस्पतिवार, 14 अक्टूबर 03:47 AM तक रहेगा। जबकि इसके ठीक बाद से धृति योग शुरु होगा, माना जाता है कि इस योग में कोई शुभ कार्य अवश्य करना चाहिए। इसका कारण यह है कि माना जाता है कि इस योग में किए गए कार्यों में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती है और कार्य शुभ फलदायक होता है। वहीं ईश्वर का नाम लेने या सत्कर्म करने के लिए यह सुकर्मा योग अति उत्तम है।
पूजा के मुहूर्त : अमृत काल- तड़के 03:23 बजे से सुबह 04:56 बजे तक, जबकि ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:48 बजे से सुबह 05:36 बजे तक है।
महाष्टमी के दिन जहां शुभ मुहूर्त में देवी माता की पूजा और हवन किया जाता है, वहीं इस दिन संधि पूजा का भी विशेष महत्व माना गया है।
ऐसे में महाअष्टमी पर संधि पूजा अष्टमी और नवमी दोनों दिन चलती है। दरअसल संधिकाल अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को कहा जाता है और इसी दौरान संधि पूजा होती है।
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वहीं जानकारों के अनुसार यही संधि काल दुर्गा पूजा और हवन के लिए सबसे शुभ माना गया है। इसका कारण यह है कि इसी समय अष्टमी तिथि समाप्त होती है और नवमी तिथि का प्रारंभ होती है। माना जाता है कि इसी समय देवी मां दुर्गा ने प्रकट होकर असुर चंड और मुंड का वध किया था।
इस संधि पूजा के समय केला, ककड़ी, कद्दू और अन्य फल सब्जी की बलि भी दी जाती है। वहीं संधि काल में माता की वंदना और आराधना 108 दीपक जलाकर की जाती है।
नवरात्रों में दुर्गा सप्तशती का महत्व
नवरात्र में देवी मां दुर्गा के पाठ यानि दुर्गा सप्तशती का विशेष महत्व माना गया है। जानकारों के अनुसार दुर्गा सप्तशती पाठ में 13 अध्याय है। ऐसे में नवरात्रों के दौरान पाठ करने वाला व पाठ सुनने वाला सभी देवी कृपा के विशेष पात्र बनते है।
दूर्गा सप्तशती अध्याय 1 मधु कैटभ वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 2 देवताओ के तेज से मां दुर्गा का अवतरण और महिषासुर सेना का वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 3 महिषासुर और उसके सेनापति का वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 4 इन्द्राणी देवताओ के द्वारा मां की स्तुति
दूर्गा सप्तशती अध्याय 5 देवताओ के द्वारा मां की स्तुति और चन्द मुंड द्वारा शुम्भ के सामने देवी की सुन्दरता का वर्तांत
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दूर्गा सप्तशती अध्याय 6 धूम्रलोचन वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 7 चण्ड मुण्ड वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 8 रक्तबीज वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 9-10 निशुम्भ शुम्भ वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 11 देवताओ द्वारा देवी की स्तुति और देवी के द्वारा देवताओं को वरदान
दूर्गा सप्तशती अध्याय 12 देवी चरित्र के पाठ की महिमा और फल
दूर्गा सप्तशती अध्याय 13 सुरथ और वैश्यको देवी का वरदान
ऐसे करें दुर्गा सप्तशती का पाठ
इसके लिए सबसे पहले साधक को स्नान आदि से शुद्ध होना चाहिए। जिसके बाद वह आसन शुद्धि की क्रिया कर आसन पर बैठ जाए।
फिर माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगाने के पश्चात शिखा बांध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर चार बार आचमन करें।
अब प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं और गुरुजनों को प्रणाम करने के बाद पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ इत्यादि मंत्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर देवी को अर्पित करें और मंत्रों से संकल्प लें।
इस समय देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार विधि से पुस्तक की पूजा करें। जिसके बाद मूल नवार्ण मंत्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए।
अब उत्कीलन मंत्र का जाप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार करें। वहीं इसके जप के बाद मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए। फिर पूर्ण ध्यान से माता दुर्गा का स्मरण करते हुए दुर्गा सप्तशती पाठ करें, माना जाता है कि ऐसा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।