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पुरुषोत्तम मास के नियम- भूलकर भी न करें ये काम, नहीं तो नाराज हो जाएंगे भगवान विष्णु सहित शिव

- भगवान विष्णु अधिकमास के अधिपति- पुरुषोत्तम मास नाम पड़ने की एक रोचक कथा पुराणों में है।

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Deepesh Tiwari

Jul 23, 2023

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पुरुषोत्तम मास यानि अधिक मास इस साल 2023 में सावन माह के बीच से शुरु हो गया है, दरअसल एक ओर जहां भगवान शिव का प्रिय माह सावन 4 जुलाई से शुरु हुआ वहीं 18 जुलाई से पुरुषोत्तम मास की शुरुआत हो गई । ऐसे में सावन माह इस वर्ष 31 अगस्त तक रहेगा। जबकि इसी के मध्य 18 जुलाई से 16 अगस्त तक पुरुषोत्तम यानि अधिक मास रहेगा।

ज्ञात हो कि एक ओर जहां पुरुषोत्तम मास भगवान विष्णु का महीना कहलाता है तो वहीं सावन भगवान शिव का प्रिय माह है। इसके साथ ही पुरुषोत्तम मास को मुख्य रूप से भक्ति, पूजा व उपवास से श्रेष्ठ मास माना जाता है। वहीं ये भी मान्यता है कि इस दौरान पूजा-पाठ का दस गुना अधिक फल मिलता है। ऐेसे में पुरुषोत्तम मास को लेकर कुछ खास नियम भी हैं, जिन्हें भूल से भी करने पर भगवान नाराज हो जाते हैं। ऐसे में जहां सावन और पुरुषोत्तम मास साथ साथ हैं तो वहीं पुरुषोत्तम मास के नियमों का पालन न करना भगवान विष्णु सहित भगवान शिव को भी नाराज कर सकता है, कारण ये है कि भगवान शिव भगवान विष्णु की आराधना करते हैं।

पुरुषोत्तम मास- कैसे पड़ा इसका नाम?
दरअसल भगवान विष्णु अधिकमास के अधिपति स्वामी माने गए हैं। और भगवान विष्णु का ही एक नाम पुरुषोत्तम भी है। इसी कारण अधिकमास को ही पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। एक बड़ी ही रोचक कथा इस विषय में पुराणों में मिलती है। मान्यता के मुताबिक गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता भारतीय मनीषियों द्वारा निर्धारित किए गए। ऐसे में सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए अधिकमास प्रकट हुआ, अब इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। तब ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि इस मास का भार अपने ऊपर वे ही लें। ऋषि-मुनियों के इस आग्रह को भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और इस मास नाम इस तरह पुरुषोत्तम मास पड़ गया।

ब्रह्मसिद्दांत के अनुसार- श्यस्मिन मासे न संक्रान्ति, संक्रान्ति द्वयमेव वा। मलमासरू स विज्ञेयो मासे त्रिंशत्त्मे भवेत।। अर्थात जिस चन्द्रमास में संक्रांति न पड़ती हो उसे पुरुषोत्तम मास कहते हैं। वहीं इस माह को लेकर शास्त्रों में भी कुछ नियम हैं।

पुरुषोत्तम मास के कार्य - जो अवश्य करें...
अधिकमास यानि पुरुषोत्तम मास में हिंदूधर्मावलंबी व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को जीवनचर्या में विशेष स्थान देते हैं। वही पौराणिक सिद्धांतों के मुताबिक इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अतिरिक्त श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन खास फल प्रदान करता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, ऐसे में विष्णु के मंत्रों का जाप इस पूरे समय में विशेष लाभकारी माना गया है।

मान्यता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले भक्तों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद प्रदान करते हैं, इसके तहत वह उनके पापों का शमन करने के अलावा उनकी सभी इच्छाएं भी पूर्ण करते हैं। नियम के अनुसार इस मासं जमीन पर शयन करने के अलावा एक ही समय भोजन करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है।

पुरुषोत्तम मास का खास मंत्र- मिलेगा अक्षय पुण्य फल...
मंत्र- गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।

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ये कार्य हैं वर्जित....
इस माह में शादी, सगाई, गृह निर्माण आरम्भ, गृहप्रवेश, मुंडन, संन्यास अथवा शिष्य दीक्षा लेना, नववधू का प्रवेश, देवी-देवता की प्राण-प्रतिष्ठा, बरसी(श्राद्ध), कूप, बोरवेल, जलाशय खोदने जैसे पवित्र कार्य की मनाहीे है। जबकि रोग निवृत्ति के अनुष्ठान, ऋण चुकाने का कार्य, शल्य क्रिया, संतान के जन्म संबंधी कर्म, सूरज जलवा आदि कर सकते हैं। इस माह में व्रत, दान, जप करने का विशेष फल मिलता है।

अधिक मास में इनका करें दान- पक्ष के अनुसार...
कृष्ण पक्ष के दान-
1. घी से भरा चांदी का दीपक
2. सोना या कांसे का पात्र
3. कच्चे चने
4. खारेक
5. गुड़, तुवर दाल
6. लाल चंदन
7. कर्पूर, केवड़े की अगरबत्ती
8. केसर
9. कस्तूरी
10. गोरोचन
11. शंख
12. गरूड़ घंटी
13. मोती या मोती की माला
14. हीरा या पन्ना का नग

शुक्ल पक्ष के दान-
1. माल पुआ
2. खीर भरा पात्र
3. दही
4. सूती वस्त्र
5. रेशमी वस्त्र
6. ऊनी वस्त्र
7. घी
8. तिल गुड़
9. चावल
10. गेहूं
11. दूध
12. कच्ची खिचड़ी
13. शक्कर व शहद
14. तांबे का पात्र
15. चांदी का नन्दी।

हर तीन साल में अधिक मास
सौर व चंद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित बनाने के लिए हर तीसरे साल पंचांगों में एक चंद्र मास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी को अधिक मास या पुरुषोत्तम माह कहा गया है। दरअसल सौर वर्ष का मान 365 दिनों से कुछ अधिक होता है जबकि चंद्र मास 354 दिनों का रहता है। ऐसे में दोनों में लगभग 11 दिनों के अंतर को खत्म करने के लिए 32 माह में अधिक मास की योजना पर अमल लाया गया, जो पूर्णतरू विज्ञान के अनुरुप भी है।

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इस विधि से करें भगवान शालिग्राम की पूजा
पुरुषोत्तम माह यानि अधिक मास में शुभ फल की प्राप्ति के लिए भगवान शालिग्राम की पूजा विधि के अनुसार की जाती है। इसके पहले दिन ब्रह्रम मुहूर्त में नित्य नियम से निवृत होने के पश्चात श्वेत या पीले वस्त्र धारण कर पूर्व या उत्तर की ओर मुख रखते हुए किसी ताम्र पात्र में पुष्प बिछाकर शालिग्राम स्थापित करना चाहिए। जिसके बाद गंगाजल में शुद्धजल मिलाकर, श्री विष्णुजी का ध्यान करते हुए शालिग्राम को स्नान कराना चाहिए।

शालिग्राम को ये चीजें करें अर्पित
अब शालिग्राम विग्रह पर चन्दन लगाने के बाद उन पर तुलसी पत्र, सुगन्धित पुष्प, नैवेद्य, फल आदि को अर्पित करें। अब श्ओम नमो भगवते वासुदेवायश् का जप करने के बाद उनकी कपूर से आरती करें।