गरुड़ पुराण में कुल 84 लाख नरक बताए गए हैं और उनमें से 21 नरक को घोर नरक की संज्ञा दी गई है। इनमें तामिस्त्र, लोहशंकु, महारौरव, शाल्मली, रौरव, कुड्मल, कालसूत्र, पूतिमृत्तिक, संघात, लोहितोद, सविष, संप्रतापन, महानिरय, काकोल, संजीवन, महापथ, अवीचि, अंधतामिस्त्र, कुंभीपाक, संप्रतापन और तपन 21 घोर नरक हैं।
ऐसा व्यक्ति जो ईश्वर को भूलकर केवल अपने कुटुंबीजनों के भरण-पोषण में लगा रहता है। साधु संतों के लिए दान नहीं करता, ऐसा व्यक्ति नरक में जाकर जीव भोग भोगता है और दुखी होता है।
ऐसा मनुष्य जो अधर्म के काम करके अपने और अपने परिवार के लिए धन संचय करता है। ऐसे व्यक्ति का धन उसके जीवनकाल में ही लुट जाता है और मरने के बाद वह सब नरकों को भोगकर अंत में अंधतामिस्त्र नरक में जा गिरता है।
गरुड़ पुराण के मुताबिक जो स्त्री और पुरुष अनैतिक रूप से काम-वासना में लिप्त रहते हैं। पुण्य तिथियों में, व्रत में, श्राद्ध के दिनों में संबंध बनाते हैं वह पाप के भागी होकर तामिस्त्र, अंधतामिस्त्र और रौरव नामक नरकों को भोगते हैं।
ऐसा व्यक्ति जो ईश्वर के निमित्त दान न करके केवल स्वयं का या फिर अपने कुटुंबीजनों का ही पेट भरता है, ऐसा व्यक्ति नरक का भागीदार बनता है। ऐसे व्यक्ति को कुड्मल, कालसूत्र, पूतिमृत्तिक जैसे नरक भोगने पड़ सकते हैं।
जो दूसरों से धन उधार लेकर यह सोचता है कि वापस नहीं करेंगे तो क्या होगा। ऐसे लोगों का हिसाब भगवान के यहां होता है। मृत्यु के बाद जब ऊपर दोनों पक्ष मिलते हैं तो जिसका धन लेकर मरे हैं, वह अपना धन मांगता है।
ऐसा व्यक्ति जो गलत रास्ते पर चलकर दूसरों से बैर भाव रखकर अपना और अपने परिवार का पेट भरता है। ऐसा मृत्यु के बाद अकेला ही एकाकी नरक में जाता है। उसके साथ और कोई नहीं जाता।