
Shani Dev Aarti Rule: हिंदू धर्म में भगवान शनिदेव को कर्मफल का दाता कहा जाता है। शनिवार का दिन शनिदेव को अत्यंत प्रिय है। इस दिन पर लोग शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए पूजा-अर्चना, आरती आदि शुभ कार्य करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि शनि की आरती करने का सही तरीका क्या है? कैसे की जाती है शनि आरती? नहीं जानते तो यहां जान लीजिए वर्ना शनिदेव होंगे नाराज।
आरती किसी भी देवता की पूजा का एक अहम भाग होता है। हर पूजा, जप-तप के बाद इसका गायन करने का निर्धारित नियम है। इसके लिए आरती का थाल सजाया जाता है। इसमें कपूर या घी के दीपक को प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। मंदिर में दीपक से आरती कर रहे हैं तो यह दीपक पंचमुखी होना चाहिए।
आरती करते समय शनिदेव भगवान के गुणों का बखान करने वाले गीत (आरती) गाते हुए थाल को इस तरह घुमाया जाता है कि उससे ऊँ की आकृति बने। आरती के वक्त आरती के थाल को आराध्य देव शनि के श्री चरणों में चार बार, उनकी नाभि की ओर दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार श्रद्धा से घुमाना चाहिए।
जब आरती संपन्न हो जाए तो आरती लेते समय सिर को ढंक कर रखना चाहिए। इसके बाद दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सिर के मध्य भाग पर लगाना चाहिए। आरती लेने के बाद कम से कम पांच मिनट तक जल का स्पर्श नहीं करना चाहिए।
आरती के थाल में दक्षिणा या अक्षत जरूर डालना चाहिए। मान्यता है कि शनिदेव की आरती और श्रद्धा पूर्वक भजन गायन से प्रसन्न होकर शनि देव भक्तों की रक्षा करते हैं। साथ ही उसकी सभी मनोकामनाओं को पूरी करते हैं।
Published on:
04 Jan 2025 07:49 am
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