
शनि देव को प्रसन्न करता है यह दिव्य शनि स्तोत्र, पढ़ें- पूरा शनैश्चर स्तोत्रम्
Shani Stotram: ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार शनि स्तोत्रम् में ऋषि दशरथ और देवता छायानंदन शनि देव हैं। इसकी रचना त्रिष्टुप छंद में की गई है। विद्वानों के अनुसार कुंडली में शनि ग्रह के नकारात्मक प्रभावों से रक्षा के लिए श्री शनि स्तोत्रम् का पाठ करना चाहिए। यह स्तोत्र अत्यधिक मधुर और चित्त को आनंद प्रदान करने वाला है। इसका नियमित पाठ करने से शनि देव प्रसन्न होकर शुभ फल प्रदान करते हैं। यदि प्रतिदिन पाठ करना संभव न हो तो प्रत्येक शनिवार के दिन शनिदेव के स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य। दशरथ ऋषिः॥
शनैश्चरो देवता। त्रिष्टुप् छन्दः॥
शनैश्चरप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः॥
कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिंगलमन्दसौरिः।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥1॥
सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥2॥
नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृङ्गाः।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥3॥
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥4॥
तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥5॥
प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम्।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥6॥
अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात्।
गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥7॥
स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी।
एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥8॥
शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते॥9॥
कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥10॥
एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति॥11॥
॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे श्रीशनैश्चरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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Updated on:
17 Aug 2024 12:23 pm
Published on:
17 Aug 2024 12:15 pm
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